
इंदौर/भोपाल (जयलोक)। 40 साल पहले भोपाल में पांच हजार से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुलाने वाले वाली यूनियन कार्बाइट फैक्टरी के जहरीले कचरे का नामोनिशान मिट गया। 337 टन कचरे को पीथमपुर के रामकी भस्मक में जला दिया गया,लेकिन अब कचरे की बची 700 टन राख पीथमपुर वासियों के लिए चिंता का विषय है। यह राख भस्मक के परिसर में ही दफन होगी। वर्षाकाल बीतने के बाद उसे लैंडफील किया जाएगा। फिलहाल उसे लीकप्रूफ बैगों में सुरक्षित रखा गया है।
बची राख में कौन-कौन से तत्व है। इसकी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग पीथमपुर की समिति कर रही है। उनका कहना है कि 12 साल पहले भी 20 टन भोपाल का कचरा इंदौर लाकर चुपचाप दफन कर दिया गया था। उसके बाद गांव के बोरिंग व बावड़ी दूषित हो गई। बोरिंगों का पानी ग्रामीण इस्तेमाल नहीं करते है।
राख का नहीं होगा जमीन से संपर्क
कंपनी के परिसर में कचरे को दफनाने के लिए 30 हजार से ज्यादा वर्गफीट चौड़ाई में गड्ढा खोदा गया है। उसे काले रंग के विशेष प्लास्टिक से कवर किया गया है। उसके भीतर वैज्ञानिक तरीके से राख को रखा जाएगा। बाद में कचरे की उपरी सतह को भी पैक किया जाएगा। पहले जहां कचरा दफन किया गया है। उसके समीप पीथमपुर का ट्रेंचिंग ग्राउंड तैयार किया गया है। इसके अलावा वहां कुछ किसानों की खेती की जमीन भी है। किसान अंतर सिंह का कहना है कि कचरा दफन करने के बाद खेत में फसल ठीक से नहीं उग पाती है।

Author: Jai Lok
