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गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर, गोरा रंग दो दिन में….

चैतन्य भट्ट
(जय लोक)। इन दिनों केरल की मुख्य सचिव ‘शारदा मुरलीधरन’  ने काले रंग को लेकर एक नई बहस छेड़  दी है। उनका कहना है कि देश में गोरे रंग को काले रंग की बजाय ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है चूंकि वे मुख्य सचिव जैसी बड़ी पोस्ट पर हैं इसलिए उनकी बात पर कोई उंगली नहीं उठा सकता लेकिन अपन तो इसी के लिए बैठे हैं। ये बात सही है कि जब लडक़ा लडक़ी को देखने जाता है तो सबसे पहले उसका रंग देखता है यदि लडक़ी गोरी है तो लडक़ा हां कर देता है और यदि लडक़ी काली है तो कोई ना कोई बहाना बनाकर किनारे हो जाता है ,लेकिन वो भूल जाता है की फिल्म ‘रोटी’ में राजेश खन्ना ने साफ  साफ  कह दिया था मुमताज से कि ‘गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर, गोरा रंग दो दिन में ढल जाएगा’ यानी गोरे रंग पर इतना घमंड मत कर लेकिन ऐसा क्यों है ये भी तो एक सवाल है, दरअसल भारत में गोरे अंग्रेजों ने कई वर्षों तक राज किया और भारतीयों को दबा के रखा तब से भारतीय गोरे रंग से कुछ ज्यादा ही इंप्रेस हो गए हैं लेकिन वे भूल गए कि चाहे वह ‘भगवान विष्णु’ हो ‘राम’ हो या फिर ‘श्री कृष्ण’ सब कर सब गोरे नहीं बल्कि सांवले रंग के ही थे। इधर जब पानी नहीं बरसता सूखे की नौबत आ जाती है तब हर आदमी काले बादलों का इंतजार करता है कि कब काली बदली छाए और पानी बरसे ,गोरे और आसमानी बादल सिर्फ देखने के ही रहते हैं उधर दूसरी तरफ जब ज्यादा बारिश आती है तो बारिश से बचने छाता भी काला ही काम आता है आज तक किसी ने सफेद छाता देखा है क्या? जिस शहद को खाकर तमाम रोग दूर हो जाते हैं उसकी निर्माता मधुमक्खी भी काली होती है और उसका छत्ता भी काला। अपनी महबूबा के चारों तरफ  मंडराने वाले आशिकों के लिए ‘भंवरे’ शब्द का उपयोग किया जाता है उसका रंग भी  काला ही होता है ।आजकल तो काली कार रखने का फैशन भी चल गया है हर आदमी चाहता है कि उसके पास काले रंग की कार हो। जिस भगवान शनि से सारी दुनिया कांपती है वे भी पूरे के पूरे काले हैं। माना कि गोरा रंग जल्दी अट्रैक्ट कर लेता है लेकिन रंग तो काला ही काम देता है, देखो ना जिनके बाल गोरे यानि सफेद हो जाते हैं हजारों रुपए की डाई लगाकर अपने बाल काले करके वे अपने आप को जवान दिखाने का प्रयास करते हैं डाई बनाने वाली कंपनियां काला रंग घोलकर करोड़ों रुपए कमा रही हैं आज तक किसी ने सुना कि सफेद रंग की डाई बनी हो जो काले बालों को सफेद कर दे इसलिए भले ही शारदा मुरलीधरन ये कह रही हों कि देश में गोरे रंग को प्राथमिकता दी जाती है लेकिन वे भी भूल गई कि उनका रंग काला होने के बावजूद भी वे केरल की प्रशासनिक मुखिया हैं यानी काला रंग किसी से कम नहीं है अगर रंग के ही आधार पर पोस्टिंग होती तो वे कहीं किनारे लूप लाइन में पड़ी होती। शतरंज में भी देखिए जितने गोरे खाने होते हैं उतने ही काले भी, इसलिए काला रंग गोरे के मुकाबले कहीं कमजोर नहीं पड़ता वैसे तो यह भी कहा जाता है कि अगर नाक नक्श अच्छे हैं तो सांवली लडक़ी भी बेहद खूबसूरत दिखती है और अगर नाक नक्श अच्छे नहीं है तो फिर कितनी ही गोरी चमड़ी क्यों ना हो उस लडक़ी को कोई पसंद नहीं करता शायद यही कारण है कि फिल्म बंदिनी में नूतन यही गाना गाती है ‘मोरा गोरा अंग ले ले, मोहे श्याम अंग दे दे’ यानी वो अपना गोरा रंग देने तैयार है और उसके बदले श्याम यानी सांवला रंग लेने तैयार है इससे ज्यादा बड़ी बात और क्या हो सकती है काले रंग को लेकर।

मंच को लेकर भगदड़

पिछले दिनों कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं के मंच पर जो भीड़ इक_ी हुई और उस चक्कर में वो मंच धराशाही हो गया। अनेक नेताओं को चोट भी लगी कुछ को अस्पताल में भी भर्ती होना पड़ा अब इस झंझट से निजात पाने के लिए कांग्रेस ने एक निर्णय लिया है कि कांग्रेस जहां कहीं भी सभा करेगी एकदम छोटे से छोटा मंच बनाएगी जिसमें सिर्फ  कुछ नेता ही बैठ पाएंगे, अभी तक बड़ा मंच बनता था तो सारे छोटे नेता उस मंच पर चढऩे के लिए बेताब हो जाते थे सबको लगता था कि एक बार मंच पर चढ़ गए तो बड़े नेताओं की निगाह में आ जाएंगे और उसका फायदा आगे पीछे कभी ना कभी मिल जाएगा, लेकिन जब मंच ही धराशाई हो गया तो फिर क्या होगा, ये सोचकर कांग्रेस ने अब तय कर लिया है कि छोटा मंच बनाया जाएगा ,लेकिन भैया कांग्रेस के नेताओं ये भी तो सोचो सत्ता की कुर्सी पर तो बैठ नहीं पा रहे हो लंबा अरसा हो गया है विरोध करते-करते, कम से कम मंच पर ही बैठने का मौका मिल जाए यही हर नेता के लिए बहुत बड़ी चीज होगी। अपना तो सुझाव ये है कि जो भी बड़ा नेता आए वह अपने साथ एक ‘स्टूल’ ले आए और जितने भी नेता है वे भी अपने साथ एक-एक स्टूल ले आएं ,मंच बनाने की भी झंझट खत्म हो जाएगी और पैसा भी बच जाएगा, वैसे भी पार्टी के पास पैसे का संकट तो है ही । स्टूल रहेगा तो इधर से उधर जाने में भी ज्यादा दिक्कत नहीं जाएगी और आजकल तो ‘फोल्डिंग स्टूल’ भी आ गए हैं जिनको फोल्ड करके अपने अपने साथ कहीं भी ले जाया जा सकता है ना मंच बनेगा ना मंच धराशाही होगा ना कोई घायल होगा यानी सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी, अब अपने सुझाव पर कांग्रेस कितना विचार करती है इसका इंतजार अपने को रहेगा वैसे जो सुझाव अपन ने दिया है वो है बहुत कारगर इसमें कोई दो मत नहीं है।

आस्तीन के साथ

एक रिसर्च में यह पता लगा है कि ये जो सांप होते हैं लाखों साल पहले इन सांपों के भी पैर हुआ करते थे यानी जैसे इंसान के पैर होते हैं वैसे ही इन सांपों के भी पैर होते थे लेकिन बाद में धीरे-धीरे ये पैर कहां गायब हो गए इसका पता ना तो वैज्ञानिकों को लगा और ना ही उन सांपों को, फिर खोज हुई कि आखिर ये सांप बिना पैर के कैसे हो गए लेकिन कुछ खास पता लग नहीं पाया लेकिन अपन बताएं देते हैं कि उनके पैर क्यों गायब हो गए, जब से सांप आस्तीन में घुसने लगे हैं तब से उनके पैर गायब हो गए क्योंकि यदि पैर हेंगे तो हो सकता है कि आस्तीन में पैर फंस जाए, आस्तीन में घुसने में पैर कभी-कभी आड़े भी आ सकते हैं इसलिए सांपों ने सोचा कि जब अपने को लोगों की आस्तीन में ही घुसना है तो फिर इन पैरों की जरूरत क्या है बेहतरीन रेंगते हुए जाओ और आस्तीन में घुस जाओ। आजकल तो आस्तीन के सांपों की कमी नहीं है इसलिए इन सांपों ने अपने पैरों को तिलांजलि खुद-ब-खुद दे दी थी और रेंगना शुरू कर दिया। पैर होते तो जोड़ों में दर्द भी हो सकता था कई बार घुटने भी बदलने की नौबत आ सकती थी इन सब झंझटों से इन सांपों ने एक ही बार मुक्ति पा ली और एक नई स्कीम ईजाद कर दी। अपना तो इन वैज्ञानिकों से यही निवेदन है कि फालतू में काहे के लिए इस बारे में खोजबीन कर रहे हो हमने तो आपको एक ही बार में सब कुछ  बतला दिया।
सुपर हिट ऑफ द वीक
‘नारी जल की तरह
शीतल और तरल होती है’..!
‘पुरुष मिट्टी की तरह ठोस
और रुखा होता है’.!
और जब दोनों की शादी हो जाती है…
कीचड़ हो जाता
है  रे बाबा…!!!

नर्मदापुरम कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर में तनाव, हाई कोर्ट से बहाल होते ही एसडीएम सस्पेंड

 

Jai Lok
Author: Jai Lok

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