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यही रात अंतिम, यही रात भारी!, पप्पू यादव की पोस्ट ने सियासत में मचाई हलचल÷

कांग्रेस 70 सीटों की मांग पर अड़ी, राजद 50 से 54 सीटें देने के मूड में
पटना। 11 अक्टूबर को दोपहर 3.26 बजे पप्पू यादव ने सोशल मीडिया पर कबीर का दोहा पोस्ट किया- जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता हैज् इसके बाद 12 अक्टूबर की रात 1.28 बजे उन्होंने दूसरा पोस्ट किया- यही रात अंतिम, यही रात भारी! यह वक्त वही है जब सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस-राजद के बीच बातचीत फंसी है। इसी बीच पप्पू यादव के ऐसे पोस्ट को देखकर सियासी गलियारों में हलचल मच गई है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पप्पू यादव का पोस्ट ऐसे समय सामने आया है जब कांग्रेस और राजद के बीच सीट शेयरिंग पर टकराव जारी है। कांग्रेस 70 सीटों की मांग पर अड़ी है, जबकि राजद 50 से 54 सीटें देने के मूड में है, जबकि कांग्रेस ने अपने तेवर अब तक कड़े कर रखे हैं। इसी बीच पप्पू यादव का कहना है कि कांग्रेस अब सिर्फ ‘सहयोगी’ नहीं, बराबर की भागीदार बनना चाहती है। इसके पहले तो उन्होंने कांग्रेस के लिए 100 सीटों तक की मांग भी सामने रख दी थी। अब उनके पोस्ट को गठबंधन पर दबाव बनाने की रणनीति माना जा रहा है।
वहीं दूसरी ओर मुकेश सहनी की विकाशसील इंसान पार्टी और वाम दलों की मांगों ने समीकरण और पेचीदा बना दिया है। ऐसे में अब महागठबंधन को एकजुट रखना एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि कांग्रेस ने 70 सीटों की मांग की है और 60 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची भी तैयार कर ली है। दूसरी तरफ राजद कांग्रेस को 50-54 सीटें देने पर अड़ा है। वीआईपी पार्टी 30 सीटों की मांग कर रही है, जबकि वाम दलों ने 40 से ज्यादा सीटों का दावा किया है। कई मीडिया रिपोर्ट्स में वाम दलों की डिमांड 60 तक बताई जाती है। जाहिर है इस वजह से महागठबंधन का सीट शेयरिंग का फॉर्मूला फंसा है।
पप्पू यादव सीमांचल और कोसी क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखते हैं और वे कांग्रेस के करीब माने जाते हैं। आप यूं कह सकते हैं कि वह अनौपचारिक रूप से कांग्रेस के नेता हैं। ऐसे में महागठबंधन में उनकी भूमिका एक प्रेशर फैक्टर के रूप में देखी जाती है। उनके पोस्ट को कांग्रेस का अप्रत्यक्ष संदेश माना जा रहा है कि अगर सीट बंटवारे में बराबरी न मिली तो पार्टी समझौता नहीं करेगी।
बता दें पप्पू यादव ने हाल ही में एक बयान में राजद को ‘तकनीकी पार्टी’ कहा था और कांग्रेस को ‘मास पार्टी’ कहा था। उनका तर्क साफ है गठबंधन के सभी दलों का सम्मान जरूरी है, वरना राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी। सूत्र बताते हैं कि लालू-तेजस्वी खेमे में आपात बैठकें हो रही हैं, लेकिन वीआईपी और वाम दलों की मांगें टेंशन दे रही हैं। अगर ये तनातनी नहीं थमी तो नामांकन की आखिरी तारीख से पहले ही गठबंधन टूटने का खतरा मंडरा रहा है। ऐसे में पप्पू का पोस्ट इसी तनाव को हवा दे रहा है।
राजनीति के जानकारो की नजर में पप्पू यादव के पोस्ट के मायने गहरे हैं। दरअसल, कांग्रेस चाहती है कि गठबंधन में उसकी हिस्सेदारी बढ़े, ताकि चुनाव में उसकी उपस्थिति मजबूत हो सके। वहीं राजद को डर है कि ज्यादा सीटें देने पर उसका खुद का आधार कमजोर हो जाएगा। यही वजह है कि दोनों पार्टियां अब तक किसी समझौते पर नहीं पहुंची हैं। इस बीच एनडीए खेमा और बीजेपी इस स्थिति को अपने लिए अवसर के रूप में देख रहा है।
अगर महागठबंधन में फूट या देरी होती है तो एनडीए को चुनावी फायदा मिल सकता है। बीजेपी के रणनीतिकार विपक्ष की इस अंदरूनी खींचतान पर नजर रख रहे हैं। अगर सीटों पर समझौता नहीं हुआ तो कांग्रेस और राजद के बीच गठबंधन टूटने की संभावना है। नामांकन की समयसीमा करीब है और दोनों दलों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। पप्पू यादव का पोस्ट इस बढ़ते तनाव का इशारा माना जा रहा है। ये सिर्फ आंतरिक कलह का प्रकटीकरण भर नहीं, बल्कि एक सुनियोजित सियासी संदेश भी है। एक ओर ये राजद को चेतावनी देता हुआ प्रतीत हो रहा है कि सीट बंटवारे में देरी से गठबंधन की एकता खतरे में पड़ जाएगी। इसके साथ ही दूसरी ओर कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरता हुआ लग रहा है कि तैयार रहो।
बता दें पप्पू यादव ने पहले भी सार्वजनिक मंचों पर कहा है कि राजद को 100 से कम सीटों पर लडऩा चाहिए और बाकी सीटें कांग्रेस और अन्य सहयोगियों को दी जानी चाहिए। अब उनकी पोस्ट कांग्रेस के लिए दबाव और राजद के लिए चेतावनी दोनों का काम कर रही है। जानकार कहते हैं कि अगर महागठबंधन टूटा तो कांग्रेस को 10-15 सीटों का नुकसान हो सकता है, लेकिन पप्पू यादव जैसे चेहरों से सीमांचल में वापसी संभव है।

 

 

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Jai Lok
Author: Jai Lok

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