
(जय लोक)। इंदौर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में दो नवजात शिशुओं की उंगलियां वहां रहने वाले चूहे कुतर गए जिसके कारण उन दोनों की दुखद मौत हो गई। बड़ा हल्ला मचा कि इतने बड़े अस्पताल में चूहों की फौज आतंक मचाए हुए हैं और कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही। दरअसल चूहे कोई प्रदर्शनकारी तो होते नहीं है जिनको पुलिस डंडा लेकर खदेड़ दे या फिर हिरासत में लेकर दो-चार घंटे के लिए अंदर कर दे। वे देखते-देखते कब अपने बिल के अंदर पहुंच जाएं, कब नाली में घुस जाएं, कब दीवाल पर चढ जाएं कोई नहीं जानता, जब ज्यादा खोजबीन हुई तो पता लगा कि इन अतिक्रमणकारी चूहों के खिलाफ एक्शन लेने के लिए बाकायदा अस्पताल के प्रबंधन ने एक कंपनी को ‘पेस्ट कंट्रोल’ के लिए ठेका दे रखा है उस कंपनी को हर महीने दो लाख रुपए सिर्फ इस बात के लिए दिए जा रहे हैं कि वो अस्पताल से चूहों को बाहर कर दे लेकिन अस्पताल में जबरिया कब्जा करने वाले चूहे इतने सीधे साधे तो होते नहीं है कि वे कंपनी के पेस्ट कंट्रोल से डर के अस्पताल छोडक़र भाग जाएं। जब ज्यादा खोजबीन हुई तो पता लगा कि कंपनी दस महीने में कुल जमा डेढ़ सौ चूहे ही भगा पाई है और उसे बीस लाख का पेमेंट हो चुका है यानी एक चूहा भगाने में सरकार का लगभग ‘तेरह हजार रुपया’ खर्च हो गया अब आप ही सोच लो कि चूहा कितना कीमती होता है जिसको भगाने के लिए सरकार तेरह हजार रुपए प्रति चूहा खर्च कर रही है। दरअसल ये सब गोलमाल कंपनी और अस्पताल में तैनात अफसरों और डाक्टरों के बीच का है बेचारे चूहों को क्या मालूम कि उनको भगाने के लिए सरकार ने कितने का ठेका कंपनी को दिया है इधर कंपनी का भी कहना है कि हम तो चूहों को भगा देते हैं लेकिन वे फिर आ जाते हैं अब इसमें हम क्या करें हमने तो अपने हिसाब से पैसा लगा दिया। लेकिन जनता को मालूम है कि कितना पैसा चूहों को भगाने में खर्च हुआ और कितना पैसा जिम्मेदारों को खिलाने में। दोनों मिलकर चूहों को भगाने के लिए मिलने वाले माल की बंदर बांट कर रहे हैं और बेचारे चूहे अंजान बने हुए हैं उनको कानों कान खबर नहीं हो रही कि उनके नाम पर सरकार को कैसा चूना लगाया जा रहा है अगर उन्हें ऐसा पता होता तो वो देशभक्त चूहे खुद-ब-खुद अस्पताल को छोडक़र चले जाते कि सरकार का पैसा जनता का पैसा है और जनता का पैसा इस तरह हम बर्बाद नहीं होने देंगे, लेकिन जितनी राशि पेस्ट कंट्रोल और चूहा को भगाने में लगाई गई है उस राशि को लेकर अपने को बड़ा कंफ्यूजन है कि वे वास्तव में ‘चूहे ही थे या फिर हाथी’।

मेहंदी लगी मेरे हाथ
विंध्य इलाके के सतना जिले में एक स्कूल में जब मध्यान भोजन का वितरण नहीं हुआ तो उसकी जांच हुई कि आखिर मध्यान भोजन का वितरण क्यों नहीं हुआ तो पता लगा कि मध्यान भोजन बांटने वाली महिला के हाथ में मेहंदी लगी हुई थी और वो भी रचने की प्रक्रिया में थी इसलिए उसने मध्यान भोजन नहीं बांटा। अफसर ने उसे महिला को बर्खास्त कर दिया लेकिन अपने हिसाब से तो ये सरासर अन्याय है महिलाओं और मेहंदी का चोली दामन का साथ होता है महिलाओं से संबंधित कोई भी त्यौहार हो सबसे पहले वे अपने हाथों में मेहंदी ही लगाती हैं और कितने ही बुरे हाथ हो मेहंदी उनको खूबसूरत बनाने में अपना रोल अदा करती है। अब आप खुद सोचो कि साल भर तो उसने मध्यान भोजन बांटा एक दिन अगर उसने मेहंदी लगा ली और उसको रचने का समय दे दिया इस बीच में मध्यान भोजन का समय हो गया और वो भोजन नहीं बांट पाई तो ऐसा क्या गुनाह कर दिया। अरे भाई मेहंदी लगाई थी उसी हाथ से अगर मध्यान भोजन बांट देती तो हाथों में लगी मेंहदी की लाई लुट जाती उसने तो अच्छा ही सोचा था कि ऐसा ना हो कि भोजन में मेहंदी टपक जाए और बच्चों को ‘फूड प्वाइजनिंग’ हो जाए यही सोचकर उस बेचारी ने भोजन नहीं बांटा लेकिन अफसर तो अफसर होते हैं जरा सी गलती क्या हो गई उस बेचारी की नौकरी चली गई अब बेचारी जगह-जगह एक ही गाना गाते घूम रही है ‘मेहंदी लगी मेरे हाथ रे’
दो पेज के चार हजार
शहडोल की एक ग्राम पंचायत में एक बिल आया है ‘चार हजार रुपए’ का और बिल भी किस चीज का है मात्र ‘दो पेज की फोटो कॉपी’ का यानी एक पेज की फोटो कॉपी का दो हजार रुपए में हुई। जब बिल के बारे में पूछताछ की गई तो सरपंचों का कहना था ये सब तो होता ही रहता है अब वसूली की बात चल रही है। वैसे अपने हिसाब से अगर दो पेज की फोटो कॉपी का बिल चार हजार आ भी गया है तो कोई आश्चर्य की बात तो है नहीं। यहां तो बिना काम किये लाखों के बिल सैंक्शन हो जाते हैं उनका भुगतान भी हो जाता है जो सडक़ बनी नहीं ठेकेदार और अफसर मिलकर उसका बाकायदा पेमेंट कर लेते हैं और फिर आपस में बांट भी लेते हैं बेचारा सरपंच कुल मिलाकर चार हजार की घपलेबाजी कर रहा था उसी को लेकर लोगों की भौंहें तन गई अरे भाई ये भी तो हो सकता है कि जिस दुकान से वो फोटो कॉपी करवा रहा था उसकी फोटोकॉपी मशीन में गड़बड़ी हो और वो प्रिंट ठीक ना रहा हो क्योंकि जिस चीज की फोटो कॉपी निकलवाना है वो फोटो कॉपी में साफ-साफ दिखना चाहिए इसलिए सरपंच ने कह दिया होगा कि जब तक प्रिंट बिल्कुल क्लियर ना आए तब तक प्रिंट निकालते रहो और इसी चक्कर में हो सकता है कि दो हजार पेज लग गए हों तब जाकर साफ-सुथरा प्रिंट आया हो अब दो हजार पेज के दो रुपए प्रति पेज के हिसाब से चार हजार का बिल बना भी दिया तो उसमें तो कोई गड़बड़ी का सवाल ही पैदा नहीं होता। अपना तो उस फोटोकॉपी वाले से यही कहना है कि जो दो हजार पेज खराब प्रिंट के निकले हैं उन्हें एक ग_र में बांध के बिल पास करने वालों के पास दे आए और बताओ कि देखो हुजूर मैने एक पैसे की भी गड़बड़ी नहीं की है जितने पेज लगे थे उसी का पैसा लिया मेरा कितना समय बर्बाद हुआ इसका तो कोई मैने कोई क्लेम ही नहीं किया अपने को लगता है कि इस कवायत से उसका बिल जरूर पास हो जाएगा।

सुपर हिट ऑफ द वीक
श्रीमान जी अस्पताल में इलाज करवाने गए
नर्स ने कहा ‘आप लंबी लंबी सांस लीजिए’
श्रीमान जी ने लंबी सांसें ली
‘कैसा महसूस हो रहा है’ नर्स ने पूछा
‘कौन सा परफ्यूम लगा कर आई हो मजा आ गया’ श्रीमान जी का उत्तर था।
Author: Jai Lok







