
जबलपुर (जयलोक)। शहर के प्रतिष्ठित अस्पतालों में गिने जाने वाले मार्बल सिटी हॉस्पिटल में विगत दिवस हुए फर्जी डॉक्टर के कांड और एक महिला की मौत के बाद लोगों का विश्वास इस अस्पताल में इलाज के प्रति डगमगा गया है।
अभी भी लगातार इस बात की माँग उठ रही है कि जो फर्जी डॉक्टर कई वर्षों से अस्पताल प्रबंधन उनके साथ मिलकर मरीज का इलाज करता आ रहा था उनके अस्पताल में तैनात रहते हुए कितने मरीजों की मौत हुई है किन मरीजों के प्रति लापरवाही बरती गई है किस प्रकार से फर्जी दस्तावेज बनाकर मरीजों की मौत के बाद मामले को छुपाने का काम किया गया है यह सब बातें खुलकर सामने आना अति आवश्यक माना जा रहा है। पुलिस पूरे मामले की जाँच कर रही है लेकिन अभी तक इस बारे में कोई भी जानकारी सामने नहीं आई है कि कितने लोगों की उक्त फर्जी डॉक्टर की नियुक्ति के दौरान अस्पताल में मौत हुई है। उनके बारे में किस प्रकार से जाँच पड़ताल की जाकर सच को सामने लाया जाएगा।
आखिर पूरे शहर को और चिकित्सा जगत को यह जानकारी होना चाहिए कि मार्बल सिटी अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही और फर्जी डॉक्टर की हरकत के कारण कितने मासूम लोग मौत के मुंह में चले गए थे। अस्पताल प्रबंधन की भूमिका इसलिए संदिग्ध है क्योंकि उनकी देखरेख में ही फर्जी तरीके से मौत के बाद महिला मरीज की डिस्चार्ज रिपोर्ट में दस्तावेज तैयार कर लगाए गए।
सवाल इस बात पर भी उठ रहा है कि आखिर कैसे अस्पताल प्रबंधन इतने समय से फर्जी डॉक्टर के इलाज को पकड़ नहीं पाया। कैसे मरीजों की मौत पर लापरवाही को ढाँकने के लिए फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया।
पुलिस ने पूर्व में भी अस्पताल प्रबंधन से इस प्रकरण से संबंधित दस्तावेज माँगे थे लेकिन अस्पताल प्रबंधन द्वारा सहयोगात्मक रवैया नहीं अपनाया जा रहा है। पुलिस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस प्रकार की हरकतें अपनी चोरी और लापरवाही को छुपाने के उद्देश्य की जा रही हैं। अस्पताल प्रबंधन इस बात का भी दबाव बना रहा है कि आखिर किसी तरीके से पुलिस जाँच को प्रभावित किया जा सके।
यह था मामला
रेलवे सौरभ ऑफीसर्स कॉलोनी निवासी मनोज कुमार महावर ने एफआइआर में बताया कि मां शाति देवी को 1 सितबर 2024 को भंवरताल गार्डन के पास मार्बल सिटी अस्पताल में भर्ती कराया था। वहां 2 सितंबर को उनकी मौत हो गई। मनोज का दावा है कि मेडिकल रिकॉर्ड देखा, तो उसमें लिखा था कि 1 सितंबर की रात 11 बजे, रात एक बजे और तडक़े साढ़े चार बजे तक डॉ. बृजराज सिंह उईके आइसीयू में थे। उन्होंने उनकी मां के स्वास्थ्य की जाँच की। लेकिन, मनोज उस वक्त भौचक रह गए, जब रिपोर्ट में पढ़ा कि डॉ. उईके ने उनकी मां को वेंटीलेटर पर रखने की अनुमति मनोज से मांगी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। मनोज के अनुसार डॉक्टर ने उनसे कोई बातचीत नहीं की थी। मनोज ने संदेह होने पर डॉ. उईके से मिलवाने की बात अस्पताल प्रबंधन से कही। लेकिन, प्रबंधन ने बात टाल दी। जानकारी जुटाई तो पता चला कि अस्पताल में डॉ. बृजराज उईके कोई है ही नहीं। मनोज ने अपने स्तर पर डॉ. बृजराज नाम के व्यक्ति को खोज निकाला। उसके पास पहुंचे, तो पता चला वह असल में पेंटर है। उसे अस्पताल के डॉक्टर्स बोर्ड में लगी तस्वीर दिखाई, तो पता चला कि वह तस्वीर उसके दोस्त सतेंद्र की है, जो उसके साथ पढ़ता था।

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Author: Jai Lok
