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मध्य प्रदेश की शिशु मृत्यु दर देश में सर्वाधिक

स्वास्थ्य क्षेत्र में चुनौतियाँ बरकरार
भोपाल (जयलोक)। मध्य प्रदेश के गठन के 69 वर्ष पूरे होने के बाद भी राज्य स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में देश के पिछड़े राज्यों में गिना जा रहा है। खासकर मातृ और शिशु मृत्यु दर के आंकड़े अब भी चिंता पैदा करने वाले हैं। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर देश में सबसे अधिक है, जबकि मातृ मृत्यु दर नीचे से तीसरे स्थान पर है, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है। राज्य सरकार अब हर जिले में सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की दिशा में काम कर रही है। साथ ही डिजिटल हेल्थ सेवाओं, टेलीमेडिसिन और ई-रिकॉर्ड सिस्टम को गांवों तक पहुंचाने की योजना पर भी काम जारी है।
डॉक्टरों की कमी और कमजोर सेवाएं
एनएचएम के पूर्व निदेशक डॉ. पंकज शुक्ला का कहना है कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार किए बिना प्रसूताओं और नवजातों की मौतों को रोका नहीं जा सकता। गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच समय पर नहीं हो रही हैं। ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की भारी कमी है। कई स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सक पदस्थ नहीं हैं, और जहां हैं भी, वहां मॉनिटरिंग की कमी के कारण सेवाएं प्रभावी नहीं हैं। उन्होंने बताया कि राज्य में स्टाफ की कमी सबसे बड़ी चुनौती है। डॉक्टरों के रहने की व्यवस्था न होने से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं बाधित रहती हैं। प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कई नई पहल की गई हैं। एनएचएम की संचालक डॉ. सलोनी सिडाना ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में मातृ मृत्यु दर में सुधार हुआ है और शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए भी लगातार प्रयास जारी हैं। हमने मातृ मृत्यु दर में तीन स्थान का सुधार दर्ज किया है। आने वाली रिपोर्ट में शिशु मृत्यु दर में भी गिरावट देखने को मिलेगी। इसे लेकर कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं।
हाल के वर्षों में शुरू हुई प्रमुख पहलें
राज्य में एयर एंबुलेंस सेवा की शुरुआत की गई, ताकि दूरदराज के मरीजों को बड़े अस्पतालों तक तेजी से पहुंचाया जा सकेगा।
शव वाहन योजना लागू की गई, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में शव परिवहन में राहत मिली।
जिला अस्पतालों में एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी अत्याधुनिक सुविधाएं स्थापित की गईं।
देहदान करने वालों को स्टेट ऑनर देने की परंपरा शुरू हुई।
नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना श्योपुर और सिंगरौली में नए कॉलेजों की घोषणा, प्रत्येक में 100 सीटें।
स्वास्थ्य और शिक्षा का एकीकृत मॉडल- राज्य सरकार ने चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग को एक साथ जोडकऱ एक एकीकृत विकास मॉडल तैयार किया है। इससे मेडिकल कॉलेजों के जरिए ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। वर्तमान में राज्य में 17 सरकारी मेडिकल कॉलेज संचालित हैं, जिनमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और रीवा के कॉलेज प्रमुख हैं।
स्वास्थ्य बजट में भारी बढ़ोतरी
स्वास्थ्य बजट में बीते वर्षों में बड़ा इजाफा हुआ है। 2002-03 में स्वास्थ्य बजट लगभग 578 करोड़ रुपये था। 2023-24 में यह बढकऱ करीब 12,000 करोड़ रुपये हो गया। राज्य में अब तक 10,000 से अधिक उप-स्वास्थ्य केंद्र, 1,400 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 350 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और 52 जिला अस्पताल संचालित हैं।
प्रमुख चुनौतियां
1. डॉक्टरों और विशेषज्ञों की कमी- कई स्वास्थ्य केंद्रों पर पद रिक्त हैं।
2. ग्रामीण-शहरी असमानता- गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित।
3. बुनियादी ढांचे की कमी- प्रसव केंद्र और दवाओं की उपलब्धता में बाधा।
4. गुणवत्ता में लापरवाही- मॉनिटरिंग और जवाबदेही की कमी।
5. मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा- मानसिक बीमारियों को लेकर जागरूकता का अभाव।

 

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Jai Lok
Author: Jai Lok

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