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संतों-कथावाचकों को जातियों में बाँटने की शर्मनाक कोशिश!

डॉ श्रीगोपाल नारसन
देश मे इन दिनों संतो व कथावाचकों को जातियों में बांटकर उनके विरुद्ध अमर्यादित व्यवहार करने का शर्मनाक प्रयास किया जा रहा है।यादव जाति से आने वाले मुकुट मणि यादव और संत सिंह यादव ने अपने ब्राह्मण यजमान पर जाति के आधार पर मारपीट कर अपमानित करने का आरोप लगाया है।
इसके बाद से देश में यह बहस तेज हो गई है कि कथा वाचन करने का अधिकार किस जाति का है। काशी विद्वत परिषद का कहना है कि भागवत कथा करने का अधिकार सभी हिंदुओं को है,वहीं शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का कहना किसी भी जाति का व्यक्ति अपनी जाति के लोगों को भगवत कथा सुना सकता है, लेकिन सभी जातियों को भगवत कथा सुनाने का अधिकार केवल ब्राह्मणों के पास है।देश में इस समय हजारों की संख्या में कथावाचक कथा सुनाने का काम कर रहे हैं।अनिरुद्धाचार्य जिनका असली नाम अनिरुद्ध राम तिवारी है,ब्राह्मण जाति से है।
देवकीनंदन ठाकुर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के रहने वाले हैं,उनका जन्म भी एक ब्राह्मण परिवार में हुआ।
मध्य प्रदेश के छतरपुर में पैदा हुए धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री बागेश्वर धाम सरकार के नाम से मशहूर हैं,उनका जन्म भी एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।संत रामपाल हरियाणा के सोनीपत जिले के धनाना गांव के एक किसान परिवार में पैदा हुए संत रामपाल जाट जाति से हैं।भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि उर्फ सूरजपाल का असली नाम सूरज पाल है,ये एक दलित परिवार से है।बाबा रामदेव का असली नाम रामकिशन यादव है, जो जाति से यादव है।
मोरारी बापू युवावस्था से ही राम कथा कह रहे हैं,वे अब तक आठ सौ से अधिक जगह राम कथा कह चुके हैं, मोरारी बापू अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं।जया किशोरी का जन्म राजस्थान के सुजानगढ़ के ब्राह्मण परिवार में हुआ था,वे धार्मिक कथाओ के लिए प्रसिद्ध हैं।
वही हरिद्वार के चिंतक एवं वरिष्ठ पत्रकार कौशल सिखौला का कहना है कि शास्त्रों के अनुसार पण्डिताई , पुरोहिताई और ज्योतिष का अधिकार तो सचमुच ब्राह्मणों का है पंडितों का है । मंदिरों में पुजारी भी पंडित होंगे  , सोलह संस्कार कराने और ज्योतिष बचाने वाले भी पंडित होंगे । सप्तऋषियों सहित जितने भी प्रारम्भिक ऋषि हुए वे सभी ब्राह्मण थे । सत्यनारायण की कथा सुनाने से लेकर श्रीमद्भागवत करने , राम कथा बाँचने , यज्ञ अनुष्ठान कराने , सोलह संस्कार और गृह प्रवेश कराने का अधिकार भी ब्राह्मणों का है ।
तीर्थों पर संस्कार और समस्त कर्मकांड कराने के शास्त्र सम्मत अधिकारी पण्डे पुरोहित हैं । दान लेने के अधिकारी भी ब्राह्मण हैं । उनके शब्दो में,न होते तो रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना के लिए भगवान राम रावण जैसे प्रतापी ब्राह्मण को लंका से न बुलाते । वे स्वयं क्षत्रिय वंश में जन्में थे । यादवकुल में जन्में भगवान कृष्ण शास्त्रों एवं विद्याओं का अध्ययन करने ब्राह्मण ऋषि संदीपनी के आश्रम न जाते । जितने भी राज्य भारत में थे उन सभी में क्षत्रिय राजा ब्राह्मण वर्ग से राज पुरोहित का अनिवार्य आसन राजा के समकक्ष ऊंचाई पर स्थापित न करते । कारण वही कि सामाजिक संदर्भों में ब्राह्मणों को पूज्य का दर्जा प्राप्त था ।
ब्राह्मण पूज्य न रहा होता तो दरबार में रानियों और मंत्रियों के साथ बैठे राजा कृष्ण नंगे पांव दौड़े दौड़े बाहरी द्वार पर न आते , आंसुओं के जल से गरीब ब्राह्मण सुदामा के पांव न धोते । ब्राह्मण पूज्य था तभी तो पांडव एवं कौरव राजकुमारों को शिक्षा के लिए द्रोणाचार्य और कृपाचार्य जैसे ब्राह्मणों के पास जाना पड़ा ।
भाइयों सहित चारों दशरथनंदन वशिष्ठ और विश्वामित्र के आश्रम न जाते । ब्राह्मण मेधा का धनी था तभी तो भारत पर आक्रमण से पूर्व सिकंदर ने भारत की शक्ति का पता लगाने के लिए अपने दूत को  चाणक्य के आश्रम में विद्यार्थी बनाकर भेजा था । कथा है कि सुकरात ने भी भारत की ब्रह्मशक्ति के प्रति जिज्ञासा प्रकट की थी ।कौशल सिख़ौला की माने तो भारतवर्ष में ब्राह्मण का महत्व अनादिकाल से है । हम इटावा में ही अप्रिय और निंदनीय घटना के बारे में जरा भी बात नहीं करना चाहते । जो हुआ वह बहुत बुरा था , कानूनन कार्रवाई चल रही है । वास्तुत: देश के इतिहास को समझने का समय आ गया है । हमारी संस्कृति में ज्ञान की महिमा थी । न होती तो महर्षि वेदव्यास को महान ऋषि न माना गया होता । जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भारतवर्ष में समन्वय स्थापना के लिए समरसता के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया ।
जिस मनुस्मृति ने वर्णाश्रम व्यवस्था दी , उसने कार्य निष्पादन के नियम भी दिए ।
इन्हीं नियमों से भारत देश युगों से चला आ रहा है । इस व्यवस्था में दासीपुत्र विदुर हस्तिनापुर जैसे विशाल राज्य के मंत्री बनते हैं और गैर क्षत्रिय चंद्रगुप्त राजा बनता है । महर्षि वेदव्यास समस्त वेदों , उपनिषदों , पुराणों और अनेक महाग्रंथों का लेखन करते हैं । क्या क्या गिनाएं , महीनों बीत जाएंगे , पूरा नहीं होगा ।उनकी राय में जाति वर्ण व्यवस्था तो वनस्पति में भी है और जंतुओं में भी । अब देखिए न एक पेड़ दयार का है , एक चिनार का , एक चंदन का , एक खैर का और एक शीशम का । सभी वृक्ष हैं पर फर्क है ना कुछ  एक पेड़ नीम का है , एक बबूल का और एक कीकर का । जीवन दायिनी पौधे तथा जड़ी बूटियां भी हैं और नर भक्षी पौधे भी  कुछ तो बात होगी जो जंगल का राजा शेर ही बनेगा, उससे 100 गुना वजन वाला हाथी नहीं  खैर यह वाद विवाद तो चलता रहेगा लेकिन किसी भी संत या कथावाचक अथवा पुजारी को उसकी जाति के आधार पर अपमानित करना किसी भी दृष्टि से उचित नही है।कम से कम संतो ,महात्माओ,पुजारियों व कथावाचकों को उनकी जन्म जाति से मत जोडि़ए ,यदि जोडऩा ही है तो उनके गुणों को आधार बनाइए।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ साहित्यकार है)
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है)

 

1 जुलाई को चुनाव प्रक्रिया होगी पूरी, चुनाव हुआ तो 2 जुलाई को होगा प्रदेश अध्यक्ष के लिए मतदान

 

 

Jai Lok
Author: Jai Lok

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