जबलपुर (जयलोक)
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक आदेश पारित कर शहर के मध्य में स्थित भूमि के एक बड़े हिस्से को शासन के नाम पर दर्ज करने के आदेश जारी किए हैं। उच्च न्यायालय के इस आदेश को प्रभावित पक्ष ने उच्च न्यायालय की डबल बेंच के सामने चुनौती दे दी है। इस मामले में जल्द ही पुन: सुनवाई प्रारंभ हो जाएगी। इसी बीच इस मामले से जुड़े कई तथ्य प्रभावित पक्ष की ओर से सार्वजनिक संज्ञान में लाये गए है ताकि भ्रम की स्थिति स्पष्ट हो सके।
बहुत महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि देश के आजाद होने के बाद मालगुजारी प्रथा 1951 में समाप्त हो चुकी थी। मप्र लैंड रेविन्यू कोड 1954 लागू होने के बाद बहुत से बदलाव हुए। इस दौरान मालगुजार के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली भूमि में जो लोग जहाँ रह रहे थे, जहाँ व्यापार कर रहे थे उन्हें अलग-अलग किस्म के किराएदार की श्रेणी में रखा गया और बाद में भूमि स्वामी का अधिकार दिया गया।
वर्तमान में जो मामला न्यायालय के समक्ष ले जाया गया है उसके मूल आधार को ही उच्च न्यायालय की डबल बेंच में चुनौती दी गई है। 1951 से लेकर 2014 तक 23 एकड़ जमीन में दावा करने वाले खुद को मालगुजार का वंशज बताने वाले लोगों ने इतने सालों में कभी भी उक्त भूमि पर दावा नहीं किया। यहां तक कि पूरी 23 एकड़ भूमि में छोटा सा हिस्सा भी उनके कब्जे में या अधिपत्य में नहीं है। इसके प्रमाण उस दस्तावेज से मिलते है जिसमें उन्हें शून्य राशि का मुआवजा प्राप्त हुआ है। ये लोग ना ही 23 एकड़ भूमि में निवासरत है। मालगुजारी प्रथा 1952 में समाप्त हो गई थी। तत्कालीन मालगुजार राय बहादुर कपूरचंद की मालगुजारी समाप्त करने का प्रकरण शासन स्तर पर चला और इसके आदेश पारित हुए। इस बात के दस्तावेज सत्यापित प्रतिलिपि में भी उपलब्ध हैं। सबसे बड़ा सवाल भी यहीं से खड़ा होता है कि जब मालगुजारी समाप्त हो चुकी थी तो फिर 64 सालों के बाद 2014 में इस भूमि की वसीयत पर दावेदारी कैसे सामान्य मानी जा सकती है। इन सब बिंदुओं को उच्च न्यायालय की डबल बैंच के समक्ष रखा जा रहा है।
94 साल से पैतृक भूमि का रिकॉर्ड
न्यायालय के समक्ष इस बात को भी चुनौती दी गई है कि जिस 2 एकड़ भूमि को शासन के नाम पर दर्ज करने का आदेश पारित हुआ है। उस भूमि की रजिस्ट्री 1932 से शासन के रिकॉर्ड में सिंघई परिवार के सदस्यों के नाम उपलब्ध है। 1972 में उक्त दो एकड़ भूमि से कानूनी रूप से सुनवाई के उपरांत मालगुजारी शब्द विलोपित भी कर दिया गया है। उक्त दो एकड़ भूमि का शासकीय अभिलेख में सिंघई परिवार का अधिपत्य विगत 94 साल से रिकार्ड में मौजूद है।
आपत्ति उठाने वालों का अधिकार क्षेत्र ही नहीं
न्यायालय की डबल बेंच में आदेश को दी गई चुनौती में यह तथ्य भी रखा गया है कि जिन लोगों ने 2 एकड़ भूमि के नामांतरण को चुनौती दी है, उस पर आपत्ति उठाना उनके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं है। क्योंकि यह 2 एकड़ भूमि 23 एकड़ भूमि का हिस्सा नहीं है। उक्त 2 एकड़ भूमि 1932 से ही श्री रतन चंद जैन के नाम से दर्ज हुई। उसके बाद 1941-42 उनके पुत्र श्री निर्मल चंद जैन के नाम से दर्ज हुई। बाद में उक्त भूमि श्रीमती विजय रानी के नाम पर दर्ज हुई। 2018 में उनके पोते यश सिंघई, हर्ष सिंघई के बालिग़ होने के बाद उनकी वसीयत के आधार पर दोनों भाइयों के नाम पर दर्ज हुई। उक्त भूमि में मालगुजारी की वसीयत के आधार पर दावेदारी कर रहे राकेश चौधरी और मोहम्मद आमीन ने नामांतरण पर आपत्ति दर्ज की है। जबकि वक्त 2 एकड़ भूमि पर इनका कोई अधिकार नहीं बनता है। इस मुख्य बिंदु को भी न्यायालय के समक्ष रखा गया है।
64 साल से नहीं था कोई दावेदार
जिस 23 एकड़ भूमि को लेकर इस वक्त हंगामा मचा हुआ है उक्त भूमि पर विगत 64 सालों से कोई भी दावेदार सामने नहीं आया था। 2014 के बाद श्रीमती शांति बाई चौधरी की मृत्यु उपरांत अचानक एक वसीयत सामने आई उनके वारिसान राकेश चौधरी और मोहम्मद अमीन दावा करने सामने आए। एक दौर आया जब इन्होंने उक्त भूमि को वसीयत के आधार पर अपने नाम पर करवाने का प्रयास किया लेकिन लगातार एसडीएम न्यायालय में आपत्ति लगने के बाद उक्त भूमि वापस ताराबाई के नाम से दर्ज हो गई और खसरे के कॉलम नंबर 7 में उन्हीं लोगों का नाम दर्ज हुआ जो वर्तमान में भूमि के अलग अलग हिस्से पर काबिज है। इसके अलावा एक और दावेदार दिलीप साहू भी पूरी 23 एकड़ भूमि को अपनी पैतृक संपत्ति बताते हुए दावा कर रहे हैं। इनका दावा है कि वो पुराने मालगुजार डी एस मूलचंद के रिश्तेदार हैं और राय बहादुर कपूरचंद्र की बेटी शांति बाई चौधरी ने इन्हें 1961 में बेची गई मालगुजारी 50 रुपए में वापस कर दी थी। इसीलिए वक्त पूरी 23 एकड़ भूमि के मालिक वही हैं। लेकिन इन दोनों ही दावेदारों के इस दावे को 2 एकड़ भूमि के मालिक यश सिंघई और हर्ष सिंघई ने उच्च न्यायालय की डबल बेंच में चुनौती दी है कि उनका 1932 से उनके पैतृक भूमि के रूप में चली आ रही 2 एकड़ भूमि पर किसी और का कोई अधिकार नहीं है। केवल भ्रम फैलाने के लिए बहुत सारी बातों को अलग -अलग तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। जल्दी ही उच्च न्यायालय की डबल बेंच के समक्ष इस मामले की और शासन के पक्ष में भूमि दर्ज करने के निर्देश को चुनौती देने की सुनवाई प्रारंभ हो जाएगी। न्यायालय के निर्णय के बाद भूमि का स्वामित्व भूमि के मूल स्वामी के नाम पर ही दर्ज होगा ऐसा दावा याचिकाकर्ता कर रहे हैं।