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काश! हम भी परिवहन विभाग में आरक्षक की पोस्ट पर होते ….

चैतन्य भट्ट

लोग बात कितनी मेहनत करते हैं पैसा कमाने के लिए, कोई धंधा करता है, कोई पढ़ाई लिखाई करके इंजीनियर, डॉक्टर, वकील ,बनता है ताकि जिंदगी भर के लिए कमाई कर सके। उद्योगपति उद्योग लगाने के लिए जान लगा देते हैं उसके बाद भी रिस्क रहती है कि क्या पता उद्योग चले ना चले, व्यापारी दुकान खोलता है उसे भी इस बात की चिंता रहती है कि क्या पता दुकान में रखा माल बिक पाए या ना बिक पाए, लेकिन अपना मानना तो ये है कि कुछ करने की जरूरत नहीं है एक बार जुगाड़ लगाकर मध्य प्रदेश के परिवहन विभाग में सबसे निचली पोस्ट यानी ‘सिपाही’ के रूप में भर्ती हो जाओ और फिर देखो करोड़ों का माल एक झटके में अंदर हो जाएगा, ये हम नहीं कह रहे हैं लोकायुक्त और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के अफसरान बता रहे हैं कि प्रदेश के परिवहन विभाग में तैनात एक अदने से सिपाही के घर पर जब छापा मारा गया तो छापा मारने वालों के भी होश फाख्ता हो गए, कई करोड़ रुपए, नगद, सोना, चांदी, बंगला प्रॉपर्टी, गाड़ी, घोड़ा न जाने क्या-क्या उस सिपाही सौरभ शर्मा के घर पर मिले। एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं, सात सात नोट गिनने वाली मशीनें भाई जी ने नोट गिनने के लिए रख ली थी और ये जरूरी भी था क्योंकि कोई छोटा-मोटा माल तो था नहीं जब करोड़ों रुपए नगद रखना हो घर में तो, फिर सात आठ  मशीनों की जरूरत तो पड़ेगी। अब बड़ा हल्ला मच रहा है कि जब परिवहन विभाग के एक सिपाही के पास इतना माल हो सकता है तो फिर उसमें तैनात अफसर और विभाग के मंत्री जी के माल की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती, क्योंकि इतनी औकात तो किसी सिपाही की या किसी अफसर की हो नहीं सकती कि बिना ऊपर की सेटिंग के वो इतनी कमाई कर सके, ये बात अलग है कि उसके माध्यम से जो कमाई होती थी उसमें उसका हिस्सा भी होता था और जब यह हिस्सा करोड़ों का है तो ऊपर वालों तक कितना माल पहुंचता होगा इसका तो अंदाज़ ऊपर बैठा भगवान भी नहीं लगा सकता। पहले जो मुख्यमंत्री मामा जी थे वे कहते थे कि भ्रष्टाचार स्वीकार नहीं किया जाएगा वे चले गए अब डॉक्टर साहब आ गए हैं उनका भी एक ही नारा है ‘भ्रष्टाचार सहन नहीं किया जाएगा’ लेकिन उनके ही नाक के नीचे क्या चल रहा है ये सामने आ रहा है। जब से सौरभ शर्मा और उसके साथी को पकड़ा है तब से पूरी अफसर शाही में भारी हडक़ंप मचा है न जाने किन-किन लोगों के नाम वो लोकायुक्त के सामने ले दे, उसकी डायरी में किस-किस के नाम पर कितना कितना माल है ये सब अंकित है लेकिन अपने को मालूम है कि ना तो मंत्री का कुछ बिगड़ेगा ना किसी अफसर का बाल बांका होगा, सूली पर चढ़ेगा तो सौरभ शर्मा। अपनी अब भगवान से एक ही प्रार्थना है कि है भगवान इस जन्म में तो आपने पत्रकारिता का काम हाथ में थमा दिया लेकिन अगले जन्म में अगर मध्य प्रदेश में पैदा करना तो परिवहन विभाग की सबसे नीची पोस्ट सिपाही में जरूर पोस्टिंग करवा देना यह बंदा था जिंदगी आपका एहसानमंद रहेगा।

सारी दुनिया भिखारी है

सफाई में नंबर वन आने वाला प्रदेश का ‘इंदौर’ अब एक नया काम शुरू करने वाला है और वो है पूरे शहर को भिखारी मुक्त करना क्योंकि अभी हाल ही में जब एक भिखारी की भीख की गणना की गई तो पता लगा की एक हफ्ते में उसकी इनकम पचहत्तर हजार रूपये रही इसलिए अफसरों ने सोचा कि अब इस पर बैन लगाना जरूरी हो गया है। जिस तरह से वो सफाई में नंबर वन आया है इस तरह से प्रदेश में सबसे पहले ये भिखारी मुक्त शहर घोषित हो जाए। ठीक है इंदौर को आप भिखारी मुक्त घोषित कर दोगे लेकिन यहां तो पूरी दुनिया ही भिखारी है कौन है ऐसा जो भीख नहीं मांगता। नेता जी वोटरों से वोट की भीख मांगते हैं, और जब नेताजी जीत जाते हैं तो वही वोटर अपनी परेशानी के हल के लिए नेताजी से भीख मांगता हैं, आशिक महबूबा से मोहब्बत की भीख मांगता है, स्टूडेंट टीचर से अच्छे नंबर देने की भीख मांगता है, व्यापारी अफसर से छापा ना डालने के लिए भीख मांगता है, तो अफसर व्यापारी से रिश्वत की भीख मांगता नजर आता है, मरीज डॉक्टर से जान बचाने की भीख मांगता है तो डॉक्टर भगवान से भीख मांगता है कि इसका मरीज उसके इलाज से ठीक हो जाए यानी चारों तरफ भिखारी खड़े हैं और अपने-अपने स्तर पर भीख मांग रहे हैं ऐसे में अकेले एक शहर को भिखारी मुक्त करने से क्या होगा जब पूरा संसार ही भिखारी हो तो फिर ‘हरि ओम शरण का ये भजन पूरी तरह से मौजू हो जाता है’

‘दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया’

सचमुच यह खेल ही तो है प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने एक बयान में कहा कि राजनीति भी एक खेल है इसमें भी खिलाड़ी होते हैं और खेल का मतलब ही है हार जीत, यही राजनीति में होता है किसी की हार होती है और किसी की जीत। बहुत मार्के की बात कही है मोहन यादव जी ने। राजनीति से बढक़र खेल तो अब इस दुनिया में शायद ही कोई बचा हो। कब कौन कहां चला जाए, कल तक जिसको गाली देता था कब उसकी तारीफ  में कसीदे कढऩे लगे कोई नहीं जानता राजनेता ये देखता है कि कहां फायदा है और जिस तरफ  फायदा दिखता है वह पूरी टीम के साथ उस तरफ  हो जाता है उसे इस बात का कोई लेना-देना नहीं होता कि जिस टीम की तरफ  से वह अभी तक खेलते आया है और जिस टीम के खिलाफ खेला है आज उसी टीम में वह शामिल हो गया । शतरंज में जैसे गोटियां फिट की जाती है वैसे ही राजनीति में भी गोटियां फिट की जाती है अब किसकी गोटी कहां फिट होती है यह तो उसकी किस्मत पर निर्भर करता है लेकिन फिर भी राजनीतिक व्यक्ति अपनी तरफ  से तो गोटियां फिट करने में कोई कसर नहीं छोड़ता, कई बार जिस खिलाड़ी को उम्मीद नहीं होती कि उसे कप्तान बना दिया जाएगा उसे कप्तान बना दिया जाता है और जो कप्तान बनने के चक्कर में घूमता है उसे साधारण खिलाड़ी के रूप में काम करना पड़ जाता है, अब इससे बड़ा खेल और क्या हो सकता है, इसलिए डॉक्टर साहब की बात पर अपन को सौ फीसदी भरोसा है कि राजनीति एक खेल है और इसमें जो भी शामिल हैं वे सब खिलाड़ी होते हैं।

सुपरहिट ऑफ  द वीक

श्रीमान जी अपने मैरिज सर्टिफिकेट को उलट पलट कर बार बार देख रहे थे
‘इसमें क्या देख रहे हो’ श्रीमती जी ने पूछा
कब से खोज रहा हूं सालों ने ‘एक्सपायरी डेट’ ही नहीं लिखी’ श्रीमान जी का उत्तर था।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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