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भाजपा कांग्रेस से मतलब नहीं जातिवाद पर चल रही शहर की राजनीति : जातिगत प्रेम इतना हावी की अपने ही दल की उपेक्षा करने से भी पीछे नहीं हैं कई जनप्रतिनिधि

@परितोष वर्मा
जबलपुर (जयलोक)। इन दिनों शहर की राजनीति में अजीब सा जातिवाद का रंग घुला हुआ नजर आ रहा है। जातिवाद का रंग इतना अधिक हावी है कि किसी भी दल का राजनीतिक व्यक्ति अपने दल के प्रति वफादारी एवं अपने दल के लोगों के प्रति सम्मान का भाव खो चुका है। भाजपा कांग्रेस से किसी को कोई मतलब नहीं है सब अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए केवल जातिवाद का झंडा उठाकर आगे बढ़ रहे हैं। हर तबके के बीच में यह महसूस किया जा रहा है कि वर्तमान समय में शहर की राजनीति केवल जातिवाद पर चल रही है।
सार्वजनिक तौर पर राजनीतिक मंचों पर भी इस तरीके के किस्से और वाक्ये साफ -साफ  आये दिन देखने को मिल रहे हैं। कुछ जनप्रतिनिधि ऐसे हैं जिनकी राजनीति के दिन फाख्ता हो गए हैं जनता के बीच कोई आधार है नहीं और वो अपने बचे खुचे कार्यकाल में दूसरे दल के नेताओं के पैरों पर गिरकर या कंधे पर चढ़कर अपना समय पूरा करने और चुनाव में खर्च हुआ पैसा वापस जोडऩे में लगे हुए हैं।
स्थिति तो इतनी खराब है कि जातिवाद का प्रेम इस कदर सर पर हावी है कि लोग अब अपने चुनाव में जीत का सेहरा भी विपक्षी दल के लोगों को पहना रहे हैं कि अगर उन्होंने मदद नहीं की होती तो हमारा जीत पाना बहुत मुश्किल था। इन हालातों को भी बदतर ही कहा जाएगा जब सत्ताधारी दल के कुछ नेता मंच से अपने संबोधन के दौरान विपक्ष के नवजात नेताओं को भी अपने लोगों से अधिक तवज्जों दे देते हैं।
अभी कुछ दिनों पहले ही शहर की एक विधानसभा क्षेत्र में आयोजित हुए कार्यक्रम में इस बात का उदाहरण सैकड़ों लोगों के सामने प्रत्यक्ष रूप से आया। जब एक नवनिर्वाचित नेताजी ने मंच से अपने विपक्ष की नेत्री और एक नेता की तारीफों में कसीदे पढ़ दिए। उस कार्यक्रम में नेता जी की पार्टी के बहुत सारे लोग मौजूद थे और उनके दल के युवा साथी भी वहां मौजूद थे जब उन्होंने अपने बड़े नेता को विपक्ष के नव जन्में छुटभैयों के सामने नतमस्तक होते देखा तो उनका नारे लगाने के बजाए गाली देने का मन करने लगा। यह वही नेता थे जो जीत के लिए अपने पार्टी के सैद्धांतिक विचारधारा से अलग होकर विपक्ष के लोगों के सामने हाथ जोड़कर नतमस्तक हो गए थे और एक प्रकार से अपनी जीत के लिए गिड़गिड़ा कर साथ देने की मिन्नतें की थीं। यह पूरा खेल जातिवाद के मंच को सजाकर खेला गया था।
जातिवाद का यह खेल अभी भी चल रहा है और जनप्रतिनिधियों के सर से जातिवाद का भूत नहीं उतरा है। उनके बारे में भोपाल और दिल्ली में संगठन स्तर पर हर प्रकार से फीडबैक पहुंच रहा है। जल्दी फीडबैक के परिणाम भी सामने आ सकते हैं।
पूरी संभावना है कि ऐसे नेताओं को जो अपनी पार्टी लाइन से हटकर जातिवाद को प्रमुखता देते हुए विपक्ष के लोगों के साथ सांठगांठ कर चल रहे हैं और अपने दल के लोगों की अपेक्षाएं पूरी न करते हुए उनकी उपेक्षा कर रहे हैं उन्हें जल्द ही सख्त हिदायत मिल सकती है। ऐसे लोगों की अगर जातिवाद की मानसिकता और संर्कीणता समाप्त नहीं होती तो जल्द ही सार्वजनिक रूप से इसके दुष्परिणाम भी सड़कों पर नजर आने लगेंगे। मौखिक रूप से तो यह सारी बातें अब धीरे-धीरे सार्वजनिक होने ही लगी हैं जल्दी लोग ऐसे जातिवाद प्रेमी नेताओं के नाम लेकर भी उनकी करतूतों की चर्चा सार्वजनिक रूप से करते नजर आएंगे।
दफ्तरों में भी  हाजिरी बजाते हैं
भाजपा और कांग्रेस को दरकिनार करते हुए राजनीतिक दलों के लोग जातिगत संबंध निभाने वाले तो दिग्गजों के दफ्तरों में साथ बैठकर रुतबा भी गांठते रहते हैं।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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