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राजनीतिक शून्यता और जमतरा पुल बंद होने का खामियाजा : हुई पहली मौत

पेट दर्द से पीडि़त को नहीं दिया पुल से जाने, लगा ली फाँसी

दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की पैसे की भूख और जिद ने विरासत को मिटाने के साथ, ले ली एक जान

जबलपुर (जयलोक)। जबलपुर के नेताओं की उदासीनता और अनसुनी करने का भरपूर फायदा दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने उठाया और यहां के राजनीतिक नेतृत्व को ताक पर रखते हुए जबलपुर की ऐतिहासिक पहचान के रूप में स्थापित 1903 में अंग्रेजों के कार्यकाल में बना वास्तु कला का अद्भुत नमूना जमतरा ब्रिज को जर्जर बता कर पैसे की भूख और अपनी जिद में इंदौर के एक कबाड़ी को बेच दिया। पहले तो सिर्फ यह विरासत की हत्या और ऐतिहासिक धरोहर को नेस्तनाबूत करने की साजिश लग रही थी लेकिन अब दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे और अराजक जबलपुर की लीडरशिप के माथे में एक मानव हत्या का कलंक भी लगता नजऱ आ रहा है। कबाड़ी के गुर्गे आरपीएफ पुलिस बल को अपना गार्ड बनाकर दबंगाई दिखाते हुए इस पुल को काटने का काम कर रहे हैं। आज एक 42 वर्ष की आयु का मजदूर व्यक्ति असहनीय पेट दर्द से पीडि़त होने के बाद इलाज के लिए जल्द जबलपुर पहुँचना चाहता था लेकिन उसे ठेकेदार के गुर्गों और वहां मौजूद आरपीएफ के जवानों ने डाँटकर भगा दिया। परेशान मजदूर पुल से कुछ दूर जाकर एक पेड़ पर अपने गमछे से फंदा बनाकर फाँसी पर झूल गया और अपनी जान दे दी। यह कलंक राजनीतिक और प्रशासनिक हठधर्मिता पर भी लगा है।दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे को यह ऐतिहासिक ब्रिज केवल कबाड़ का सामान और पैसे कमाने का जरिया नजर आ रहा था। ऐसी स्थिति में बिना जबलपुर की जनता के मनोभाव को समझे, बिना इसकी हेरिटेज ब्रिज की महत्वत्ता को समझे, बिना इसके जीर्णोद्धार के रास्ते को तलाश किये ही सिर्फ पैसे की भूख और अपनी जिद को मिटाने के लिए दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने इसे कागजों में ही जर्जर घोषित कर कबाड़ी को बेचने का निर्णय कर लिया।

अब न बच्चे स्कूल जा सकेंगे न किसान सब्जी बेच पाएंगे

यह बड़ी विडंबना है कि यहां से लगे हुए कई गाँव के बच्चे जो जबलपुर की ओर स्कूलों में पढऩे आते थे वह अब स्कूल नहीं आ पाएंगे। दूसरा क्षेत्र के आसपास के छोटे-छोटे किसान सब्जी लगाकर अपना जीवन यापन करते हैं। सुबह सभी साइकिल और दो पहिया वाहनों की मदद से जबलपुर शहर की तरफ आकर अपनी सब्जी की फसल बेच लेते थे लेकिन अब वह भी इससे वंचित हो जाएंगे। दवा और अस्पताल के लिए भी लोगों को बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि इस पुल के बंद हो जाने से यहां के आधा दर्जन से अधिक गांव के लोगों को 20 किलोमीटर का चक्कर लगाकर जबलपुर आना पड़ेगा। जो कि भविष्य में कई लोगों के जीवन का काल भी बनेगा क्योंकि इलाज में 10 मिनट की देरी भी कई बार बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।

आरपीएफ जवान ग्रामीणों को दे रहे धमकी भगा रहे मौके से

रेलवे से कबाड़ का ठेका लेने वाला कबाड़ी कितना प्रभावी और पैसे के दम पर सक्षम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डीआरएम कार्यालय नागपुर के फरमान पर आरपीरफ के जवान और एक एएसआई ठेकेदारों के गुर्गों को संरक्षण देने और ग्रामीणों को लाठी का डर दिखाने के लिए यहां तैनात किए गए हैं।

दोपहर तक न पहुँचे नेता न अधिकारी

दोपहर दो बजे तक इस दुखद घटना की खबर फैल जाने के बाद भी न तो मौके पर कोई पक्ष का ना ही विपक्ष का नेता पहुँचा और ना ही जाँच करने वाले कोई जिम्मेदार अधिकारी मौके पर ग्रामीणों की पीड़ा जानने पहुँचे। यह जबलपुर की एक एतिहासिक विरासत को बचाने उसको संवारने के साथ साथ आधा दर्जन से अधिक गाँव के लोगों को, स्कूली बच्चों को, छोटे किसानों को, राहत पहुँचाने का विषय है। सांसद आशीष दुबे आज संभवत: दिल्ली प्रवास से जबलपुर आ जाएंगे और वे इस मामले में संबंधित जनों से चर्चा करेंगे ऐसी उम्मीद है।

 

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Jai Lok
Author: Jai Lok

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