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इतना इंतजार तो ‘महबूबा’ भी अपने ‘आशिक’  से नहीं करवाती

ऐसा माना जाता है कि महबूबा जब कभी आशिक से मिलने का समय देती है तो तय वक्त पर कभी नहीं पहुँचती, बेचारा आशिक इंतजार करते-करते थक जाता है तब कहीं जाकर उसे महबूबा के दीदार होते हैं, यही हाल भारतीय जनता पार्टी के नगर अध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर हो रहा हैं। रोज नई-नई खबरें आती हैं कि आज इस नेता ने पेंच फंसा दिया, कल उसे नेता ने, परसों जिनको चुनाव करना है उनके बीच में सामंजस्य नहीं बन पाया है, कभी-कभी ये खबर भी आ आती है कि लिस्ट तैयार हो चुकी है बस उसकी घोषणा बाकी है। तमाम उम्मीदवारों की आंखें पथरा सी गई है और कान पक गए हैं ये सुनते सुनते, उनके समर्थक भी रोज सुबह टूथब्रष्ट करने के पहले व्हाट्सएप पर खबर देखते हैं कि कहीं किसी की नियुक्ति तो नहीं हो गई लेकिन हासिल आई शून्य वाली स्थिति बन जाती है अपने को तो यह मालूम था कि भारतीय जनता पार्टी में जबरदस्त अनुशासन है कोई चूंचपाठ नहीं कर सकता, ऊपर वालों ने जो कह दिया सो कह दिया लेकिन नगर अध्यक्षों की नियुक्ति में जिस तरह की अडी बाजी चल रही है उसको देखते हुए लगता है कि भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस की राह पर चलने लगी है, अब अभी जब नगर अध्यक्षों का चुनाव नहीं हो पा रहा तो फिर प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव कैसे होगा और जब प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव नहीं होगा तो राष्ट्रीय अध्यक्ष कैसे चुना जाएगा? भारी मारामारी है एक-एक जिले से कई कई उम्मीदवार नगर अध्यक्ष बनने की तैयारी में बैठे हैं लेकिन अभी तक किसी के नाम पर हरी झंडी नहीं हो पाई है। किसी एक जिले की बात तो छोड़ो पूरे प्रदेश के तमाम जिलों में यही सब कुछ चल रहा है, बताया तो ये भी जाता है कि बस इंतजार की बेला खत्म हो गई है और नाम की घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है लेकिन वो वक्त आता नहीं, अब तो कार्यकर्ता कहने लगे हैं कि हमने तो भैया आशा ही छोड़ दी जिसको बनना है बन जाए हम तो उसकी दरी फट्टा उठाते रहेंगे उसकी जय जयकार करते रहेंगे वैसे भी अपना तो काम ही ये बचा है। वैसे बड़ा अचरज है कि आखिर नगर अध्यक्ष की पोस्ट में ऐसे कौन से सुर्खाब के पंख लगे हैं की हर आदमी नगर अध्यक्ष बनने के लिए बेताब है, इतनी बड़ी सूची तो विधायक और सांसद की टिकट के लिए भी हाई कमान के पास नहीं पहुंचती जितनी नगर अध्यक्ष के लिए पहुंची है, दरअसल दिक्कत ऊपर वालों के पास भी है पच्चीसों नाम सामने है उसमें से किसको चुने और किसको न चुने जिसको चुन लिया वो तो खुश हो जाएगा और जिनको नहीं चुना उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगा और एक को खुश करके बीसियों को नाराज कैसे किया जा सकता है लेकिन अध्यक्ष तो एक ही बनेगा यही कारण है कि बनाने वाले भी कब से माथापच्ची कर रहे हैं लेकिन कोई निर्णय नहीं हो पा रहा। अखबार वाले भी रोज-रोज कहां तक खबरें छापें, तंग आकर उन्होंने भी इस संदर्भ में खबरें छापना बंद कर दिया कि जिस दिन निर्णय हो जाएगा, घोषणा हो जाएगी उस दिन उसकी फोटो छाप देंगे और उसको बधाई देने वालों के नाम। आखिर कब तक कयास लगाएं कि कौन नगर अध्यक्ष बनने वाला है अब तो बीजेपी वाले भी कहने लगे हैं इतना टाइम तो बीरबल की खिचड़ी बनने में नहीं लगा था जितना टाइम प्रदेश के तमाम जिलों के नगर अध्यक्षों के नाम आने में लग रहा है लेकिन उनके पास भी इंतजार के अलावा और चारा भी क्या है, इंतजार करो कभी ना कभी तो नगर अध्यक्ष का नाम सामने आएगा ही अब तो ये लोग एक ही गाना गाने लगे हैं।

‘हम इंतजार करेंगे कयामत तक, खुदा करे की कयामत हो और लिस्ट सामने आए’
इस पुलिस वाले को क्या हो गया है, अखबार में ये खबर जब से पढ़ी है तब से दिमाग में दही जम गया है खबर भी बड़ी आश्चर्यजनक किंतु सत्य है। खबर ये है कि अपने प्रदेश के नरसिंहगढ़ थाने में जो थानेदार हैं  सिंह चौहान’ उन्होंने थाने में आने वाले हर फरियादी का स्वागत चाय बिस्कुट से करना शुरू कर दिया है इतना ही नहीं स्टाफ  को भी जिम्मेदारी दी गई है कि वो इस बात का ध्यान रखें, उनका मानना है कि थाने में व्यक्ति तभी आता है जब वह बहुत कष्ट में होता है ऐसे में उसे सहजता और सहानुभूति का बर्ताव मिलना आवश्यक है। अपने को तो समझ में नहीं आता कि ये पुलिस वाला वास्तव में पुलिस वाला है या कोई और, वरना थाने में आने वालों के साथ पुलिस वाले किस तरह का बर्ताव करते हैं कि आदमी थाने की दहलीज में घुसने से पहले सौ बार सोचता है कि घुसूं या ना घुसूं लेकिन इन थानेदार साहब ने तो गजब कर दिया, हर फरियादी को बाकायदा चाय दी जाएगी उसके साथ बिस्किट भी दिए जाएंगे ऐसे में तो वहां फरियादियों की लाइन लग जाएगी, हर आदमी सुबह उठकर घर में ना चाय पीकर सीधे थाने जाएगा और कोई कंप्लेंट लिखवा देगा और बेहतरीन चाय बिस्किट खाकर वापस घर चला आएगा, चाय का खर्चा भी बचेगा बिस्किट भी मिल जाएगा। अपने को तो एक बात समझ में नहीं आती कि आखिर ऐसा बुद्ध ज्ञान उन थानेदार साहब को कैसे आ गया यह वास्तव में एक शोध का विषय है जिस पर कोई भी विद्यार्थी ‘पीएचडी’ कर सकता है लेकिन अब थानेदार साहब का चाय और बिस्कुट का खर्चा जो बढ़ेगा वो कहां से निकलेगा यह भी एक बड़ा सवाल है, अपनी तनख्वाह से अगर थानेदार साहब चाय बिस्कुट की व्यवस्था करवा रहे हैं तब तो उनका वास्तव में नागरिक अभिनंदन होना चाहिए और अगर कहीं और से कोई व्यवस्था हो रही हो तो बात अलग है। बहरहाल इन थानेदार साहब को अपना सलाम जिन्होंने एक ऐसी नई परिपाटी शुरू की है अपने को आशा है कि भले ही दूसरे थानेदार साहब चाय ना पिलाए बिस्किट ना दें कम से कम फरियादी को पानी ही ऑफर कर दें तो ही बहुत बड़ा काम हो जाएगा वैसे यह भी पता लगा है कि इन थानेदार साहब के थाने को ‘आईएसओ’ प्रमाण पत्र भी जारी किया गया है कुल मिलाकर इन थानेदार साहब की जो मेंटालिटी है वो दूसरे थानेदारों से मेल नहीं खाती यह बात तो पूरी तरह से तय हो चुकी है।

डायरी में छिपे हैं गहरे राज
परिवहन विभाग के अरबपति सिपाही ‘सौरभ शर्मा’ की एक डायरी के कुछ पन्ने अखबार वालों के हाथ लग गए उन्होंने उन पन्नों का उल्लेख करते हुए बताया कि डायरी में कहां-कहां से कैसी अवैध वसूली होती थी उसका पूरा लेखा-जोखा लिखा हुआ है। करोड़ों का हिसाब इस डायरी में अंकित है इस डायरी में कोड वर्ड में उनके भी नाम दिए गए हैं जिनको इस अवैध कमाई का हिस्सा मिलता था अब इस डायरी को लेकर पूरे प्रदेश में भारी हडक़ंप मचा हुआ है परिवहन विभाग में तैनात हर अफसर, कर्मचारी इस बात को लेकर परेशान बेचैन है कि उसका नाम तो डायरी में नहीं है लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कोयले की खदान में रहकर शरीर में कालिख ना लगे क्या ऐसा संभव है और फिर जहां करोड़ों की अवैध वसूली हो रही हो तो वहां ऐसा कौन सा अफसर या कर्मचारी होगा जो अपना हिस्सा ना लेता हो  अभी तो डायरी के कुछ ही पन्ने सामने आए हैं जिस दिन पूरी डायरी सामने आ जाएगी और उसमें किस-किस के नाम होंगे यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन अपने को जैसा अभी तक का अनुभव है छोटी मछलियां ही इस पूरे मसले में फंस कर रह जाएंगी बड़े-बड़े मगरमच्छ अपनी पीठ बचाकर निकल जाएंगे क्योंकि अगर डायरी के सारे पन्ने सामने आ गए तो फिर कोई नहीं बच पाएगा यह बात तो तय है, यही कारण है कि ना तो लोकायुक्त, न इनकम टैक्स, न आईडी इस डायरी को सार्वजनिक कर रही है अरे भाई जब डायरी मिल गई है तो उसको सावज़्जनिक करने में दिक्कत क्या है लेकिन दिक्कत यही है कि बड़े-बड़े लोग इसमें इंवॉल्व हैं और जब बड़े लोग किसी चीज में इंवॉल्व होते हैं तो फिर वह मामला फुस्स हो जाता है ये कोई पहली बार नहीं हो रहा। इसके पहले भी ऐसे कई मसले आए हैं जिसमें छोटे-मोटे लोगों को फंसा दिया गया और बड़े-बड़े लोग आराम से किनारे हो गए।

सुपर हिट ऑफ द वीक
‘मेरी ये समझ में नहीं आता कि कई साल से मैं करवा चौथ का व्रत नहीं रख रही फिर भी तुम पूर्ण स्वस्थ कैसे रहे हो जुकाम तक नही। हो रहा तुमको’ श्रीमती जी ने श्रीमानजी से कहा
‘मैं बहुत नियम संयम से रहता हूँ इसलिए’ श्रीमान जी ने उत्तर दिया
‘मुझे बेवकूफ  समझ रखा है क्या?
सच-सच बताओ वो कौन है…
जो तुम्हारे लिए करवा चौथ का व्रत रखती है’

Jai Lok
Author: Jai Lok

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