पत्नी की हत्या के मामले में 10 वर्ष की काट चुका है सजा, हाईकोर्ट ने किया बरी
जबलपुर (जयलोक)। सोमवार को हाईकोर्ट ने एक ऐसे व्यक्ति को दोषमुक्त कर दिया जिस पर अपनी पत्नी की हत्या का आरोप था। हालांकि इस मामले में पिछले दस वर्षों से पति जेल में पत्नी की हत्या के मामले में सजा काट रहा था। लेकिन सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि जिस कुल्हाड़ी से पति पर पत्नी की हत्या करने का आरोप लगाया गया था उस कुल्हाड़ी पर खून ही नहीं लगा था। जिसके बाद हाईकोर्ट ने पति को दोषमुक्त करते हुए जेल से रिहा करने के आदेश दिए।
हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन व न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला की युगलपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। आरोपित पर पत्नी की हत्या के बाद लाश दफनाने का आरोप लगा था। कोर्ट ने पाया कि पूरा मामला परिस्थिथिजनक साक्ष्यों पर आराधित है। एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार जप्त की गयी कुल्हाड़ी में खून नहीं पाया गया था। महत्वपूर्ण गवाह अपने बयान से पलट गए थे। अपराध के लिए इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी पर खून नहीं पाया जाना अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर करता है।
दरअसल सीधी निवासी श्याम लाल उर्फ पप्पू पांडे को कुल्हाड़ी से गर्दन पर हमला कर पत्नि की हत्या करने तथा शव को घर में दफनाने के अपराध में ट्रायल कोर्ट ने सितम्बर, 2016 को आजीवन कारावास की सजा से दंडित किया था। अभियोजन के अनुसार आरोपित ने 14 अक्टूबर, 2015 की रात को वारदात को अंजाम दिया था। घटना के समय उसके माता-पिता व भाई-बहन रिश्तेदारी में आयोजित समारोह में शामिल होने गए थे। घटना के संबंध में आरोपित ने अपनी चाची को बताया था। चाची ने अपने बेटे को फोन पर घटना की जानकारी दी थी। चचेरे भाई ने घटना के संबंध में पुलिस को सूचित किया था। पुलिस ने 15 अक्टूबर, 2015 को घर का दरवाजा खोलकर आंगन से शव को बरामद किया था। साक्षी बृजलाल लोधी ने ट्रायल कोर्ट में बताया था कि अपीलकर्ता एक अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक उसके घर में काम कर रहा था। पुलिस ने 15 अक्टूबर को उसके घर से अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया था। उसके द्वारा अपीलकर्ता को किए गए भुगतान की रजिस्टर भी पेश किया गया है। किसी भी गवाह ने अपने बयान में यह नहीं कहा है कि उसने मुझे घटनास्थल में देखा था।
हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि दूसरे दिन चचेरे भाई से चाबी लेकर घर का दरवाजा खोलकर आंगन में दफन लाश को पुलिस ने बाहर निकाला था। इसके अलावा भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत लिए गए अपीलकर्ता के बयान और उसकी गिरफ्तारी में 23 घंटे का अंतर है। गिरफ्तारी-पत्रक में उसकी गिरफ्तारी 16 अक्टूबर बताई गयी है। गिरफ्तारी पत्रक में एक स्थान पर उसे 15 अक्टूबर को गिरफ्तार करना बताया गया था।
गिरफ्तारी पत्रक में कई स्थानों पर ओवरराइटिंग की गयी है। जिससे पता चलता है कि पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी की तारीख के संबंध में हेराफेरी की है। ट्रायल के दौरान अभियोजन साक्षी व अपीलकर्ता की चाची तथा उसका बेटा अपने बयान से पलट गए थे। इसके अलावा किसी भी गवाह ने अपीलकर्ता को घटना के दिन घर पर देखने बयान नहीं दिया है। अपीलकर्ता ने किस उद्देश्य से पत्नी की हत्या की अभियोजन यह भी साबित नहीं कर पाया है। अपीलकर्ता लगभग 10 वर्ष की सजा काट चुका है। हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद दोषमुक्त कर दिया।
