जबलपुर (जयलोक)
सनातन धर्म में नदियों, तालाबों का बहुत ही महत्व है। हर धार्मिक कार्य में इनकी उपयोगिता बताई गई है। आज से पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष शुरू हो गए हैं, इस दिन लोग अपने पितरों को घर बुलाने के लिए नदियों के किनारे जाते हैं। नदियों के किनारे पिंडदान और तर्पण करने की परंपरा सनातन काल से ही चली आ रही है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पवित्र नदियों के किनारे तर्पण या पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रतिवर्ष लाखों लोग विदेशों से केवल पिंडदान करने के लिए भारत पहुंचते हैं।
गया जी का महत्व
पिंडदान नर्मदा समेत सभी नदियों में इस क्रिया को किया जा सकता है, लेकिन सबसे अधिक पुण्य या मान्यता गया जी घाट की है। कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ की आत्म शांति के लिए यहां पिंडदान किया था तभी से यह मान्यता चली आ रही है। गरुड़ पुराण में वर्णित है कि पिंडदान करने गया जाने के लिए जो लोग घर से निकलते हैं, उनके एक एक कदम पितरों को स्वर्ग के द्वार जाने वाली सीढ़ी बन जाते है। स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता। पुराणों के अनुसार भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी को प्रसन्न किया। उसने यह वर मांगा कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए। उसके दर्शन से सभी पाप मुक्त हो जाएं। ब्रम्हाजी से वर प्राप्त होने के बाद लोग पाप करने के बाद भी गयासुर के दर्शन करके स्वर्ग पहुंच जाते थे। जिससे स्वर्ग पहुंचने वालों की संख्या तेजी से बढऩे लगी। इस समस्या से बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया। इससे प्रसन्न देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि इस स्थान पर जो भी तर्पण करने पहुंचेगा उसे मुक्ति मिलेगी।