हाई कोर्ट के निर्देश – इंडेक्स मेडिकल कालेज के आचरण की जाँच जरुरी, 61 मेडिकल स्टूडेंट्स की याचिका पर दिये निर्देश,देय राशि का करना होगा भुगतान
जबलपुर (जय लोक)। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ के न्यायमूर्ति श्री विवेक रूसिया एवं न्यायमूर्ति श्री विनोद कुमार द्विवेदी की युगलपीठ ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग व मप्र आयुर्विज्ञान विवि, जबलपुर को इंटेक्स मेडिकल कालेज हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, इंदौर के आचरण की जाँच करने के सख्त निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने साफ किया है कि यह जाँच इसलिए आवश्यक है क्योंकि इस निजी मेडिकल कालेज के मनमाने आचरण के कारण राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों के डाक्टरों को अपना स्वीकार्य दावा प्राप्त करने के लिए बार-बार इस हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। यदि कोई उपयुक्त कार्रवाई आवश्यक है, तो वह की जाए, ताकि भविष्य में किसी भी छात्र को हाईकोर्ट आने के लिए मजबूर न होना पड़े। संबंधित कालेज को भी निर्देशित किया जाता है कि वह याचिकाकर्ताओं के प्रत्येक मामले की जाँच करने के बाद उन्हें देय राशि आरटीजीएस/ यूपीआई या डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से तत्काल वापस करें, साथ ही पात्रता की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक आठ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भी भुगतान करें। हाई कोर्ट ने इन टिप्पणियों और निर्देशों के साथ याचिका का पटाक्षेप कर दिया।
याचिकाकर्ता रीवा निवासी डॉ. अभिषेक पांडे सहित 61 एमबीबीएस उपाधिधारक व मेडिकल पीजी कोर्स कर चुके मेडिकल छात्रों की ओर से अधिवक्ता निशांत दत्त ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि सभी याचिकाकर्ताओं ने इंडेक्स मेडिकल कालेज, इंदौर से एमबीबीएस कोर्स किया था। उसके बाद पीजी कोर्स में दाखिला लिया था। इस अवधि में अपनी सेवाएं दीं, जिसके एवज में स्टायपेंड के वे पात्र हैं। उनकी माँग है कि राज्य सरकार के 7 जून, 2021 और 17 नवंबर, 2022 के परिपत्र/आदेश के अनुपालन में संशोधित दर पर स्टायपेंड की बकाया राशि का भुगतान ब्याज सहित करने और 25 हजार रुपये की जमानत / सुरक्षा राशि वापस करने का निर्देश दिया जाए। याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2019 में 25 हजार रुपये की राशि जमानत राशि के रूप में जमा की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार द्वारा दो परिपत्रों के माध्यम से स्टायपेंड की दर संशोधित की गई थी, जो एक अप्रैल 2021 मे पीजी कोर्स करते हुए मेडिकल कालेजों में अपनी सेवाएं देने वाले डाक्टरों को देय थी, इसलिए, याचिकाकर्ता भी संशोधित स्टायपेंड पाने के हकदार हैं। याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादियों द्वारा कम दर पर स्टायपेंड दिया गया था। चूंकि ने कालेज में पढ़ रहे थे, इसलिए उस प्रासंगिक समय पर उन्होंने कोई विरोध नहीं जताया। बहस के दौरान इंडेक्स कालेज का जवाब आया।
संबंधित दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता रेखांकित की गई। इस पर कोर्ट ने छात्रों का पक्ष सुनने के बाद साफ किया कि सभी दस्तावेज इंडेक्स मेडिकल कालेज के पास पहले से ही उपलब्ध है क्योंकि निश्चित रूप से याचिकाकर्ताओं को प्रवेश दिया गया था। छात्र फिलहाल अध्ययनरत हैं तथा उन्होंने अपना पीजी कोर्स पूरा कर लिया है।
देश के विभिन्न स्थानों से याचिकाकर्ताओं को अनावश्यक रूप से राशि प्रात करने के लिए बुलाने का मनमाना रवैया उन्हें परेशान करने के अलावा और कुछ नहीं है। कोर्स होने के बाद इंडेक्स मेडिकल कालेज को स्वप्रेरणा से याचिकाकर्ताओं को बिना किसी अभ्यावेदन प्रस्तुत करने या हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य किए बिना निर्विवाद राशि वापस कर देनी चाहिए थी।
लिहाजा, इंडेक्टस मेडिकल कालेज ब्याज का भुगतान करने के लिए भी उतरदायी है। 61 छात्रों का पक्ष उच्च न्यायालय में अधिवक्ता निशांत दत्त द्वारा प्रस्तुत किया गया।
