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धर्म की आड़ में सजाई जा रही राजनीति की दुकान

परितोष वर्मा।
जबलपुर (जय लोक)। संकरधानी में इन दिनों नेतागिरी चलाने और चमकाने का एक नया शक्ल बन गया है लोग अब धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से खुद को नेता के रूप में प्रोजेक्ट करने लगे हैं। जबकि संस्कारधानी के इतिहास में नेता वही बन पाया है जो अपने लोगों से उनकी समस्याओं से और समस्याओं के निराकरण के लिए प्रशासन और आम जनता के बीच में सेतु का काम करता है। लेकिन फ्लेक्स बाजी और सोशल मीडिया में खुद को बहुत बड़ा बना नेता साबित करने की कोशिश नेता बनने की इस मूल धारणा से नई पीढ़ी को बहुत दूर करते जा रही है। ऐसे धर्म की आड़ में नेतागिरी करने वालों के समथज़्क भी सिफज़् वही लोग हैं जो उनसे किसी न किसी रूप से आर्थिक लाभ या सामाजिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों में शहर में ऐसे कुछ आयोजन संपन्न हुए हैं जिसके बाद यह चर्चा जन सामान्य में उभर कर सामने आई है की राजनीति के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने वाले लोग धर्म का सहारा लेकर धर्म की आड़ में अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने का कार्य कर रहे हैं। सबसे चर्चित बात यह भी है कि धर्म की आड़ में किया जा रहा है यह कार्य धर्म से संबंधित काम है और अपनी राजनीतिक छवि को उभरने का प्रयास अधिक नजर आ रहा है।
स्थिति यह है कि मंदिरों में आरती के समय घंटा और घंटी बजाने के लिए लोग कम पढ़ रहे हैं उनकी जगह इलेक्ट्रानिक मशीनों ने ले ली है लेकिन धर्म की आड़ में राजनीति करने वाले इस विषय में चिंता नहीं कर रहे। इस बात का प्रयास नहीं हो रहा है कि मंदिरों में पूजन पाठ और नियमित रूप से होने वाली आरती के समय किस प्रकार से देवी देवताओं की आराधना करने वालों की संख्या बढ़ सके। कुछ ऐसे धर्म भी है जिनके अनुयाई इस मामले में कट्टर है वह अपना सब काम छोडक़र धार्मिक आस्था के निश्चित समय में एक स्थान पर उपस्थित होकर अपने ईश्वर के प्रति समर्पण और उनकी आराधना का कार्य करते हैं। युवा नेताओं को अब युवा पीढ़ी के समक्ष किस प्रकार के संदेश भी प्रस्तुत करना चाहिए जो धर्म को आधार बनाकर राजनीति कर रहे हैं उन्हें अपने युवा साथियों को इस बात की प्रेरणा देनी चाहिए कि वह भी अपने आसपास के मंदिरों में सुबह शाम होने वाली आरती और देवी देवताओं की आराधना के समय निश्चित रूप से उपस्थित हूं और अपने धर्म के प्रति आस्था का समपज़्ण का सकारात्मक प्रदर्शन करें। लगी यह सारी बातें बहुत दूर की है क्योंकि सस्ती लोकप्रियता पाने और जल्द से जल्द खुद को प्रचारित नेता की श्रेणी में लाने के उद्देश्य से किए जा रहे कार्य आलोचना और चचाज़् दोनों के केंद्र बन रहे हैं।
हाल ही में शहर के हृदय स्थल पर आयोजित हुई एक भजन संध्या में भी भगवान श्री राम की प्रतिमा के निराधार का मामला जमकर गरमाया। सोशल मीडिया के नेता के रूप में जानने वाले एक व्यक्ति ने अपने व्यक्तिगत कार्यक्रम को धार्मिक स्वरूप देते हुए बड़ा आयोजन किया। भजन गायक आए और उनके कारण काफी भीड़ आई। भीड़ देखकर उनके पार्टी के बड़े-बड़े नेता भी आए और अपने गुणगान से लेकर उसे नेता के समर्थ के किस कसीदे पढ़ दिए।
यह प्रचलन संस्कारधानी की स्वच्छ राजनीति और आधार पूर्ण राजनीति के विपरीत चल पड़ा है। राजनीतिक लोगों के बड़े नाम को भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि वह किसी आयोजन में जाकर किस प्रकार के लोगों के समर्थन में मंच साझा कर रहे हैं। यह एक सामान्य सी नई परंपरा प्रारंभ हो रही है कि नेता बनने के लिए सोशल मीडिया और धार्मिक मंच का सहारा लिया जाए। जबकि नेता के मूल अवधारणा वही है जो आम जनता और उसकी समस्याओं के साथ प्रशासन के बीच में उनके निराकरण हेतु सेतु का कार्य करें।
बहरहाल यह परंपरा ना तो सर्व मान्य है ना ही स्वीकार्यता योग्य है। लोग अपने-अपने नजरिए से इन बातों का आकलन कर जरूर रहे हैं लेकिन जिन्होंने जबलपुर की राजनीति और इसके कमजोर नेतृत्व को देखा है वह यह समझ रहे हैं कि इस प्रकार के नेता किसी भी हाल में ना तो जबलपुर का भला कर सकते हैं और ना ही अपने क्षेत्र की जनता के लिए कुछ ऐसा कर पाए जी जो मिल का पत्थर स्थापित हो।
युवा देश का भविष्य है युवा राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है संस्कारधानी में ऐसे युवाओं की राजनीतिक क्षेत्र में उपस्थिति अनिवार्य है जो जमीनी समस्याओं को लेकर मुकरता के साथ अपने लोगों के लिए खड़े हो। लेकिन धार्मिक मंच में केवल फोटो वीडियो रील बना लेने से यह मंशा पूरी नहीं हो पाएगी।
राजनीति की दुकान सजाने के लिए लोगों ने धर्म और धार्मिक कार्यक्रमों को सबसे आसान जरिया पकड़ लिया है। प्रशासनिक हलके में भी लोग इस बात को समझ रहे हैं और वह इस प्रकार के नेताओं को इस प्रकार की गंभीरता से लेते हैं। एक दौर था जब जबलपुर में ऐसे नेता भी हुए हैं जिन्होंने साइकिल और रिक्शा से अपनी विचारधारा और लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए आवाज उठाने के लिए लाउडस्पीकर लगाकर दो-तीन लोगों के साथ ही लंबा संघर्ष किया है।
अब उन लाउडस्पीकर की जगह बड़े-बड़े डीजे और बड़ी-बड़ी इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीनों ने ले ली है। यह कुछ घंटे तक तो कार्य करती है लेकिन उसके बाद उसका कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोग भी यह समझ जाते हैं कि आयोजन की भावना क्या है और वह सिर्फ  अपनी पब्लिसिटी के लिए यह कार्य कर रहा है।

 

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Jai Lok
Author: Jai Lok

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