सबके साथ कुछ खूबियाँ और कुछ कमजोरियाँ, किसी नाम पर विधायकों की सहमति तो किसी पर नाराजगी
सब जुगाड़ लगाने में जुटे
जबलपुर (जयलोक)। भाजपा नगर संगठन के चुनाव भी नजदीक आते जा रहे हैं। इसी क्रम में जबलपुर ग्रामीण नगर अध्यक्ष पद के लिए दावेदारों की भरमार है। दावेदारों के नामों पर चर्चा भी हो रही है। जबलपुर जिले में ग्रामीण क्षेत्र में चार विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इन विधानसभा के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र का अलग-अलग राजनीतिक महत्व है। प्रारंभिक तौर पर जानकारी एकत्रित करने पर तकरीबन एक दर्जन से अधिक नाम ग्रामीण भाजपा अध्यक्ष के लिए सामने आए हैं। इनमें से अधिकांश पटेल समाज के दावेदार हैं और कुछ यादव समाज के दावेदार हैं।
बातें कितनी भी हो लेकिन ग्रामीण क्षेत्र की राजनीति में जातिगत समीकरणों की आज भी अपनी प्रभावी उपस्थिति है। कुछ सामान्य जाति के लोग भी जोर आजमाइश कर रहे हैं। कुछ खुद को मंत्री जी का करीबी बता रहे हैं तो कुछ लोग खुद को सांसद के करीबी होने का दावा कर रहे हैं। अब इन दावों में कितनी सच्चाई है यह तो वह जनप्रतिनिधि ही बेहतर जानते हैं।
फिलहाल भाजपा के ग्रामीण अध्यक्ष के लिए जिन नामों पर चर्चा हो रही है उनमें राजकुमार पटेल, आशीष पटेल, बलराम यादव आनंद साहू, कृष्ण शेखर सिंह, प्रमोद पटेल, राजेश दाहिया, देवेंद्र यादव, संदीप शुक्ला, पुष्पराज बघेल, राजमणि बघेल आदि के नाम शामिल हैं। दावेदारों के इन नामों में से उस नाम पर अंतिम मोहर लगेगी जो हर चौखट के समीकरण बनाने में कामयाब साबित होगा। विधायकों की मंजूरी भी जरूरी होगी और सांसद मंत्री की रजामंदी भी बहुत जरूरी रहेगी। इसके बाद ही भोपाल से ही किसी नाम की घोषणा होने की आशा की जा सकती है।
एक दावेदार राजकुमार पटेल प्रदेश अध्यक्ष के करीबी बताए जाते हैं और राजनीतिक क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है लेकिन जमीनी कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति कम नजर आती है। खुद का कोई बहुत बड़ा समर्थक मंडल नहीं है। सभी से मधुर संबंध हैं। हंसमुख स्वभाव के हैं फिलहाल शहर में रह रहे हैं और गांव की राजनीति से दूर है। पहले भी सूरतलाई क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं। वर्तमान में ग्रामीण भाजपा की संगठन बॉडी में पदाधिकारी भी हैं।
आशीष पटेल वर्तमान में जिला महामंत्री हैं पूर्व में जिला अध्यक्ष ग्रामीण युवा मोर्चा भी रह चुके हैं। सांसद आशीष दुबे के काफी करीबी हैं। लेकिन उनके बारे में सबसे नकारात्मक बात यह है कि जिस बूथ में यह रहते हैं वह 2004 से लेकर आज तक यह भाजपा के पक्ष में नहीं जीत पाए हैं। ये पूर्व में कांग्रेस के नेताओं से भी मधुर संबंध रखने के लिए चर्चित रह चुके हैं और उनके साथ पनागर विधायक के नाम पर पैसे लेने का बहुत बड़ा आरोप जुड़ा हुआ है जिसे उनके द्वारा पैसे वापस कर मामला शांत करवाया गया था। इस पूरे मामले में 27 लाख रुपए का लेनदेन एक वेयरहाउस संचालक की पुलिस रिपोर्ट कटवाने के नाम पर हुआ था। 2020 का यह मामला अखबारों की सुर्खी भी बना था। पनागर विधायक सुशील तिवारी इंदु की मध्यस्थता के बाद इनको यह राशि संबंधित वेयरहाउस व्यापारी को वापस करनी पड़ी थी। लेकिन यह कलंक के रूप में राजनीतिक छवि पर धब्बे जैसा साबित हो रहा है। इनके द्वारा पिछले चुनाव में टिकट को लेकर जनप्रतिनिधि का विरोध भी किया गया था जिसकी शिकायत नगर संगठन से लेकर भोपाल तक की गई थी और यह जानकारी वरिष्ठ नेताओं के संज्ञान में भी है।
बलराम यादव इनका नाम भी ग्रामीण जिला अध्यक्ष की दौड़ में लिया जा रहा है। यह कटंगी के रहने वाले हैं और मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के करीबी बताएं जा रहे हैं इनका डॉक्टर मोहन यादव से जुड़ाव बहुत पुराना है। उनके साथ एक नकारात्मक समीकरण जुड़ा हुआ है कि वर्तमान विधायक पाटन अजय बिश्नोई और उनके बीच के संबंध मधुर नहीं बताए जाते हैं इस बात की चर्चा पूरे क्षेत्र में भी है। नमामि नर्मदे प्रकल्प के संयोजक का दायित्व बलराम यादव को प्राप्त हो चुका है।
एक और दावेदार आनंद साहू वर्तमान में भाजपा ग्रामीण कार्यालय के प्रभारी हैं दो बार से चुनाव प्रभारी रह चुके हैं पनागर विधानसभा में कार्य कर च ुके हैं। महाराजपुर के निवासी हैं इनके पिता जनपद सदस्य रहे हैं और उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है उनकी पत्नी पूर्व सरपंच रह चुकी हैं। संगठन और संघ के काम करने का अनुभव है। सरपंच के कार्यकाल के दौरान जरूर एक आरोप इनके खिलाफ मुखर हुआ था और विरोध दर्ज कराया गया था लेकिन वह बहुत काम नहीं आया।
प्रमोद पटेल इनका नाम भी ग्रामीण राजनीति में सक्रिय है लेकिन इनके ऊपर किसी राजनीतिक आका का हाथ नहीं बताया जाता है। यह वर्तमान ग्रामीण अध्यक्ष रानू तिवारी के करीबी हैं। पीएम लोन लोगों को दिलाने और अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों को दिलाने में इनको महारत हासिल है और इसी से जुड़े कुछ विवाद भी उनके नाम से जुड़ जाते हैं। अनाज का व्यापार करते हैं। करोड़ों की मर्सिडीज़ गाड़ी में सफर करना इन्हें पसंद है। संपन्न व्यापारी हैं और यही उनकी दावेदारी का बड़ा आधार बताया जाता है।
पाटन निवासी एक और ग्रामीण राजनीति का नाम है कृष्णा शेखर सिंह यह किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष दो बार रह चुके हैं। उनके परिवार की भी राजनीतिक पृष्ठभूमि रही है और यह नाम भी ग्रामीण जिला अध्यक्ष की दौड़ में शामिल बताया जाता है।
संगठन के पदाधिकारी के रूप में राजेश दहिया लंबे समय से पार्टी के द्वारा दी जा रही जिम्मेदारियों का निर्वहन करते आ रहे हैं। लोगों में चर्चा है कि यह नाम संगठन की ओर से ग्रामीण अध्यक्ष के लिए आगे बढ़ाया जाएगा क्योंकि ऐसे समर्पित और मजबूत कार्यकर्ताओं को आगे लाना भी संगठन का काम है। वर्तमान में महामंत्री के पद पर हैं संगठन से जुडक़र लंबे समय से कार्य करते आ रहे हैं।
देवेंद्र यादव पाटन निवासी भी एक दावेदार हैं वर्तमान में जिला उपाध्यक्ष के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इस नाम पर मौजूदा जनप्रतिनिधियों में कोई विरोधाभास नजर नहीं आया है और उनके नाम को भी अध्यक्ष पद के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है।
सामान्य जाति के कोटे से संदीप शुक्ला जो कि वर्तमान में महामंत्री पद पर है बेलखेड़ा के गांव ग्राम केवलारी के रहने वाले हैं और संगठन से जुडक़र कार्य करते आ रहे हैं। सार्वजनिक तौर पर तो उनकी सभी जनप्रतिनिधियों से बात बनती हुई नजर आती है लेकिन अंदरूनी चर्चाएं आपसी खटर-पटर की ज्यादा सुनाई पड़ रही है। जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
एक ही परिवार के दो दावेदार – अध्यक्ष पद की दावेदारी के रूप में पुष्पराज सिंह बघेल और राजमणि बघेल का नाम सामने आता है। पुष्पराज सिंह बुधकर सिहोरा विधानसभा में एक निजी स्कूल का संचालन करते हैं। उपाध्यक्ष जिला ग्रामीण के पद पर है और पूर्व मंडल अध्यक्ष भी रह चुके हैं। राजमणि बघेल युवा मोर्चा में अध्यक्ष रह चुके हैं। चर्चाएं हैं कि पुष्पराज सिंह बघेल और पटेल समाज के एक अन्य व्यक्ति जो की दावेदार हैं ने मिलकर लॉबी बनाने की बात कही है ताकि अध्यक्ष पद एक ग्रुप विशेष के साथ ही बना रहे। इन लोगों को पहले राकेश सिंह का करीबी माना जाता था वर्तमान में यह सांसद आशीष दुबे से अधिक नजदीक नजर आ रहे हैं।
ग्रामीण की भाजपा की राजनीति का अपना अलग मिजाज और बिसात होती है। निर्वाचित हुए विधायकों का समन्वय बनाना अपने आप में एक कठिन कार्य है साथ ही यहां पर जातिवाद और सामाजिक संरचना का भी बहुत अधिक गुणा भाग होता है। मंत्री, सांसद, विधायक और संगठन के वरिष्ठ लोगों का समन्वय बनाना कठिन काम है। जो बेदाग हैं भले ही वह कितना जोर लगा लें लेकिन उन्हें यह पद नहीं मिल पाएगा। कहां जा रहा है कि भाजपा अपनी छवि को दांव में नहीं लगाएगी और साफ सुथरी छवि के व्यक्ति को ही अध्यक्ष पद पर बैठाया जाएगा।