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छात्र राजनीति के प्रमुख स्तंभ थे संतोष राहुल-हिमांशु राय

जबलपुर (जयलोक विशेष)। आज अखबार में पढ़ा, संतोष राहुल नहीं रहे। बहुत सारी पुरानी बातें याद आ गई। सन 73-74 का जमाना था। उस समय छात्र आंदोलन बहुत तीव्र था। शहर में छात्रों के दो दल थे। नगर छात्र संघ जिसका नेतृत्व श्याम विलोहा और रहीम शाह करते थे और दूसरी ओर शरद यादव का दल जिसे हॉस्टल पैनल भी कहा जाता था। इसमें शरद यादव बच्चन नायक, डॉ. रावत आदि अनेक प्रसिद्ध नेता थे। इस समय हायर सेकेंडरी छात्रों का एक आंदोलन शुरू हुआ और हायर सेकेंडरी छात्र संघ का गठन हुआ। इसके अध्यक्ष बने संतोष राहुल। संतोष राहुल उस समय बहुत वरिष्ठ थे और हायर सेकेंडरी कभी का पास कर चुके थे लेकिन वह हायर सेकेंडरी छात्र संघ के नेता के रूप में विख्यात हुए। उस समय हायर सेकेंडरी का छात्र आंदोलन इतना तेज था कि लगभग हर रोज हजारों स्कूली छात्र सडक़ों पर रहा करते थे। संतोष राहुल का जलवा था। इसी समय एक रात नगर छात्र संघ और शरद यादव के छात्र संघ में मालवीय चौक में युद्ध हुआ। पहले श्याम बिलोहा और उनके साथियों ने शरद यादव पर हमला किया। बाद में शरद यादव की पूरी सेना ने आकर मालवीय चौक पर कब्जा कर लिया। हालत काफी संगीन थे। संतोष राहुल किसी काम से कहीं बाहर गए हुए थे। इस घटना से बेखबर उस दिन वह बस स्टैंड पर उतरे और अपनी उसी मस्ती में हाथ में एक छोटा सा बैग दबाए मालवीय चौक पहुँच गए। मालवीय चौक उस समय छात्रों की राजधानी हुआ करता था और छात्र नेता प्रजा जनों को देखने के लिए प्रतिदिन वहां इक_े होते थे। तो जब संतोष राहुल मालवीय चौक पहुँचे उस समय शरद यादव की सेना हथियारों से लैस वहां खड़ी हुई थी। संतोष राहुल नगर छात्र संघ के समर्थक थे इसीलिए उनको देखते ही शरद यादव के समर्थकों को एक आदमी मिल गया जैसे कूटा जा सकता था। तो उसे दिन संतोष राहुल बहुत पिटे और काफी दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे। इससे वह अचानक ही शहर के वरिष्ठ छात्र नेताओं में शामिल हो गए। बाद में जब छात्र नेताओं पर मीसा लगा तो पाँच लोग मीसा बंदी हुए। शरद यादव, डॉक्टर रावत, श्याम विलोहा, कैलाश सोनकर और संतोष राहुल। मजेदार बात यह थी कि यह सभी एक बैरक में बंद थे और जेल के अंदर अच्छे मित्र हो गए। संतोष राहुल बाद में शरद यादव के साथ रहे और चर्चित रहे। मीसा के लिए रहीम शाह भी नामित थे पर वो कभी गिरफ्तार नहीं हुए। वो उस दौर में एक दलित बस्ती में रहे। पुलिस और प्रशासन की कल्पना से बाहर था कि मुस्लिम आदमी हिन्दू बस्ती में छुपा होगा। रहीम भाई छात्रों और आम जनता के बीच बहुत लोकप्रिय थे। वो बहुत समझदार, विवेकशील और विनम्र थे।
धीरे-धीरे राजनीति का वह दौर खत्म हुआ और संतोष राहुल गीतांजलि स्कूल चलाने वाले एक स्कूल संचालक के रूप में स्थापित हुए। बीच-बीच में उनका नाम स्कूल संचालक के रूप में अपने वीरतापूर्ण कार्यों के लिए अखबार में आया करता था। एक दो बार स्कूल जाकर उनसे मुलाकात भी हुई  चाय पानी हुआ। संतोष राहुल बड़े मस्त आदमी थे। वो नाटे कद के थे। मगर दिल बहुत बड़ा था। उनसे मिलने में मजा आता था। आज संतोष राहुल नहीं हैं तो उनकी याद आई। पुराने साथियों का जाना जारी है। उस समय मीसा में जो छात्र नेता जेल गए थे अब वो सब दिवंगत हो गए। संतोष आखिरी थे।
संतोष राहुल को विनम्र श्रद्धांजलि

Jai Lok
Author: Jai Lok

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