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कांग्रेस को मजबूत करने राहुल का नया फॉर्मूला

भोपाल (जयलोक)। कांग्रेस को फिर से खड़ा करने के लिए राहुल गांधी नए फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं। यह फॉर्मूला है कांग्रेस को कैडरबेस बनाना। मप्र में इसकी शुरुआत की जा रही है। अगर ये फॉर्मूला हिट होता है तो पार्टी इसे देश के अन्य राज्यों में भी लागू करेगी। राहुल गांधी के इस फॉर्मूले में पार्टी की सबसे मजबूत कड़ी होंगे जिलाध्यक्ष। जिनकी पार्टी हाईकमान तक सीधी एंट्री होगी। अब विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी इन जिलाध्यक्षों की रजामंदी से होगी। यानी क्षत्रपों की पार्टी कहे जाने वाली कांग्रेस में अब पदाधिकारियों के चयन की पूरी प्रक्रिया बदल रही है। राहुल गांधी की पहल पर चल रही इस कवायद से संदेश साफ है कि अब इस पार्टी क्षत्रपों और प_ाबाद से बाहर निकलना चाहती है। इसकी शुरूआत जिलाध्यक्षों के चयन से की जा रही है, जिसके लिए कांग्रेस आलाकमान ने पर्यवेक्षक नियुक्त कर दिए हैं। यह इस बात का संकेत है कि आंदोलन से उपजी कांग्रेस क्या भविष्य में कैडरबेस होगी। मप्र में कांग्रेस की जमीनी हालत की बात करें तो यह खस्ताहाल नजर आती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत के बाद कांग्रेस ने कमलनाथ की अगुवाई में 15 साल बाद सरकार बनाई और विधायकों की बगावत से पहले, 15 महीने सत्ता में रही। 2023 के चुनाव में जीत के विश्वास के साथ मैदान में उतरी ग्रैंड ओल्ड पार्टी करीब 41 फीसदी वोट शेयर के साथ 230 में से 66 सीटें ही जीत सकी थी। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 41.5 फीसदी वोट शेयर के साथ 114 सीटें जीती थीं। कांग्रेस के वोट शेयर में पिछले चुनाव के मुकाबले एक फीसदी से भी कम की कमी आई, लेकिन सीटें 48 कम हो गईं। पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन और भी निराशाजनक रहा। 2024 के चुनाम में कांग्रेस खाता खोलने में भी विफल रही। हालांकि, पार्टी को 32.9 फीसदी वोट मिले थे।
टिकट वितरण में प_ाबाद नहीं चलेगा
राहुल गांधी ने बैठक में उन्होंने साफ कहा कि अब किसी नेता के समर्थक को पद नहीं सौंपा जाएगा। उनका यह कहना कि अब रेस में दौडऩे वाले घोड़े ही हमारे साथ चलेंगे, यह बताता है कि अब पद से लेकर टिकट वितरण में प_ाबाद नहीं चलेगा। जिलाध्यक्षों के चयन में उसे ही वरीयता मिलेगी जो पार्टी के लिए सच्चे मन से काम कर रहा है। राहुल गांधी जो कहा, उससे यह भी साफ है कि कांग्रेस अब प्रदेश में युवाओं की नई टीम खड़ी करना चाहती है। एक ऐसी टीम जो आने वाले सालों के लिए पार्टी को मजबूती दे। राहुल जानते हैं कि मध्यप्रदेश में तीसरी ताकत मजबूत नहीं है। ऐसे में कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा कर भाजपा को वे आने वाले सालों में तगड़ी चुनौती पेश करना चाहते हैं। पिछले विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी पराजय को भुलाकर वे संगठन को ब्लाकस्तर तक मजबूत करना चाहते हैं। जिलाध्यक्षों के चयन की प्रक्रिया को इसकी शुरूआत माना जा रहा है।
राहुल गांधी का फोकस मप्र पर
गौरतलब है कि कांग्रेस को हमेशा लीडरबेस पार्टी माना जाता रहा है। प्रदेश में चार दशक तक सत्ता में रहने वाली यह पार्टी पिछले बीस साल से सत्ता से बाहर है। 2018 में उसकी सरकार बामुश्किल बनी तो पर अंतर्विरोधों के चलते महज 15 महीने में ही गिर गई। लगातार सत्ता से दूरे रहने का असर संगठन पर भी पड़ा है। खासकर पिछले तीन-चार सालों में कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने पार्टी का अलविदा कहा है। इससे पार्टी की साख पर भी असर पड़ा है। राहुल गांधी ने अब मप्र पर फोकस किया है। कांग्रेस नेताओं की माने तो 2016 में राहुल गांधी ने प्रदेश में संगठन नेताओं की बैठक ली थी, उसके बाद वे किसी रैली या अन्य कार्यक्रम में प्रदेश के दौरे पर तो आए पर संगठन से जुड़े मसलों पर कोई बात कार्यकर्ताओं से नहीं हुई। 3 जून को राहुल गांधी ने छह घंटे से अधिक का समय कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बिताया।
संगठन पर गुटबाजी हावी
मप्र कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या गुटबाजी रही है। कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और सुरेश पचौरी से लेकर अजय सिंह राहुल तक, मध्य प्रदेश कांग्रेस कई गुटों में बंटी रही है। मध्य प्रदेश चुनाव में करारी हार के बाद पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष बदला, प्रभारी बदला लेकिन आम चुनाव में नतीजा ये रहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जीती अपनी इकलौती सीट छिंदवाड़ा भी कांग्रेस हार गई। लोकसभा चुनाव में अजय सिंह और गोविंद सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव लडऩे में असमर्थता जता दी थी। कमलनाथ अपने बेटे की उम्मीदवारी वाले छिंदवाड़ा में भी उतने एक्टिव नहीं दिखे। लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी का भी एक वीडियो सामने आया था, जिसमें वह गुटबाजी को कैंसर बताते हुए कहते नजर आ रहे थे कि पार्टी को उबारने के लिए पहले आंतरिक स्तर पर गुटबाजी को खत्म करना ही होगा। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की खस्ता हालत के लिए पार्टी के अन्य नेता भी गुटबाजी को जिम्मेदार बताते रहे हैं।

 

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Jai Lok
Author: Jai Lok

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