
किशन सनमुखदास भावनानी
वैश्विक स्तरपर एक ज़माना था जब लिंग भेद अपनी चरम सीमा पर था और दुनियां के अनेक देशों में लिंग चयनात्मक गर्भपात का प्रचलन तेजी से बढ़ा था जिसके कारण लिंग अनुपात में तेजी से डिफरेंस बढ़ता चला गया,इस बीच दुनियां की सरकारें जागी और अनेक ऐसे कार्यक्रम, कानून नियम विनियम,व्यवस्थाएं जन जागरण अभियान चलाए गए जिससे इस कुप्रथा पर नकेल कस्ती चली गई,जो कुछ हद तक इस प्रथा पर नियंत्रण रखनेमें सरकारें कामयाब रही,परंतु फिर भी लिंग भेद की यह प्रथा वैश्विक स्तरपर पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है बल्कि चालू है, पर नियंत्रण में है। इसी क्रम एक दौर भारत में भी एक था,1994 से पहले का जब लिंग चयनात्मक गर्भपात अति तेजी के साथ हुआ था और अधिकतम लोग इस तर्ज पर बेटियों का गर्भ नष्ट कर देते थे, जिसमें स्त्री पुरुष अनुपात में भारी डिफरेंस हो गया इसके पश्चात सरकारें जागी व लिंग चयन प्रतिरोध अधिनियम 1994 बनाया जो 1 जनवरी 1996 को प्रवेश पूर्व निदान तकनीकी (विनियमन व दुरुपयोग निवारण) अधिनियम 1994 लागू किया गया जिसमें 14 फरवरी 2003 को संशोधन कर अधिनियम का नाम गर्भधारण पूर्व और प्रवेश पूर्व निदान तकनीकी (लिंग चयन प्रतिरोध) अधिनियम 1994 रखा गया।बता दें मेरा मानना है कि इस अधिनियम को लाने में देर हो गई थी जिसका परिणाम हम आज हर समाज व धर्म में भुगत रहे हैं क्योंकि,आज 1990 की उम्र के अनेक लडक़े अनेक समाजों में हमारे बैठे हैं उस अनुपात में लड़कियां नहीं मिल रही है, क्योंकि आज लडक़ी वाले एज डिफरेंस की स्थिति को भी देख रहे हैं, इसलिए जो हमने 80- 90 के दशक में स्पीड से लिंग चयनात्मक गर्भपात किए थे उसके परिणाम आज उस उम्र के अनुपात में लड़कियों के नहीं मिलने से हो रहा है, जो मैंने प्रत्यक्ष रूप से इसका सटीक उदाहरण अनेक समाजों में देखा हूं। इसलिए ही भारत में भी राष्ट्रीय बेटी दिवस भी मनाया जाता है।और 22 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस भी मनाया जाता हैं अब हंस्ती है बेटियां तो मोती झड़ते हैं,चलती है लहराके तो फूल खिलते हैं। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे,विश्व में लिंग चयनात्मक गर्भपात के प्रचलन को जीरो टॉलरेंस पर लाना समय की मांग है, व बेटे को प्राथमिकता देने की परंपराओं को समाप्त कर सभी लिंगों के लिए समान अधिकारों को बढ़ावा देने को प्राथमिकता देना जरूरी है। साथियों बात अगर करीब करीब अनेकों समाजों की करें तो जहाँ छोटी लड़कियों को अभी भी बोझ और लडक़ों की तुलना में कम मूल्यवान माना जाता है।आर्थिक और सांस्कृतिक कारकों के कारण बेटे को प्राथमिकता देना सदियों पुराना विचार है, फिर भी यह आज भी एक वास्तविकता है।भारत और चीन में लिंग-चयनात्मक गर्भपात का प्रचलन है,लेकिन इसे एशिया मध्य पूर्व, पूर्वी यूरोप और अन्य जगहों पर भी दर्ज किया गया है। इस उत्सव का उद्देश्य लड़कियों से जुड़े कलंक को पहचानना, बेटे को प्राथमिकता देने वाली परंपराओं को खत्म करना और सभी लिंगों के लिए समान अधिकारों को बढ़ावा देना है।डॉटर्स डे दुनियां भर में माता पिता और उनकी बेटियों के बीच अनोखे रिश्ते का सम्मान करने के लिए मनाया जाने वाला एक खास अवसर है।भारत में,परिवार और समाज में बेटियों के प्यार, सम्मान और महत्व को उजागर करता है। साथियों बात अगर हम बेटियों के प्रति सहानुभूति पूर्वक और उत्साह से जनजागरण के 5 कारणों की करें तो (1) बेटियाँ परिवारों को पोषित करने और मजबूत भावनात्मक बंधन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बेटियों की इस भूमिका का जश्न मनाने और परिवार इकाई में उनके योगदान को पहचानने का एक अवसर है। चाहे वह प्यार, देखभाल या जिम्मेदारी के माध्यम से हो,बेटियाँ एक विशेष ऊर्जा लाती हैं जो पारिवारिक जीवन को समृद्ध बनाती है।(2) इसका एक मुख्य उद्देश्य लैंगिक समानता को बढ़ावा देना है भारत में, सामाजिक मानदंडों ने अक्सर बेटों को बेटियों की तुलना में अधिक महत्व दिया है, जिससे महत्वपूर्ण लैंगिक असंतुलन पैदा होता है। यह एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि बेटियाँ भी उतनी ही मूल्यवान हैं और उन्हें बेटों के समान ही प्यार, शिक्षा और अवसर दिए जाने चाहिए। यह भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण से लडऩे में मदद करता है और लिंग के बावजूद बच्चों के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने के विचार को बढ़ावा देता है। (3) कई क्षेत्रों में, पारंपरिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं ने बेटों को प्राथमिकता दी है, खासकर विरासत और पारिवारिक वंश के संदर्भ में। बेटियों का दिन लड़कियों के महत्व और एक संपूर्ण जीवन के उनके अधिकार पर जोर देकर इन पुरानी मान्यताओं को चुनौती देता है। यह उत्सव परिवारों को अपनी बेटियों को उनके लक्ष्यों और सपनों को प्राप्त करने में सहायता करने के लिए प्रोत्साहित करता है, चाहे वे व्यक्तिगत हों या पेशेवर।(4) बेटियों के प्रति जन जागरण सशक्तिकरण के बारे में भी है। यह माता पिता और अभिभावकों को अपनी बेटियों को यह याद दिलाने का मौका देता है कि वे मजबूत हैं, सक्षम हैं और दुनिया द्वारा दिए जाने वाले हर अवसर की हकदार हैं। बेटियों का दिन मनाकर, माता-पिता अपनी बेटियों में आत्मविश्वास पैदा कर सकते हैं, उन्हें अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं और अपने लिए एक उज्जवल भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। (5) माता-पिता और बेटी के बीच का रिश्ता अक्सर अपने गहरे भावनात्मक जुड़ाव के लिए संजोया जाता है। बेटियों के प्रति जन जागरण माता पिता को विचारशील इशारों, उपहारों या साथ में गुणवत्तापूर्ण समय बिताने के माध्यम से इस बंधन को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। चाहे वह एक साधारण दिल से की गई बातचीत हो, परिवार के साथ बाहर घूमना हो या कोई खास तोहफा हो, यह दिन बेटियों को यह दिखाने का सही अवसर प्रदान करता है कि वे परिवार के लिए कितना महत्त्वपूर्ण मायने रखती हैं। साथियों बात अगर हम बेटियों के प्रति जन जागरण अभियान की करें तो, दुनियां के कुछ हिस्सों में, लडक़े बच्चों को लड़कियों से ज़्यादा महत्व दिया जाता है। यह जन जागरण अभियान लडक़े और लडक़ी दोनों के लिए समान महत्व को बढ़ावा देता है।लड़कियों को शिक्षित किया जा सकता है और उन्हें समान अवसर दिए जाने चाहिए। अपनी बेटी का जश्न मनाएँ। अपनी बेटियों के साथ दिन बिताएँ। उन्हें आपको कुछ ऐसा सिखाने दें जो आप पहले से नहीं जानते। उनकी आकांक्षाओं को सुनें। चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो, इस बात का इंतज़ार करें कि हमारी बेटियाँ हमको कहाँ ले जाएँगी। रोमांच हमारे सामने हैं। उत्सवों की तरह ही हमारी बेटियाँ भी कई तरह के व्यक्तित्वों वाली होती हैं। जहाँ एक साहसी और साहसी होती है, वहीं दूसरी हमें पल भर में मात दे देती है। वे तुरंत हमारा दिल जीत लेती हैं। हमारी सहज प्रवृत्ति हमें उनकी रक्षा करने के लिए कह सकती है। हालाँकि, वे भी उतनी ही दृढ़ता से हमारी रक्षा करेंगी।


Author: Jai Lok
