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धीरे धीरे ढहने वाली एंपायर टाकीज अंतत: ढहा दी गई…

चैतन्य भट्ट
शहर के जिन दशज़्कों को अंग्रेजी फिल्में देखने का शौक रहा होगा उनकी यादों में आज भी सिविल लाइंस स्थित दो टाकीज ‘डिलाइट’ और ‘एंपायर’ जिंदा होंगी। इन दोनों ही थियेटरों ने कई वर्षों तक अंग्रेजी फिल्मों को अपने परदे पर उतारा। बाद में जब बड़ी टाकीजों की जगह ‘मिनी थियेटरों’ ने लेना शुरू किया तब इन टाकीजों ने भी अपने आप को बदलने का प्रयास किया। डिलाइट टाकीज होटल में बदल गई लेकिन अंग्रेजों द्वारा निर्मित एम्पायर कानूनी विवादों के चलते यूं ही एक इमारत बन कर रह गई धीरे धीरे उसकी दीवारें कमजोर होती गईं और फिर गत दिवस उसे जिला प्रशासन के आदेश पर पूरी तरह ढहा दिया गया और एंपायर टाकीज के अंत के साथ ही उसकी यादें मिट्टी में दफन हो गई।
एंपायर पहले एक ‘बाल डांस थिएटर’ हुआ करता था जो बाद में एक भव्य  सिनेमाघर  में तब्दील हो गया, अंग्रेजी फिल्मों के लिए मशहूर एम्पायर टाकीज के साथ शहर के पुराने दर्शकों की यादें आज भी जुड़ी हुई हैं जिन्होंने उसका स्वर्णिम युग अपनी आंखों से देखा है।
शहर के सिविल लाइंस इलाके में एम्पायर टॉकीज का गोलाकार हाल अंग्रेजों की वास्तु कला का अद्भुत नमूना था एक अंग्रेज महिला ‘वैलिमी’ की मिल्कियत वाले एंपायर थिएटर में उन दिनों मिलिट्री के बड़े अफसर और उनकी बीवियां शाम को बाल डांस करने आया करते थे। करीब 11 साल तक बाल डांस थिएटर के रूप में चलने वाले एंपायर थिएटर की मालकिन जब वापस अपने देश जाने लगी तो उन्होंने अपने जमाने के मशहूर फिल्म अभिनेता प्रेमनाथ के पिता राय बहादुर करतार नाथ से इसे बेचने की इच्छा जताई जो उस वक्त आईजी पुलिस हुआ करते थे, बातचीत के बाद करतार नाथ ने इसे खरीद लिया चूंकि ये जगह ‘मिलिट्री ओल्ड ग्रांट’ रिलीज के तहत आती थी इसलिए इसकी लीज करतार नाथ के नाम पर ट्रांसफर हो गई और इसका मालिकाना हक करतार नाथ को मिल गया यह बात 1952 की है।
उन दिनों करतार नाथ के पुत्र प्रेमनाथ जो मुंबई में अभिनेता के रूप में स्थापित हो चुके थे और वर्मा ब्रदर की फिल्म ‘आराम’ में काम कर रहे थे चूंकि उनके पिता ने एक अच्छा खासा थिएटर जबलपुर में खरीद लिया था और उसे वे सिनेमाघर का रूप देना चाहते थे इसलिए प्रेम नाथ ने अपने निर्माता वर्मा ब्रदर्स के सामने एक शर्त रखी कि इस फिल्म के मेहनताने के बदले उन्हें एक ‘फोटो फोन मशीन’ और ‘आरसीबी साउंड सिस्टम’ दे दें ताकि इसकी मदद से एंपायर को सिनेमाघर में तब्दील कर सकें, वर्मा ब्रदर्स ने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए ये दोनों चीजें प्रेमनाथ को दीं और बाल डांस थिएटर के रूप में पहचाने जाने वाला एंपायर एक सिनेमा घर में बदल गया चूंकि ये अंग्रेजों के जमाने की यादगार थी इसलिए तय किया गया कि यहां केवल अंग्रेजी फिल्में ही लगाई जाएंगी और फिर एक दौर शुरू हुआ अंग्रेजी की सुपरहिट कहीं जाने फिल्मों का।
तकरीबन 20 साल तक एंपायर सिनेमा के छोटे पर्दों पर फिल्मों का प्रदर्शन होता रहा पर 1972 में इसके छोटे पर्दे की जगह 48 गुणित 30 फीट लंबे चौड़े पर्दे के साथ सुपर स्टीरियो फोन और साउंड सिस्टम लगाया गया। उन दिनों ताराचंद बडज़ात्या की स्वामित्व वाली राजश्री पिक्चर को सारे भारत में अपनी फिल्में रिलीज करवाने के लिए अच्छे सिनेमाघर की जरूरत थी इसलिए उन्होंने इसको 2 साल के लिए किराए पर ले लिया और अपने प्रोडक्शन हाउस की फिल्म ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’ रिलीज की जिसमें नायक की भूमिका प्रेमनाथ के बेटे  प्रेम किशन ने निभाई थी इस फिल्म ने 25 हफ्ते चलकर एक रिकॉर्ड कायम किया था, 2 साल बाद जब राजश्री पिक्चर्स का अनुबंध खत्म हो गया तब टॉकीज के संचालकों ने एक बार फिर दोपहर के दो शो में पुरानी हिंदी फिल्में और शाम और रात के दो शो में अंग्रेजी फिल्में दिखाने का निर्णय लिया। गुरु दत्त द्वारा निर्मित कालजई फिल्म ‘कागज के फूल’ जो अपने जमाने की सुपर फ्लॉप फिल्म कही जाती थी ने एम्पायर के मेटनी शो में दो महीने चलकर एक अलग रिकॉर्ड बना दिया। हिंदी फिल्मों के अलावा तमिल, तेलुगू, बांग्ला फिल्में भी एम्पायर के सिल्वर स्क्रीन पर दिखाई दी थीं।
प्रेमनाथ के निधन के बाद उनके परिजनों ने इस सिनेमा के रखरखाव में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जिसके चलते यहां व्यवस्थाएं गड़बड़ा गई। कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच विवाद बढऩे लगे। इससे तंग आकर 10 अक्टूबर 1994 में एंपायर टॉकीज में तालाबंदी कर दी गई। बाद में प्रेमकिशन ने इसे बेचने का प्रयास किया पर कानूनी अड़चनों के कारण न तो वे इसे बेच पाए और ना ही लीज ट्रांसफर करवा पाए, इसी बीच एंपायर टॉकीज का बड़ा हिस्सा गिर गया  और बाकी का हिस्सा बिल्कुल जर्जर हो गया था इसलिए नगर निगम ने इसे ढहा कर हमेशा के लिए इसका वजूद खत्म कर दिया।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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