नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जबलपुर से चिर स्मरणीय संबंध रहा है । वे जबलपुर में कांग्रेस के 52 वें सम्मेलन त्रिपुरी अधिवेशन में 1939 में सीताभि पट्टारमैया को 203 मतों से पराजित कर कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे । इस उपलक्ष्य में 52 हाथियों से सजे रथ में उनकी अद्भुत विजयी शोभायात्रा जबलपुर में निकाली गई थी। महात्मा गाँधी ने नेताजी की इस ऐतिहासिक विजय पर अप्रसन्नता प्रगट करते हुये कहा था कि सीताभि पट्टारमैया की पराजय मेरी पराजय है । अंग्रेजों ने नेताजी को जबलपुर और सिवनी की जेल में निरोध में भी रखा था ।
नेताजी ने 1943 में सिंगापुर में आजाद हिंद फौज मुख्यालय में तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा एवम् दिल्ली चलो का आव्हान किया था । अभिवादन के रूप में जय हिंद का प्रयोग करना भी उन्हीं का अभिनव था। नेताजी के इन संपूर्ण वृत्तांत के साक्षी रहे उनके अभिन्न सहयोगी व आजाद हिंद फौज के एड्यूटेंट ( दण्डपाल ) स्व.पंडित श्री करतार चंद शर्मा ने अपने जीवन के उत्तरार्ध का अधिकतम समय जबलपुर में पुत्र नरेश शर्मा सेवानिवृत उप पुलिस अधीक्षक के ओमती जबलपुर स्थित पुलिस क्वार्टर में व्यतीत किया था । यहाँ उन्होंने नेताजी के सानिध्य में व्यतीत किए गए स्वर्णिम काल के संस्मरणों का लेखन किया जो उनके पुत्र नरेश शर्मा के पास एक बहुमूल्य निधि के रूप में उपलब्ध है । पं करतार चंद शर्मा के द्वारा अंग्रेजी में लिखित संस्मरणों के अनुसार नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 में ही स्वतंत्र भारत सरकार का गठन कर लिया था । वे ही प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने अनेक मतभेदों के चलते भी महात्मा गांधी को सर्वप्रथम 04-06-1944 को राष्ट्रीय रेडियो प्रसारण में राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था । नेताजी आजाद हिंद फौज के जवानों को ओजस्वी भाषण देते हुए कहा करते थे कि वहां दूर9बहुत दूर,इस दरिया के उस पार,जंगलों के उस पार तुम्हारे द्वारा वायदा की गई जमीन है,वह हिंदुस्तान की सरजमीं है,वह तुम्हारी जन्म भूमि है,जिसमें तुम पैदा हुए वह तुम्हें पुकार रही है ,खून खून को पुकार रहा है,यह वक्त जाया करने का नहीं है,दिल्ली का रास्ता ही आजादी का रास्ता है, चलो दिल्ली चलो,मैं तुम्हें आजाद हिंदुस्तान में जिन्दा ले जाने का वादा नहीं करता,किंतु जिन्दा रहा तो तुम्हारी पवित्र रूह को अपने आजाद वतन में जरूर ले जाऊंगा,उठो शहादत के लिये तैयार हो जाओ,तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा।पं.करतार चंद शर्मा उत्कृष्ट टाइपिस्ट एवं स्टेनोग्राफर भी थे । अत: नेताजी प्राय: आजाद हिंद फौज के महत्वपूर्ण एवं गोपनीय आदेश उन्हीं को डिक्टेट कर टाइप करवाया करते थे । अपनी प्रत्यक्ष अंतिम हवाई यात्रा के दिन 16 अगस्त 1945 को भी नेताजी ने यह आदेश टाइप करवाया था कि अगले हुक्म तक मेजर जनरल मोहम्मद जमाल क्यानी रेयर हैडक्वाटर सुप्रीम कमान सिंगापुर के ऑफिसर इंचार्ज रहेंगे । इस आदेश पर नेताजी ने हस्ताक्षर किये व उनके आदेशानुसार पं.करतार चन्द शर्मा ने इस आदेश की प्रतियाँ सभी यूनिट्स को भेजी ताकि सभी को विदित हो जाए की नेताजी सिंगापुर में नहीं है । 18 अगस्त 1945 को ऑल इंडिया रेडियो द्वारा समाचार प्रसारित किया गया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का हवाई जहाज फारमूसा वर्तमान नाम ताइवान के ताहुहाकू हवाई अड्डे में आग लग जाने के कारण दुर्घटना ग्रस्त हो गया है जिसमें नेताजी की मृत्यु हो गई है । पंडित करतार चन्द शर्मा ने इस बात को जीवन पर्यन्त कभी भी स्वीकार नहीं किया । वे इंडियन एक्सप्रेस का हवाला देते हुए कहते थे कि जिस हवाई जहाज का दुर्घटनाग्रस्त होने का फोटो प्रकाशित किया गया है वह एक रूसी विमान था जो 1944 में दुर्घटनाग्रस्त हुआ था । इसी संदर्भ में उन्होंने लिखा कि 1946 में जब उन्हें विदित हुआ कि नेताजी के साथ उक्त विमान में रवाना हुए मेजर हिबुबुर्रहमान लाहौर में हैं तो वे अपने एक साथी सहित लाहौर पहुँचे तथा रहमान से भेंट कर पूछा कि उस तथाकथित क्रैश हुए प्लेन में आप कैसे बच गए तो रहमान ने कहा कि पंडित जी आप भी पागल हो गए हैं नेताजी भी कोई मारने वाली चीज़ हैं वे तो अमर हैं। श्री शर्मा जीवन पर्यंत नेताजी के आने की प्रतीक्षा करते रहे व टाइम्स ऑफ इंडिया एवं द इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रसिद्ध समाचार पत्रों में इस आशय के स्तंभ भी लिखते थे कि क्योंकि नेताजी का नाम वार क्रिमिनल की लिस्ट में था अत:वे सामने नहीं आए । उनके इन लेखों पर प्रसिद्ध लेखक श्री खुशवंत सिंह एवं श्री कुलदीप नैय्यर भी यथोचित टिप्पणी किया करते थे । सन 1971972 में जब करतार चंद शर्मा बुरहानपुर मध्य रेलवे में वाणिज्य निरीक्षक के पद पर कार्यरत थे तब उनके स्वतंत्रता संग्राम के सहयोगी , द्वितीय विश्वयुद्ध के साथी , आजाद हिंद फौज के सेनानी कैप्टन शाहनवाज खान बुरहानपुर आये ,जो समय कलकत्ता से सांसद चुनकर भारत सरकार में इस्पात,खान एवम् उद्योग मंत्री थे । इसके पूर्व 1956 में शाहनवाज खान की अध्यक्षता में बनी तीन सदस्यीय समिति ने मात्र चार माह की जांच में 2/1के बहुमत से यह निष्कर्ष निकाला कि नेताजी सुभाष चंद बोस की मृत्यु 18 अगस्त1945 को फऱमोसा ( ताइवान ) के ताईहोकू ( ताइपेई ) में विमान दुर्घटना में हो गई है । समिति ने यह भी कहा था कि नेताजी की अस्थियां जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी हुई है उन्हें भारत लाया जाना चाहिए । इस समिति के तीसरे सदस्य सुरेश चंद्र बोस थे ( नेताजी के बड़े भाई ) वे समिति के इस निर्णय से सहमत नहीं थे । स्व.पं. करतार चंद शर्मा भी समिति की रिपोर्ट से रूष्ट थे । अत: कैप्टन शाहनवाज के बुरहानपुर आने का अवसर प्राप्त होने पर उनसे भेंट करने पहुँचे । 25 वर्षों के अंतराल के उपरांत भी एक नजर में शाहनवाज खान ने उन्हें पहचान लिया व चर्चा के दौरान कहा कि दिल्ली आ जाओ मेरे कार्यालय में मेरे निज सचिव का कार्यभार संभाल लो, वहां से आपका घर होशियारपुर ( पंजाब ) भी नजदीक होगा तो श्री शर्मा ने उनके प्रस्ताव को विनम्रता पूर्वक अस्वीकार करते हुए कहा कि यदि नेताजी आपकी समिति की रिपोर्ट के अनुसार अब इस दुनिया में नहीं हैं तो जब वे दोबारा जन्म लेंगे तब मैं भी फिर आऊंगा और उन्हीं का दण्डपाल या निज सहायक बनूँगा । स्व.पं. करतारचंद शर्मा ने जीवन पर्यंत नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होना स्वीकार नहीं किया व उनके लौट आने की प्रतीक्षा में 19 जनवरी 2001 को जबलपुर में अपने पुत्र नरेश शर्मा के पुलिस आवास से स्वर्गारोहण कर लिया । वर्तमान में उनके कनिष्ठ पौत्र अपूर्व प्रखर शर्मा वन विभाग जबलपुर के फॉरेस्ट रेंज ऑफिसर ( रेंजर ) के पद पर कार्यरत हैं । पं. करतार चंद शर्मा का कृतज्ञ परिवार आज भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जन्मदिन को सबसे बड़े त्यौहार के रूप में जबलपुर ( पुत्र नरेश शर्मा,पौत्र अपूर्व प्रखर शर्मा द्वारा ), खंडवा ( पुत्र सुरेश शर्मा द्वारा ),बेंगलुरु पौत्री चक्षु श्रेष्ठा शर्मा के परिवार द्वारा ) एवं अमेरिका ( ज्येष्ठ पौत्र अनल प्रखर शर्मा द्वारा ) में गर्व के साथ धूम धाम से मनाता है । स्व.पं. करतार चंद शर्मा देश प्रेम का यह गीत सदैव गुनगुनाते रहते थे ।
तेरे दामन से जो आए उन हवाओं को प्रणाम,
चूम लूं मैं उस ज़ुबाँ को जिस पर आए तेरा नाम ।
जय हिंद जय हिंद की सेना ।
लेखक
पं.नरेश शर्मा
सेवानिवृत्त
नगर पुलिस अधीक्षक ,
जबलपुर
