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ऐसा ना हो इधर मूंछ पर ताव दें, उधर अकाउंट से पैसा डेबिट हो जाए…

चैतन्य भट्ट
आजकल पता नहीं कौन-कौन सी नई-नई चीजें दुनिया में आ रही हैं। एक खबर पता लगी है कि निजी क्षेत्र के ‘फेडरल बैंक’ ने ‘स्माइल पे’ नाम का एक ‘फेशियल पेमेंट सिस्टम’ लागू किया है इसमें ग्राहक को ना तो कैश की जरूरत है, ना कार्डं की, ना मोबाइल की । वह सिर्फ  मुस्कुराएगा और पेमेंट हो जाएगा अब आप ही बताओ कि दुनिया में ऐसा कौन सा इंसान होगा जिसकी जेब से नोट जा रहे हो और वो मुस्कुराए, अपने ख्याल से तो ऐसा इंसान मिलना कठिन ही नहीं बल्कि नामुमकिन है, क्योंकि पैसा जब आता है तब इंसान मुस्कुराता है लेकिन जब पैसा जेब से निकलता है तो मुस्कुराहट ऐसी गायब होती है जैसे ’गधे के सर से सींग’ और सही बात भी तो है भले ही कार्ड की जरूरत ना पड़ रही हो, मोबाइल की आवश्यकता ना हो, लेकिन माल तो अपने अकाउंट से ही डेबिट हो रहा है ना, अब जब अकाउंट से पैसा डेबिट हो रहा हो तो मुस्कुराने की इसमें बात कौन सी है इसमें एक पंगा और भी है कई लोगों का चेहरा ऐसा होता है कि वे लाख मुस्कुराने की कोशिश करलें लेकिन उनके चेहरे का तनाव कम नहीं होता ऐसी स्थिति में भले ही वे कितना ही मुस्कुराने की कोशिश करेंगे लेकिन ‘क्यू आर कोड’ उनकी मुस्कुराहट को पकड़ नहीं पाएगा और जब तक मुस्कुराहट को पकड़ नहीं पाएगा तब तक पेमेंट होगा नहीं। कई ऐसे भी होते हैं कि उनका चेहरा हमेशा ऐसा लगता है जैसे वे मुस्कुरा रहे हों ऐसे में गलती से भी अगर वे क्यू आर कोड के सामने से निकल गए तो बिना वजह उनके अकाउंट से पैसे कट जाएंगे। फेडरल बैंक वालों को भी पता नहीं क्या सूझा जो ये नई स्कीम उन्होंने अपने बैंक में लागू कर दी। अपने को तो डर है कि फेडरल बैंक की देखा देखी दूसरे बैंक भी इससे मिलती जुलती स्कीम लागू न कर दें इन्होंने मुस्कुराहट की बात की है हो सकता है कोई दूसरा बैंक गुस्से वाला चेहरा देखकर पेमेंट काटने लगे, कोई तीसरा बैंक ये स्कीम निकाल दे कि क्यू आर कोड के सामने जो ’आंख मारेगा’ उसका पेमेंट हो जाएगा, ना कहो कोई चौथा बैंक ये स्कीम निकाल दे कि जैसे ही आप अपनी मूंछों पर ताव दोगे आपके अकाउंट से पैसा डेबिट हो जाएगा। कोई भोंह मटकाने पर पेमेंट कर देगा तो कोई जीभ निकाल कर चिढ़ाने पर पेमेंट की रसीद दे देगा।
अपनी तो फेडरल बैंक वालों से एक ही विनती है कि भैया ऐसी उटपटांग स्कीमें मत चालू करो वरना लोग बाग मुस्कुराना भूल जाएंगे क्योंकि इधर वे मुस्कुराए और उधर उनके खाते से पैसा डेबिट हुआ। वैसे भी आजकल लोगों का मुस्कुराना कम से कम हो गया है कितनी टेंशन है जिंदगी में। घर का टेंशन, आफिस का टेंशन, महंगाई का टेंशन, बेरोजगारी का टेंशन, सडक़ों पर जाम का टेंशन, बेटी के ब्याह का टेंशन, अब जब चौतरफा टेंशन ही टेंशन हो तो आदमी मुस्कुराए कहां से यह भी तो एक सवाल है।
चूहे मारने बिल्ली का सहारा
अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की संसद में कई फाइलें चूहों ने कतर डालीं, तमाम कोशिशें के बाद भी जब चूहों पर कंट्रोल नहीं हुआ तब सरकार ने बारह लाख रुपए की लागत से शिकारी बिल्लियां खरीदी हैं जो इन चूहों को अलसेठ देंगी। पाकिस्तान सरकार को यह बताना जरूरी है कि चूहों  का आज तक कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया, अपने भारत में ही हजारों क्विंटल अनाज चूहे खा जाते हैं दुनिया भर की दवाइयां डाली जाती है लेकिन चूहों पर उनका कोई असर नहीं होता ऐसा लगता है ये चूहे ‘अमरौती’ खाकर आ  आए हुए हैं वैसे ही तो पाकिस्तान में भुखमरी का आलम है उस पर बारह लाख  रुपए की लागत से बिल्लियां खरीदना पड़ रही है आजकल के चूहे वैसे भी बिल्लियों को झटका देने में बहुत एक्सपर्ट हो गए हैं। वो जमाना चला गया जब चूहे बिल्लियों के चक्कर में फंसकर अपनी जान दे देते थे। देखना होगा कि ये शिकारी बिल्लियां कितने चूहों को हजम कर पाती हैं वैसे एक बात ये भी है की हो सकता है विरोधी पक्ष के नेताओं ने फाइलें गायब कर दी हों और नाम चूहों का लगा दिया हो क्योंकि पाकिस्तान में सब कुछ संभव है।
इन्हें वेतन की जरूरत क्या है
हिमाचल सरकार ने अपनी डांवाडोल होती आर्थिक स्थिति को देखते हुए ये तय किया है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्री, संसदीय सचिव, कैबिनेट दर्जा प्राप्त आठ सलाहकारों व सार्वजनिक उपक्रमों के अध्यक्ष उपाध्यक्ष आगामी दो  महीने तक वेतन नहीं लेंगे, मुख्यमंत्री का मानना है कि इससे प्रदेश की आर्थिक स्थिति में थोड़ा बहुत सुधार होगा और जब स्थिति सुधर जाएगी तो दो महीने का जो बकाया वेतन है उन्हें दे दिया जाएगा। अपना मानना तो ये है कि चाहे मुख्यमंत्री हो चाहे मंत्री इन्हें वेतन की जरूरत ही क्या है? ऐसी कौन सी फेसिलिटी है जो उन्हें मुफ्त में अवेलेबल नहीं है, सरकारी बड़ा भारी बंगला है, सरकारी गाड़ी है, सरकारी पेट्रोल है, सरकारी दफ्तर है, सरकारी नौकर चाकर हैं, सब कुछ तो सरकारी है और वो भी सब फ्री में। और जब सब कुछ फ्री में अवेलेबल है तो वेतन मिले ना मिले क्या फर्क पडऩे वाला है और फिर ये सारी चीजें तो एक नंबर में हैं दो नंबर में क्या-क्या मिलता है ये तो बच्चा-बच्चा जानता है। किसको ठेका देना है, किसका पेमेंट करना है, किसका नहीं करना है, किससे कितना कमीशन मिलना है ये सब तो आम बात है आजकल। वरना अगर सिर्फ  वेतन ही के भरोसे होते नेता लोग तो मात्र पांच साल में इन नेताओं की संपत्ति पांच सौ गुना कैसे बढ़ जाती, खैर अब सरकार को समझ में आ रहा है कि वोटो के चक्कर में जो मुफ्त की घोषणाएं सरकारें कर रही हैं उसका हश्र क्या होने वाला है। अभी तो ये हिमाचल में हुआ है बहुत जल्दी अपने प्रदेश में भी यही स्थिति बनने वाली है क्योंकि जिस तरह से मुफ्त में सरकारी पैसा लुटाया जा रहा है उसकी भरपाई कहां से होगी। कितना ही गहरा कुआं क्यों ना हो लेकिन सिर्फ  पानी उलीचते रहोगे तो एक न एक दिन तो वो भी खाली हो जाएगा। सरकारों को अब यह समझना होगा लेकिन अपने को मालूम है कि वोटो का चक्कर है और फिर कौन सा अपनी जेब से पैसा देना है सरकारी माल है लुटाते चलो जब खजाना खाली हो जाएगा तो आम जनता पर टैक्स का बोझ लाद देंगे जो हमेशा से होता आया है।
सुपर हिट ऑफ  द वीक
श्रीमती जी को को उदास देखकर श्रीमान जी ने पूछा –
‘तुम इतनी उदास क्यों लग रही हो,
गुमसुम बैठी हो, क्या सोच रही हो’…?
‘ऐसी कोई बात नहीं है,बस कुछ दिनों से मुझे ये चिंता सता रही है कि आखिर क्या कसर रह गई है मेरी ‘कोशिशों’ में, जो शादी के इतने सालों बाद भी तुम मुस्कुरा लेते हो…!’श्रीमती जी ने उत्तर दिया।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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