
दादागुरु के जीवन का रहस्य अब भी बरकरार
जबलपुर (जयलोक)। 22 मई इस नव युग और सदी के तिथियों के लेखपत्र पर भारतीय संस्कृति की स्वर्ण कलम से लिखा गया वह दिन है जिस दिन विगत वर्ष चिकित्सा विज्ञान ने माँ नर्मदा की शक्ति एवं सत्य तथा प्रकृति की जीवंतता को दादागुरु के जीवन के माध्यम से देश दुनिया के सामने प्रकट किया था और विश्व में प्रथम बार इस तरह का शोध करने का गौरव प्राप्त किया था।
ज्ञातव्य है कि भैयाजी सरकार जिन्हें दादागुरु के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है वे विगत 1600 दिनों से अधिक समय से सिर्फ नर्मदाजल ग्रहण कर सक्रिय और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं जिसमें साधना, उपासना, रात्रि जागरण एवं प्रतिवर्ष मात्र वायु ग्रहण कर 3200 किमी की पैदल नर्मदा परिक्रमा करना तथा 4 बार रक्तदान करना भी शामिल है। इसी जीवनशैली के रहस्य को सुलझाने के लिए राज्य सरकार ने देश के उच्च चिकित्सा संस्थानों के प्रख्यात चिकित्सकों से दादागुरु पर शोध करवाया।
मेडिकल साइंस ने विगत वर्ष 22 मई 2024 से 29 मई 2024 तक दादागुरु को मीडिया व पुलिस की उपस्थिति में अपनी गहन निगरानी में रखकर शोध किया और उनके शरीर के प्रत्येक अंग व अंगों के सभी अवयवों की सूक्ष्म से सूक्ष्म जाँच की और घोषित किया कि दादागुरु के शरीर में नर्मदाजल के अलावा और कुछ भी नहीं है। मेडिकल साइंस के हिसाब से ऐसे जीवित रहना संभव ही नहीं है कोई और ऊर्जा उन्हें जीवित रखे हुए है। उनका दावा है कि वे प्रकृति से ऊर्जा लेते हैं और रिसर्च के बाद हम भी मानते हैं कि वे सतत प्रकृति के सम्पर्क में रहते है अत: उन्हें जीवित रखने वाली ऊर्जा प्रकृति में ही विद्यमान हो सकती है।
दादागुरु का संदेश है कि हमारी प्राचीन सनातनी संस्कृति में प्रकृति केंद्रित जीवनशैली प्रधान थी किंतु आज जीवन में प्रकृति से प्रेम और जीवन आधारों की सुरक्षा लगभग नगण्य है जो जीवन के लिए घातक सिद्ध हो चुकी है। हमें अपनी पीढिय़ों और अपने जीवन आधारों जैसे नदियाँ, पर्वत, माटी, वन इत्यादि के अस्तित्व को बचाने के लिए प्रकृति से सहज सन्धि करनी होगी उसके साथ जीना होगा नहीं तो आने वाले समय में परिणाम भयंकर होंगे। प्रकृति में अनन्त शक्तियां व्याप्त हैं जो प्रगति और संवृद्धि का मूल आधार हैं जैसे हमारी आदिशक्ति भगवती माँ नर्मदा सिर्फ हमें पालती पोसती ही नहीं हमारा जीवन भी चलाती है। और हमें व्यवस्था भी देती है नदी के रूप में जो शक्ति हमारे जीवन में है वह माँ नर्मदा है जो मेरे शरीर में रक्त बनकर दौड़ रही है।
ब्रह्माण्ड में व्याप्त इसी आदिभवानी की महिमा और महत्व को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने के लिए यह साधना है।

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Author: Jai Lok
