जबलपुर (जय लोक)
विगत कुछ दिनों से संस्कारधानी कहे जाने वाले हमारे शहर में राजनीति में कुछ आधारभूत कमियाँ सभी को खल रही हैं। कल रात शहर की राजनीति के मंथन का महत्वपूर्ण पड़ाव माने जाने वाले मालवीय चौक पर बहाने की राजनीति के दौर के नज़र आ रहे घटनाक्रमों को लेकर चाय पर चर्चाओं का दौर चल पड़ा।
अलग-अलग नजर के अलग-अलग नजरिए से जब इन बातों को गौर से सोच और समझा गया तो यह स्पष्ट प्रतीत हुआ कि शहर के कुछ नेता हर हाल में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए बहाने की राजनीति का सहारा लेकर चल रहे हैं। बहाने की राजनीति को महत्वपूर्ण दिखाने का सबसे सस्ती लोकप्रियता का जरिया मनमर्जी से शहर भर में लगाए जाने वाले पोस्टर और फ्लेक्स हो गए हैं। कोई भगवान के धार्मिक कार्यक्रमों को इवेंट मैनेजमेंट की तर्ज पर आयोजित कर खुद की पब्लिसिटी और वाहवाही करने में लगा हुआ है तो कुछ जन्मदिन को बहाना बनाकर राजनीति में अपना स्थान बनाए रखने के प्रयासों में लगे हुए हैं। कुछ लोगों ने घटनाक्रमों को राजनीतिक रंग देकर सिर्फ अपनी उपस्थिति और अपनी लोकप्रियता का एहसास करने का प्रयास भी किया है । जन्मदिन तो बहाना है राजनीति में स्थान बनाना है। चर्चा की अगुवाई कर रहे सज्जन बोल पड़े और एक पूर्व जनप्रतिनिधि इसलिए अभी इस चर्चा का हिस्सा बन गए क्योंकि हाल ही में उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य को संवारने के लिए अपनी राजनीतिक सोच और दल दोनों में परिवर्तन किया है। लेकिन फिर भी पुराने विपक्षियों की नजरों में अपने नहीं बन पाए और कई बार सार्वजनिक रूप से उनके निशाने पर बने हुए ही नजर आये। फिलहाल नेताजी के पास कोई महत्वपूर्ण पद नहीं है ना ही कोई बहुत बड़ी जिम्मेदारी है , ना ही उन्हें नए दल में वैसी स्वीकार्यता प्राप्त हो रही है जैसे वे पुराने दल में इतराकर अपने वजूद के हिसाब से कार्य करते थे।
शायद इसीलिए नेताजी ने सोचा कि अब राजनीति में बने रहने के लिए कुछ ना कुछ तो कार्यक्रम बनाना होगा। इसी क्रम को आगे बढ़ाया गया और जन्मदिन को बहाना बनाकर राजनीति में अपना स्थान बनाए रखने का कार्य किया गया। ग्रामीण क्षेत्र में लगने वाले शिविरों की पूरी पब्लिसिटी और तामझाम की झांकी शहर के मुख्य चौराहों पर सजा दी गई। संभवत इसके पीछे यही सोच रही होगी कि लंबे अरसे तक नदारत रहने पर कहीं जनता यह ना भूल जाये की वो भी नेता है।
यह चर्चा चली रही थी कि एक दूसरे सज्जन ने एक और लाजवाब मामले पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमने तो प्रत्यक्ष रूप से एक ऐसे व्यापारी को नेता बनने का प्रयास करते देखा है जिनका जनता के बीच में कोई आधार नहीं है, लेकिन धार्मिक आयोजन को इवेंट मैनेजमेंट के माध्यम से करके खुद को नेता साबित करने में मशगूल नजऱ आए। सज्जन ने शब्दों को आगे बढ़ाया और कहा कि सिर्फ धार्मिक आयोजन के मुख्य आयोजक की भूमिका में ढेर सारे बैनर पोस्टर छपवाकर नेता बनने का प्रयास इन दिनों शहर का नया शगल बना हुआ दिख रहा है।
ये सज्जन भगवान गणेश की अगवानी में धार्मिक कार्यक्रम को ऐसा इवेंट मैनेजमेंट का रूप दे बैठे जिससे उन्हें लगा कि वो शहर के नेता बन जाएंगे। कुछ हो हल्ला करने वालों की टोलिया इक_ा कर लीं। चौराहा बंद कर हजारों लोगों को घंटों परेशान कर दिया ताकि उन लोगों को उनका नाम अच्छे से याद हो जाये। अब बात करते-करते सज्जन ने पूरा वाक्या तो बताया लेकिन जिस नेता के बारे में वह जिक्र कर रहे थे उसका नाम लेना शायद वह भूल गए।
पहले नेता के बारे में भी जो सज्जन विस्तार से जानकारी दे रहे थे उन्होंने भी जब देखा कि दूसरे सज्जन अपने नेता की चर्चा तो कर रहे हैं लेकिन नाम नहीं ले रहे तो उन्होंने भी अपने नेता का नाम लेने से परहेज किया। लेकिन दोनों ही नेताओं ने यह बात तो साबित कर दी कि उनकी यह हरकतें उनकी मंशाओं को झलकाने के लिए काफी है। दोनों सज्जनों ने चाय की चुस्कियों के साथ जिस आत्मविश्वास के साथ बात कही उससे यह भी साबित है कि समझने वालों को कुछ थोड़ा सा बल बुद्धि पर देना पड़ेगा इर्द-गिर्द नजरे घुमानी पड़ेगी और उन्हें पूरा वाक्य समझ में आ जाएगा।
चाय के कप आधे ही खाली हुए थे कि इसी दौरान तीसरे सज्जन भी पहुंचे और उन्होंने भी हाथों में चाय का कप थामते हुए इस चर्चा के संग्राम में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए कहा कि यह सब नेताओं की जो फोकस बाजी चल रही है वह जनता के बीच में उपस्थिति और आधार बनाने के बजाय केवल प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों पर रोब दिखाने की नीयत से की जा रही है। तीसरे सज्जन ने नए बिंदु को उठाकर चर्चा को फिर जीवंत किया और आगे बढ़ा दिया।
बात तो सोचने वाली है की जो लोग जनता के बीच में मजबूत पकड़ नहीं रखते वो वह सिर्फ फ्लेक्स के जरिए खुद को बड़ा नेता दिखाने में क्यों जुटे हुए हैं। तीसरे सज्जन की बात भी चाय की चर्चा में वजन के साथ सुनी गई और उपस्थित लोगों ने अपने अपने नजरिये से इसे देखा। पहले वाले सज्जन ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि पिछले विधानसभा कार्यकाल के दौरान तक जो नेता विधानसभा में सक्रिय होता था और अपने विधानसभा के लोगों के बीच में अपनी हर बात अपना हर सुख दुख रखना चाहता था तो वह उसके हिसाब से अपनी विधानसभा में ही बैनर- फ्लेक्स- फोटो का उपयोग कर संदेश प्रसारित करता था।
अब राजनीतिक सीमा क्षेत्र का यह बंधन टूट चुका है। अपनी राजनीतिक विरासत को अपनी पारिवारिक विरासत के रूप में आगे बढ़ाने की चिंता लिए कुछ नेता यही चाहते हैं कि अब जो भी प्रचार प्रसार हो वह पूरे जिले में हो। भले ही अगले चुनाव के समय उनको अपनी विधानसभा में ही इमली के बीज चबाने की स्थिति क्यों न बन जाए।
चलो इतनी बातों के चलते चलते चाय का कप भी खाली हो गया और समय आ गया कि अब घर- दफ्तर पहुँच कर इत्मीनान से बैठ कर इन अलग-अलग बिंदुओं पर उठ रही चर्चाओं पर विचार किया जाए।
चर्चा चाय पर…….चल रहा है बहाने की राजनीति का दौर
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