(जय लोक)। कई बरस हो गए जब घरों में चारपाई यानी ‘खटिया’ हुआ करती थी, नारियल की रस्सी से बनी हुई खटिया में अक्सर खटमल पैदा हो जाते थे और उन्हें दूर करने के लिए पहले खटिया को धूप में रखना पड़ता था उसके जोड़ों में मिट्टी का तेल डाल कर फिर उसको कई बार पटकना पड़ता था और जब उसके अंदर से खटमल गिरते थे तो उनको पैर से कुचलकर मार दिया जाता था, अब ना तो खटिया है और ना खटमल। न जाने कहां गायब हो गई ये पूरी प्रजाति। लेकिन आज स्वर्गीय खटमलों की आत्मा को बड़ी शांति मिली होगी कि कितने बरस बाद किसी ने तो उनकी याद की और याद भी किसने किया, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ‘उद्धव ठाकरे जी’ ने उन्होंने साफ कह दिया कि वे पूर्व मुख्यमंत्री ‘देवेंद्र फडणवीस’ की चुनौती को स्वीकार नहीं करते क्योंकि वे खटमलों की चुनौती स्वीकार नहीं करते बल्कि खटमलों को कुचल देते हैं। अब राजनीति में खटमल भी शामिल हो चुके हैं जिस तरह की भाषा का उपयोग राजनीतिक दल के नेता कर रहे हैं उनके लिए कुछ और जीव जंतुओं के नाम हम प्रेषित कर देते हैं ताकि वे अपने विरोधियों को इन जीव जंतुओं के नाम से संबोधित कर सकें मसलन, झींगुर, तिलचट्टा, कॉकरोच, चीटा, मच्छर, टिड्डा, चूहा छछूंदर पटार, केंचुआ, घोंघा, कनखजूरा जोंक मकड़ा मकड़ी, छिपकली। इतने सारे जीव जंतुओं के नाम अपन ने सुझा दिए हैं अब ये राजनीतिक दलों के नेताओं की पसंद है कि वे अपने विरोधियों के लिए जो भी नाम सूट करता हो उसका यूज कर सकते हैं, क्योंकि स्थितियां तो यही आ गई है कि राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे को आदमी ना समझ कर जीव जंतुओं के नाम पर संबोधित करने लगे हैं,देखना ये है कि उद्धव ठाकरे जी ने देवेंद्र फडणवीस को खटमल की उपमा दे दी है तो अब देवेंद्र फडणवीस उद्धव ठाकरे को किस जीव जंतु के नाम से सुशोभित करते हैं। क्या दिन आ गए हैं राजनीति के और राजनीतिज्ञों के। हालत ये है कि एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते और फिर आजकल तो भाषा के स्तर को कितना गिरा दिया जाए इसका कंपटीशन चल रहा है जो जितनी घटिया भाषा का उपयोग करेगा वो इतना बड़ा नेता माना जाएगा। अपने बताए गए जीव जंतुओं के नाम का उपयोग कब और कौन कैसे करता है ये देखने की अपनी बड़ी इच्छा है ईश्वर हमारी इच्छा जल्दी पूरी कर दे अपनी बस इतनी सी मांग है।
हाथ खड़े कर दिए
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डाक्टर मोहन यादव को भी पता नहीं क्या-क्या सूझता रहता है बैठे बैठे ‘महा राजस्व अभियान’ की घोषणा कर दी जिसके तहत डेढ़ महीने के भीतर राजस्व के जितने भी प्रकरण होंगे उनके आवेदन लेकर 6 महीने के भीतर उनका निपटारा करना होगा। अब आप ही बताओ की राजस्व विभाग के लोग क्या इसको लेकर खुश होंगे, ये तो सीधे सीधे उनके पेट पर लात मारने जैसी बात होगी। पता चला है कि जबलपुर में राजस्व विभाग के अधिकारियों ने कलेक्टर साहब के सामने गुहार लगाई है कि साहब हमें दबाव से मुक्त किया जाए, हमारे पास संसाधन नहीं है, हमारे पास स्टाफ नहीं है, हमारे ऊपर वैसे ही कामों का बहुत बड़ा बोझ चढ़ा दिया है, हम लोग काम के बोझ से दबे जा रहे है आपसे निवेदन है कि हमें इस काम से मुक्ति दिलाएं। सही किया इन अफसरों ने क्योंकि वास्तव में यदि इस महा अभियान में सारे केस निबटाने पड़ गए तो उन बेचारों का क्या होगा, सारा धंधा ही ढप्प हो जाएगा, ना तो कोई उनके चक्कर लगाएगा, ना धंधे की बात हो पाएगी फ्री फोकट में सारा काम करना पड़ेगा और ये वो करना नहीं चाहते। वैसे भी राजस्व के चक्रव्यूह में जो एक बार फंस जाता है उसकी हालत तो अभिमन्यु से भी ज्यादा खराब हो जाती है। खसरा में नाम चढ़ावाना हो, नामांतरण करवाना हो, या फिर और कोई भी काम करवाना हो चक्कर लगाते लगाते चप्पलें घिस जाएंगी पूरा चेहरा काला पड़ जाएगा लेकिन काम नहीं होगा, पर जब किसी से सीधी सीधी बात कर लोगे तो वही काम एक दिन के भीतर हो जाएगा। देखा नहीं हाल ही में दमोह नाका के एक परिसर के नामांतरण के सारे मामले तत्कालीन तहसीलदार ने एक ही झटके में निपटा दिए जबकि उसके कोई भी कागजात सही नहीं थे, तो ये कमाल तो राजस्व विभाग ही कर सकता है लेकिन मुख्यमंत्री जी ने अभियान की घोषणा कर उनकी सारी आशाओं पर पानी फेर दिया है सो बेचारे हाथ खड़े ना करें तो करें क्या?
अफसरी में गलत आ गए
लगता है दमोह के कलेक्टर सुनील कोचर गलती से आईएएस बन गए अगर सही तरीके से आईएएस बने होते तो रुआंसे हुए ये शब्द ना कहते कि ‘इंसानों के साथ व्यवहार करने का तरीका अफसर को आना चाहिए यदि ऐसा नहीं है तो पद पर रहने का कोई मतलब नहीं है’। दरअसल कोचर जी एक मेडिकल कैंप का निरीक्षण करने गए थे और जब वहां पर उन्होंने एक महिला को कराहत्ते हुए जमीन पर लेटे देखा तो वे रुआंसे हो गए और उनके मुंह से ये शब्द निकल गए। अपने को लगता है कि कोचर साहब को अभी अफसरशाही की हवा लगी नहीं है तभी वे इतने संवेदनशील बने हुए हैं वरना ये अफसर तो अपनी संवेदनशीलता अपनी ट्रेनिंग के दौरान ही मसूरी में छोडक़र आ जाते हैं। जनता तो उनके लिए कोई मायने ही नहीं रखती, वे राजा होते हैं और जनता उनकी प्रजा, लेकिन पता नहीं कोचर साहब को अभी तक अफसर शाही के छुआछूत का रोग क्यों नहीं लग पाया या तो अभी-अभी नए होंगे या फिर अभी पुराने अफसरों से ट्रेनिंग नहीं ली होगी होंगे वरना इतनी छोटी सी बात पर वे रुआंसे ना होते। ये तो अफसरों के लिए रोज का काम है उनके दरबार में सैकड़ों लोग रोते हुए आते हैं लेकिन उनके माथे पर कोई शिकन तक नहीं आती,लेकिन कोचर साहब ने जो बात कही है वो वास्तव में अफसरों के लिए एक सीख बन सकती है लेकिन अपने को मालूम है कि अफसर शाही के नक्कारखाने में कोचर साहब की आवाज तूती की आवाज बनकर रह जाएगी, बहरहाल उनकी संवेदनशीलता के लिए उनका साधुवाद।
सुपर हिट ऑफ द वीक
श्रीमती जी का शक दूर करने के लिए श्रीमान जी ने दाढ़ी रख ली, पूजा-पाठ करने लगे गीता, रामायण भी पढऩे लगे, गरीबों की मदद करने लगे, सारे गलत काम छोड़ दिए और प्रभु की भक्ति में लग गए। इसके बावजूद श्रीमती जी फोन पर अपनी सहेली से कह रही थी ‘लगता है कमीना, अब स्वर्ग की अप्सराओं के चक्कर में लगा हुआ है’।
‘खटमल’ भी खुश होंगे कि किसी ने तो हमें याद किया…
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