जबलपुर (जयलोक)।जबलपुर महानगर बनने की ओर अग्रसर है जबलपुर महानगर बनता जा रहा है हमने जबलपुर को महानगर बनाने का स्वप्न देखा है हमारे प्रयास जबलपुर को महानगर बनाने जैसे हैं ऐसी गाल बजाने वाली बातें आपने कई लोगों के मुँह से कई मंचों पर सुनी होंगी। लेकिन हकीकत क्या है इस बात का अंदाजा लगाने के लिए सिर्फ यही प्रमाण काफी है कि महीनों से जबलपुर शहर के कई प्रमुख चौराहों के ट्रैफिक सिग्नल आर्थिक अभाव के कारण बंद पड़े हैं और बड़ी-बड़ी बातें करने वाले इन्हें चालू तक नहीं करवा पा रहे हैं। अब इस बात से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जबलपुर किस प्रकार से महानगर बनने की दौड़ में है।
स्वयंसेवी संस्थाओं को भी शर्म नहीं आई
शहर के हर प्रकार के जनप्रतिनिधियों को और जिम्मेदार अधिकारियों को बेशर्मी के परदे से बाहर ना निकाला जाए तो लाखों करोड़ों के टर्नओवर वाले बड़े-बड़े शहर के ऐसे संगठन भी इसी बेशर्मी के परदे के पीछे छिपे नजर आ रहे हैं जो रोजाना अखबारों में यह खबर तो पढ़ रहे हैं कि शहर के कई ट्रैफिक सिग्नल आर्थिक अभाव और बजट नहीं होने के कारण बंद पड़े हुए है।
चंदा करके चालू किए जाएं सिग्नल
शहर में ट्रैफिक सिगनलों के बंद होने के कारण रोजाना जाम की स्थिति निर्मित होती है। कई बार दुर्घटनाएं भी हो रही हैं। कई हफ्तों से यही स्थिति लगातार निर्मित होती चली आ रही है और अखबारों में खबरें प्रकाशित होने के बावजूद भी कोई भी जिम्मेदार इस और ध्यान नहीं दे रहा है। यहां से रोजाना गुजरने वाले लोगों का कहना है कि इससे अच्छा तो प्रशासन कुछ ट्रैफिक सिग्नल के नीचे चंदे का एक डब्बा टांग दे जिसमें शहर के नागरिक ही थोड़ी-थोड़ी राशि करके अपना योगदान दे देंगे और कम से कम एकत्रित राशि से शहर की यातायात व्यवस्था के लिए जरूरी ट्रैफिक सिग्नल चालू तो हो सकेंगे।
तेरा मेरा का संघर्ष जारी
बंद पड़े ट्रैफिक सिगनलों को लेकर स्मार्ट सिटी द्वारा विकसित किए गए ट्रैफिक सिग्नल और जबलपुर यातायात पुलिस द्वारा लगाए गए ट्रैफिक सिगनलों को लेकर भी मतभेद की स्थिति बनी हुई है। स्मार्ट सिटी कंगाली की हालत में पहुंच चुकी है और उसके ठेके खत्म हो जाने के कारण उसके द्वारा लगाए गए ट्रैफिक सिगनलों का मेंटेनेंस तक नहीं हो पा रहा है।
यातायात पुलिस का कहना है कि उसके द्वारा लगाए गए ट्रैफिक सिग्नल चालू हैं लेकिन इन दावों को भी बार बार चुनौती मिलती रहती है।
बड़ी अफसोस की बात यह है कि जबलपुर शहर के एक से एक दिग्गज उद्योगपति और नेताओं को भी लगातार सामने आ रहे समाचारों के बाद भी शहर की अव्यवस्था उसकी मर्यादा और उसकी इज्जत के बारे में कोई फिक्र नहीं हो रही है।
ऐसा नहीं है कि जबलपुर में रोजाना लाखों करोड़ों रुपए का गोलमाल व्यापार नहीं चल रहा हो। यह व्यापार जुआ सट्टे से लेकर भ्रष्टाचार के रूप में फाइलों को आगे बढ़ाने के जरिए भी हो रहा है। काली कमाई करने वाले नेताओं और अधिकारियों को तनिक भी लज्जा आ जाती तो आर्थिक अभाव में बंद पड़े शहर के ट्रैफिक सिग्नल शहर की थू-थू नहीं करवाते।
एक बात और साबित हो गई..
इस पूरे घटनाक्रम से एक बात और यह भी साबित हो गई है कि जबलपुर शहर का कोई भी ऐसा जनप्रतिनिधि नहीं है जो जबलपुर का नेता बनने के लायक हो। तेरी विधानसभा मेरी विधानसभा तेरा वार्ड और मेरा वार्ड इसके ऊपर जबलपुर की राजनीति कई दशकों से आगे बढ़ ही नहीं पाई है। यही कारण है कि जबलपुर को इंदौर के कैलाश विजयवर्गीय और रीवा के राजेंद्र शुक्ला, सागर के गोपाल भार्गव जैसे नेताओं की जरूरत है। जबलपुर का नेता जब तक सक्रिय नहीं होगा या उसे समर्थन नहीं मिलेगा तब तक ना तो जबलपुर की मार्केटिंग हो पाएगी और ना ही ब्रांडिंग हो पाएगी।अन्य शहरों में छोटे-छोटे से पहाड़ और जरा जरा से झरने केवल इसकी मार्केटिंग के कारण पर्यटन की दृष्टि से प्रसिद्ध हो गए। लेकिन जबलपुर में ईश्वर की दी हुई इतनी बड़ी प्राकृतिक सुंदरता और अनुपम स्थान के बावजूद भी हम यहां बंद पड़े ट्रैफिक सिगनलों की बात करने और नेताओं और प्रशासन की व्यवस्था पर चर्चा करने के लिए मजबूर हैं। इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो साफ हो गई है कि जबलपुर का कोई धनी धोरी नहीं है। जबलपुर के विकास के लिए जो इच्छा शक्ति एकजुटता दिखनी चाहिए उसका बड़ा अभाव है। इसी कमजोर इच्छा शक्ति का प्रमाण शहर के बंद पड़े ट्रैफिक सिग्नल दे रहे हैं जिन्हें आर्थिक अभाव में लावारिस सा और जनता को दुर्घटनाग्रस्त होने के लिए छोड़ दिया गया है।
