
(जय लोक)। 2000 के दशक में कांटा लगा गाने से धमाल मचाने वाली फिल्म और टीवी अभिनेत्री शेफाली जरीवाला की अचानक मौत ने देश को हैरान कर दिया। प्रारम्भिक जाँच में मौत का कारण रक्त दाब अचानक कम होना बताया जा रहा है। पुलिस के अनुसार शेफाली के फ्लैट में एंटी-एजिंग और स्किन ग्लो टैबलेट्स से भरे दो डिब्बे भी मिले हैं, जिनमें ग्लूटाथियोन और विटामिन की गोलियां हैं जिनका उपयोग सुंदर और युवा दिखने के लिए होता है। विस्तृत जाँच के नतीजे प्रतीक्षित हैं।

इस घटना ने देश में लगातार बढ़ रही युवाओं की आकस्मिक मृत्यु की घटनाओं पर फिर बहस छेड़ दी है। शेफाली और इससे पहले हुई दक्षिणी फिल्म सितारे पुनीत और प्रख्यात गायक केके और अन्य कई सेलिब्रिटीज की अकस्मात मौतों ने मीडिया पर सुर्खियाँ बटोरी मगर समस्या इससे कहीं ज्यादा व्यापक है। छोटे-छोटे शहरों में भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो नेशनल मीडिया की सुर्खियां नहीं बनतीं। पहले इन घटनाओं का ठीकरा कोविड महामारी के दौरान हुए वैक्सीनेशन अभियान के सिर फोड़ा जाता रहा। मगर भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा किए गए देशव्यापी अध्ययन ने बताया कि वैक्सीनेशन और अचानक मौत के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। बल्कि वैक्सीन लगवाने वालों की मृत्यु की आशंका वैक्सीन नहीं लगवाने वालों की तुलना में कम है। ऐसी घटनाओं के लिए मौत से पहले जोरदार एक्सरसाइज करने वाले ऐसे लोग जिन्हें तंबाकू, शराब और ड्रग्स जैसे व्यसन थे या जिनके परिवार में अचानक मौत का इतिहास रहा है, ज्यादा रहे।
सोशल मीडिया और खासकर उसके मौद्रीकरण के बाद एक अजीब तरह का पागलपन पसर रहा है। व्यूज लाइक्स और कमेंट्स के भ्रमजाल में लोग एंटी-एजिंग दवाओं के पीछे दौड़ रहे हैं। नतीजा अकस्मात मृत्यु की शक्ल में सामने आ रहा है। यह सवाल भी खड़ा होने लगा है कि क्या विज्ञान ने सचमुच चिरयुवा होने का तरीका ढूंढ लिया है? एंटी-एजिंग या जवानी को लंबा करने की दवा के बारे में तथाकथित रिसर्च रिपोर्ट सोशल मीडिया के भ्रमजाल में जंगल में आग की तरह फैल जाती हैं। लोग ताउम्र जवानी बरकरार रखने के मोह में बिना किसी विशेषज्ञ राय लिए ये दवाएं खाने लगते हैं। एक अन्य समस्या शरीर सौष्ठव को लेकर पसर रही है। रातोंरात मांसपेशियों से भरपूर बलिष्ठ शरीर पाने की चाहत में युवा ऐसी दवाइयां और सप्लीमेंट ले रहे हैं जिनकी सफलता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और जिनसे फायदे के बजाय नुकसान की आशंकाएं ज्यादा हैं। गली-गली फैले जिम में बैठे ट्रेनर चंद रुपयों के व्यावसायिक फायदे के लिए युवाओं को इनके प्रयोग के लिए उकसाते हैं।

किसी भी दवा को इंसानी उपयोग तक पहुंचाने की एक लंबी प्रक्रिया है। पहले चूहों या प्राइमेट्स जीव जैसे कि ओरंगउटान, चिपैंजी, गुरिल्ला आदि पर ट्रायल किया जाता है। फिर इंसानों पर रेंडेमाइज्ड कंट्रोल्ड ट्रायल की जाती है और फायदे का अंतिम आंकलन होता है। इस प्रक्रिया से गुजरे बिना किसी भी दवा के फायदे का वैज्ञानिक आधार नहीं होता। बाजार में उपलब्ध ऐसी अधिकतम एंटी-एजिंग दवाइयां बिना ह्यूमन ट्रायल वाली है। कुछ लोगों को बेशक इनका फायदा हो सकता है मगर अंतिम प्रमारण के पूर्व इसे लोगों द्वारा बिना विशेेषज्ञ की सलाह के लेना उचित नहीं है।
सोशल मीडिया पर ऐसी दवाओं का प्रचार करने वाले सेलीब्रिटी का बोलबाला है। लोग रील देखकर इन्हें फॉलो करते हैं। दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी होते हैं। कुदरत ने कोई भी दो शरीर बिल्कुल एक से नहीं बनाए हैं। इसलिए जरूरी नहीं कि जिस दवा ने दूसरे को फायदा पहुंचाया हो आपके लिए भी फायदेमंद हो। दवा सर्जिकल स्ट्राइक नहीं है कि जिसके लिए खा रहे हैं सिर्फ उसी चीज से संबंधित अंग को प्रभावित करे। यह एक तरह की बमबारी है जो पूरे शरीर को प्रभावित करती है। इसलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर खाने के बाद सांसों की धडक़न में तेजी, घबराहट, बेचैनी, पसीना, उल्टी हो तो इनका सेवन तत्काल छोड़ दें। बल्कि बिना विशेषज्ञ सलाह इनका सेवन ही न करें।
इन घटनाओं के पीछे वित्तीय परिस्थितियों और सोशल मीडिया से पनपने वाले मानसिक कारणों का भी बड़ा हाथ है। दूसरों की सफलता मकान, कार, जीवनशैली आदि देखकर बने आभासी मापदंड कुंठा पैदा करते हैं। शुरूआती चिड़चिड़ापन, गुस्सा, नींद कम आना, तनाव जैसे लक्षण कलह पैदा करते हैं जो अक्सर गहरे अवसाद में बदल जाता है। मनमाफिक वेतन-नौकरी नहीं मिलना, कार्य का अत्यधिक दबाव, कर्ज की किश्त न चुका पाने जैसे कितनी ही अन्य परिस्थितियां भी अवसाद का कारण बनती हैं। तनाव के शिकार लोगों में 70 से 75 फीसदी 30 से 45 साल के युवा हैं और इनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है।
युवा रहने के नियमित दिनचर्या और व्यायाम, संतुलित पौष्टिक भोजन, प्रसन्न रहने जैसे सदियों से परीक्षित और प्रभावी कुदरती तरीके भी हैं। मगर इनका फायदा समय लेता है। व्यायाम कीजिए लेकिन एक ही दिन में मैराथन मत लगाइए। धीरे-धीरे बढ़ाइए। जल्दबाजी में की गई कठिन एक्सरसाइज से हृदयाघात तक हो सकता है। भोजन कम कीजिए मगर इतना नहीं कि कुपोषण का शिकार हो जाएं। पौष्टिक भोजन कीजिए। अच्छी नींद लीजिए, तनाव घटाइए और खुश रहिए।
मगर अंधी दौड़ में आगे रहने की जिद पर अड़े युवाओं के पास समय ही तो नहीं है। टू मिनट वाली सभ्यता में हर किसी को इंस्टेंट नतीजे चाहिए। और ये नतीजे जानलेवा भी साबित हो जाते है।
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Author: Jai Lok
