चैतन्य भट्ट
(जय लोक)। उत्तर प्रदेश में झाँसी के सबसे बड़े अस्पताल में आग लगने से अनेक नवजात शिशुओं की दुखद मृत्यु हो गई, आग लगने के कई कारण बताए गए हैं जिसमें एक प्रमुख कारण ये भी है कि अस्पताल में लगा फायर सिस्टम काम नहीं कर रहा था जिसके कारण आग पर काबू नहीं पाया गया और अनेक बच्चे बेवजह काल के गाल में समा गए । सरकारी ढर्रा तो ऐसा होता ही है कि जब कोई घटना घट जाती है तब पूरा शासन, प्रशासन एकदम अटेंशन की मुद्रा में खड़ा हो जाता है, तुरंत फुरंत बड़े बड़े अफसर, मंत्री घटनास्थल पर पहुँच जाते हैं लेकिन घटनाओं के पहले कभी ऐसा नहीं होता कि इन चीजों की रेगुलर जाँच कर ली जाए ,उधर झाँसी के अस्पताल में आग लगी और इधर पूरे मध्यप्रदेश में जाँच की नौटंकी के निर्देश जारी हो गए। स्वास्थ्य विभाग ने पूरे प्रदेश के अफसरों को निर्देश दे दिए कि सभी अस्पतालों की जाँच पड़ताल की जाए, उनके फायर सिस्टम को देखा जाए कि वे आग बुझाने में सक्षम हैं कि नहीं या यूंही अस्पतालों में टंगे हुए हैं। जबलपुर में तो एक अस्पताल में आग लगने से आठ लोगों की मौत भी हो चुकी है उस वक्त भी बड़ा हल्ला मचा था तमाम सरकारी और निजीअस्पतालों को नोटिस दे दिए गए थे नगर निगम ने फायर सिस्टम की जाँच शुरू कर दी थी लेकिन ‘हाथ की आई शून्य’ कागज चलते रहे, जाँच होती रही किसी ने कुछ नहीं किया जो अस्पताल जैसे थे वे वैसे ही चलते रहे और आज भी चल रहे हैं और ना ही किसी जिम्मेदार अधिकारी पर कोई कड़ी कार्यवाही हुई ,वे ठाठ से अपने-अपने पदों पर जमे हुए हैं जिन्होंने अस्पताल के निरीक्षण करने के बाद उसे क्लीन चिट दी थी, अब चूंकि झाँसी के अस्पताल में आग लग गई है इसलिए यहां भी अब नाटक बाजी शुरू करना बहुत जरूरी है, जैसे पिछले दिनों एक कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में आग लगने से कुछ छात्र-छात्राओं की मौत हो गई थी, उसके बाद भी ऐसे ही आदेश आए थे कि तमाम बेसमेंटों की जाँच की जाए कि कोचिंग संस्थान वाले बेसमेंट में क्लास तो नहीं लगा रहे हैं एक-दो दिन तक जाँच टीम की नाटक नौटंकी चलती रहे और फिर सब भूल गए ना तो कोई कोचिंग बंद हुई ना बेसमेंट में बनाई गई दुकानें हटाई गई। इस तरह की नौटंकी तो हमेशा से होती आई है और होती रहेगी जिन लोगों पर इन चीजों की जिम्मेदारी होती है, उनको मालूम है कि अपना कुछ नहीं बिगडऩे वाला और जिनके खिलाफ कार्यवाही होना है उनको भी मालूम है कि जाँच पार्टी आएगी उसकी सेवा कर दी जाएगी और वो चुपचाप वापस चली जाएगी। चार-छह दिन इस बात का हल्ला रहेगा ,अखबारों में खबरें छपेंगी कि नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग ने तमाम अस्पतालों की जाँच पड़ताल कर उन्हें नोटिस दे दिए हैं। अपने को तो लगता है कि अपनी सरकार और अपना प्रशासन इस कहावत पर बड़ा यकीन रखता है ‘जब जागो तभी सवेरा’ लेकिन दुखत तथ्य तो ये है कि ये पाँच सात मिनट के लिए जागने के बाद फिर गहरी नींद में सो जाते हैं और फिर ऐसे सोते हैं कि कुंभकरण भी उनकी नींद के सामने शर्मा जाए ।
कार्डों के बोझ से दब रहा इंसान
आखिरकार कितने कार्ड इंसान अपनी जेब में या पर्स में रखे इनकी तो गिनती ही खत्म नहीं हो रही। पर्स में भले ही दस रुपए का नोट ना हो लेकिन कार्ड ऐसे भरे रहेंगे कि दूर से देखकर ऐसा लगेगा कि बंदे के पर्स में काफी माल है ।अब जो इसे माल समझ रहे हैं उन्हें क्या पता कि आम आदमी के जेब में कौन-कौन से कार्ड है जिस आदमी की भी जेब या पर्स टाटोलोगे तो उसकी जेब या पर्स में आधार कार्ड, समग्र आईडी कार्ड, वोटर कार्ड ,ड्राइविंग लाइसेंस कार्ड, वाहन लाइसेंस कार्ड, वाहन रजिस्ट्रेशन कार्ड, एटीएम कार्ड, आयुष्मान कार्ड, पैन कार्ड, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, हेल्थ इंश्योरेंस कार्ड रखे मिल जाएंगे। सरकार को भी पता नहीं कौन-कौन से नए-नए कार्ड बनवाने का शौक चढ़ा हुआ है कहीं केंद्र सरकार कार्ड बनाने के आदेश दे रही है तो कहीं स्टेट गवर्नमेंट अपने स्तर पर कार्ड बना रही है। कितने कार्ड बनवाए आदमी और उसको कितना सुरक्षित रखें। लेकिन अपना मानना तो ये है भैया कि सरकार जितने कार्ड बनवाने के आदेश दे तत्काल से पेशतर कार्ड बनवा लो कब कौन से कार्ड की जरूरत पड़ जाए कोई नहीं जानता। ना कहो आप भले ही जिंदा हो लेकिन अगर आपका लाइफ सर्टिफिकेट कार्ड नहीं है तो सरकार आपको जिंदा नहीं मानेगी आप भले ही कहते रहो कि हुजूर मैं जिंदा हूँ लेकिन जब तक सर्टिफिकेट या कार्ड नहीं दिखाओगे वो धेले भर का भरोसा नहीं करेगी आप पर। इन कार्डों के बोझ से आम आदमी दबा जा रहा है पता नहीं और नए साल में और कौन से कार्ड बनवाने का आदेश सरकार दे दे।
मियां बीवी का झगड़ा
एक बड़ी पुरानी कहावत है ‘मियां बीवी का झगड़ा बीच में पड़े वो लबरा’ या फिर एक दूसरी कहावत है ‘मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी’ लेकिन हाल ही में रेलवे को मियां बीवी के झगड़े के चक्कर में तीन करोड़ का नुकसान हो गया झगड़ा मियां बीवी का था और खामियाजा बेचारे रेलवे डिपार्टमेंट को भुगतना पड़ गया। हुआ यूं कि एक भाई साहब जो रेलवे स्टेशन में स्टेशन मास्टर थे उनका अपना बीवी से भीषण झगड़ा चल रहा था वे दफ्तर में थे इतने में ही दूसरे स्टेशन से स्टेशन मास्टर का फोन आ गया चूंकि वो सरकारी फोन था इसलिए वे उससे बात कर रहे थे, इस बीच मोबाइल पर उनकी झगड़ालू पत्नी ने भी फोन लगा दिया और बोली ‘मामला निपटा देते हैं तुम घर आ जाओ’ पति ने सोचा चलो किसी तरह से मामला सुलट रहा है तो उसने भी फोन पर कह दिया ‘ओके’ इधर दूसरे स्टेशन मास्टर ने समझा कि भाई साहब ने उसके सवाल के उत्तर में ‘ओके’ कह दिया है और उन्होंने ट्रेन को रवाना कर दिया जबकि उसे रवाना नहीं करना था, लेकिन पत्नी को कहे गए ,‘ओके’ ने ऐसा लफड़ा किया कि रेलवे को तीन करोड़ का नुकसान हो गया अब ये तीन करोड़ तो उन दोनों झगड़ालू पति पत्नी से वसूल करना नामुमकिन है । सारे फंड भी काट लोगे तब भी इतना पैसा जितना नुकसान हुआ है वसूल नहीं हो पाएगा अपने को तो अब ये पता लगाना है कि रेलवे तो वैसे ही घाटे में चल रही है घाटा और बढ़ जाएगा लेकिन जिस झगड़ालू पत्नी ने उन्हें मामला सुलझाने के लिए घर बुलाया था वो मामला सुलझा या नहीं।
सुपर हिट ऑफ द वीक
‘तुम मेरे साथ नौकरों जैसा बर्ताव करना बंद कर दो वरना’ श्रीमान जी ने श्रीमती जी से कहा
‘वरना क्या कर लोगे’ श्रीमती जी ने गुस्से में पूछा
‘मैं दो-चार घर और पकड़ लूंगा’ श्रीमान जी ने उत्तर दिया