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अविचल धर्म, अडिग प्रेम : अयोध्या से वन तक का त्यागमयी पथ : शंकराचार्य सदानंद जी

नरसिंहपुर (जयलोक)।
द्वारकाशारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी ने कहा कि  सीता का संकल्प ‘पति का धर्म, पत्नी का भाग्य’ चातुर्मास के 25वें दिन पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने श्रीरामकथा के उस करुण और प्रेरणादायक प्रसंग का वर्णन किया, जहाँ माता सीता का त्याग, प्रेम और स्त्रीधर्म का आदर्श स्वरूप सामने आया।जब भगवान श्रीराम ने वनवास की बात सीता को बताई, तो उन्होंने कहा: आप अपने माता-पिता और राष्ट्र की शपथ ले रहे हैं,पर मुझे छोडऩे कीबात कर रहे हैं?माता ने बचपन में मुझे रामायण सुनाई थी, जिसमें बताया गया था कि सीता भी राम के साथ वन गई थीं  क्या आप रामायण को झूठा कर देंगे?सीता जी का यह भाव उनके अद्भुत समर्पण और रामभक्ति को दर्शाता है।वनगमन नहीं, धर्मगमन है  राम का विकल्प और सीता की दृढ़ताश्रीराम ने सीता को समझाया कि वन का जीवन कठिन है, वहाँ काँटे हैं, पथरीले मार्ग हैं, हिंसक पशु हैं।

पर सीता जी ने कहा: आप जैसे चलेंगे, मैंवैसे ही चलूंगी। यदिआपके चरण वनझेल सकते हैं, तो मेरेभी सह सकेंगे। राम ने अंतत: कहा- मैं तुम्हें ले जाना नहीं चाहता था, पर तुम्हारे दु:ख को देख नहीं सकता  तुम भी साथ चलो। लक्ष्मण का आग्रह-‘राम जहाँ, वहाँ लक्ष्मण’ यह वार्तालाप सुनकर लक्ष्मण जी को यह चिंता हुई कि कहीं मुझे साथ ले जाने का विचार नहीं हो रहा। उन्होंने राम से कहा-  आप अकेले वन कैसे जाएंगे? मैं भी साथ चलूंगा। राम ने बहुत समझाया कि अयोध्या में रहकर माता-पिता की सेवा करो।

पर लक्ष्मण नहीं माने। राम ने कहा-  तो फिर माता सुमित्रा को प्रणाम करो, और सुहृदों से विदा लो।
सुमित्रा का वरदान: ‘राम के चरणों की छाया में ही राज्य है’ जब लक्ष्मण ने माता सुमित्रा से विदा माँगी, तो उन्होंने कहा-  राम वन जा रहे हैं तो महल में रहकर क्या करोगे? जहाँ राम हैं, वहीं अयोध्या है। राम की सेवा करना ही तुम्हारा राज्य है। प्रजा का करुणा से भीगा विदाई समारोह गुरु वशिष्ठ ने गुरु पुत्रों को बुलाया, गुरु माता ने सीता को वस्त्र और आभूषण दिए। श्रीराम ने अपने खजाने खोल दिए,ब्राह्मणों,दीन-दुखियों को दान दिया। महाराज ने दान और दया का अंतर स्पष्ट करते हुए कहा-  देशे काले च पात्रे च तद्धानं सात्त्विकंस्मृतम्। (जो दान समय, स्थान और पात्र के अनुसार दिया जाए, वही सात्त्विक माना जाता है। त्रिजट ब्राह्मण की कथा: त्याग और विश्वास की परीक्षाएक दुर्बल ब्राह्मण त्रिजट ने राम से दान माँगा।

राम ने कहा: तेरे हाथ में जो लाठी है, वह त्याग दे, फिरतुझे भूमि प्राप्तहोगी। ब्राह्मण ने जैसे ही लाठी फेंकी, वह सरयू नदी के किनारे गिरी  और वहीं उसे भूमि प्राप्त हुई। यह कथा बताती है-  जब तक हम पुराने सहारे (डंडों) को नहीं छोड़ते, जीवन में नई  भूमि (संभावना) नहीं मिलती आज की कथा का सामाजिक और नैतिक सन्देश सीता का वनगमन यह सिखाता है कि स्त्री का त्याग और दृढ़ता ही परिवार और समाज की आत्मा है। लक्ष्मण का सेवा भाव आदर्श भ्रातृप्रेम और समर्पण का प्रतीक है। राम का राजकोष दान में देना दर्शाता है कि एक धर्मपरायण राजा केवल शासक नहीं, समाज का पिता होता है। त्रिजट ब्राह्मण का प्रसंग यह दर्शाता है कि त्याग के बिना प्राप्ति संभव नहीं।

तुलसी के जीवन प्रसंगों में रामभक्ति की दिव्यता उभरकर सामने आई : शंकराचार्य सदानंद जी

 

Jai Lok
Author: Jai Lok

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