परितोष वर्मा
जबलपुर (जय लोक)। जबलपुर जिले ने एक बार फिर पूरे प्रदेश में बाजी मारी है। शिक्षा माफिया, धन माफिया पर प्रभावी कार्यवाही करने में प्रदेश में अपना स्थान बनाने के बाद जबलपुर जिला प्रशासन ने राजस्व के क्षेत्र में भी बड़ा उल्लेखनीय कार्य किया है। कलेक्टर दीपक सक्सेना ने मूल रूप से सामने आ रही परेशानी की नब्ज को पकड़ा और पाया कि कलेक्ट्रेट के रिकॉर्ड रूम का संचालन केवल कुछ चुनिंदा लोगों के हाथ में है इसकी व्यवस्था ऐसी बनाई गई थी कि सिर्फ कुछ लोग ही यहां स्वार्थ सिद्धि का खेल कर पा रहे थे। इस व्यवस्था को तोडऩे का काम कलेक्टर ने किया और अब राजस्व रिकॉर्ड रूप दलाली प्रथा से मुक्त हो चुका है।
सामान्य नागरिक अधिवक्ता आसानी से अब राजस्व मामलों में जरूरत पडऩे पर उपलब्ध रिकॉर्ड की प्रति प्राप्त कर सकते हैं।मूल रूप से राजस्व का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है राजस्व अभिलेख जिसके आधार पर ही राजस्व से संबंधित प्रकरणों का निराकरण हो पाता है और आम आदमी को इंसाफ मिल पाता है। 1910 से लेकर वर्तमान तक के रिकॉर्ड को पुन: व्यवस्थित ढंग से जमाने का कार्य और उसे आसानी से आम व्यक्ति को उपलब्ध कराने का कार्य कलेक्टर द्वारा कराया गया है। जबलपुर जिले में रिकॉर्ड रूम का रूपांतरण एक ऐतिहासिक कदम है, जो कलेक्टर दीपक सक्सेना की दूरदर्शिता और संयुक्त कलेक्टर शिवांगी जोशी के उत्कृष्ट क्रियान्वयन से संभव हुआ है। रिकॉर्ड रूम के एक कर्मचारी विनीत झारिया का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह मध्य प्रदेश का पहला जिला है जो इस पहल का संचालन कर रहा है, निकट भविष्य में जिसका उद्घाटन मुख्यमंत्री करेंगे।
रिकार्ड रूम की दिशा और दशा बदली
रिकॉर्ड रूम के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ जो सामने आई हंै उसमें प्रमुख रूप से यह बात भी शामिल है कि चार माह में रिकॉर्ड रूम की दिशा और दशा बदल गई है। यह कहा जा सकता है कि अब किसी प्रकार की नकल या रिकार्ड निकालने के लिए बाबू और चपरासियों के मोहताज रहने की जरूरत नहीं रहेगी। एक प्रकार से रिकॉर्ड कहां रखा गया है कैसे रखा गया है यह बताना आसान है कि इसकी चाबी आवेदक के हाथ में है। उनके आवेदन लगाने पर निश्चित समय में उन्हें नकल प्राप्त हो जाएगी। सालों पुराने कपड़े के बस्तों में बांधे रखें रिकॉर्ड को अब सुव्यवस्थित तरीके से प्लास्टिक के बड़े-बड़े डब्बों में तरीके से जमाया गया है।
तहसील के हिसाब से कलर कोडिंग
एक बार में कम समय में तत्काल रिकॉर्ड प्राप्त करने के लिए यह प्रयोग भी किया गया है कि हर तहसील की अलग कलर कोडिंग कर प्लास्टिक बॉक्स को जमाया गया है जिसमें रिकॉर्ड रखा गया है। इन प्लास्टिक के बॉक्स पर मौजावार, वर्षवार, मदवार, जानकारी दर्ज की गई है।
ऑनलाइन एप्लीकेशन तैयार
एक कदम और आगे बढ़ते हुए आधुनिक दौर के अनुरूप ऑनलाइन एप्लीकेशन तैयार की गई है जिसमें सभी जानकारी को डाला गया है पोर्टल पर केस की जानकारी देते ही है पता चल जाएगा कि किस रैक में किस खंड में और किस बक्से में किस नंबर के साथ वह रिकॉर्ड रखा हुआ है। आवेदक के हाथ में चाबी इसलिए कहा गया है क्योंकि अब घर बैठे आवेदक को यह जानकारी भी मिल सकती है कि उसका केस कहां रखा हुआ है रिकॉर्ड रूम से बाहर लगाए गए कियोस्क पर केस नंबर डालकर रिकॉर्ड रूम में केस की लोकेशन का पता चल जाएगा। कैस की लोकेशन का प्रिंट निकालने की सुविधा भी दी गई है ताकि प्रिंट दिखाकर आसानी से नकल प्राप्त की जा सके।
रिकॉर्ड रूम के कर्मचारियों को बड़ी सुविधा मिली
कलेक्टर दीपक सक्सेना के इस नवाचार से रिकॉर्ड रूम में पदस्थ अधिकारी कर्मचारियों को भी बड़ी सुविधा और राहत मिली है। वर्षों से वह गंदे बदबूदार रिकार्ड रूम के कमरे में बैठने के लिए मजबूर थे। रिकॉर्ड ढूंढने के लिए उन्हें काफी मशक्कत भी करना पड़ती थी और कुछ लोग इस आपदा में अवसर की तलाश करते रहते थे। यह दौर अब खत्म हो जाएगा।
बैंक के लॉकर जैसा दिखने लगा रिकॉर्ड रूम
वर्तमान में 4 महीने की कड़ी मशक्कत के बाद अब कलेक्ट्रेट का रिकॉर्ड रूम किसी बैंक के लॉकर जैसा दिखने लगा है। इसे बहुत ही व्यवस्थित तरीके से जमाया गया है और हर रिकॉर्ड की उम्र 20 से 25 साल बढ़ गई है।
