जबलपुर (जयलोक)। पहलगाम हमले के बाद आतंकियों को पनाह देने वाले पाकिस्तान और भारत के बीच चल रहे तनावपूर्ण हालातों के बीच में केंद्र सरकार के निर्देश पर देश के कुछ चुनिंदा शहरों में मॉक ड्रिल और ब्लैक आउट का आयोजन किया गया। युद्ध में होने वाले हमले और आपातकाल की स्थिति निर्मित होने पर आम नागरिकों को अपनी सुरक्षा के लिए किस तरीके से जागरूक रहना चाहिए और बचाव के क्या तरीके अपनाना चाहिए इसकी जानकारी देने और उनमें जागरूकता के साथ सही कदम उठाने की जानकारी के लिए यह आयोजन सरकारी तंत्र ने किया था। यह पूर्व नियोजित था इसलिए सभी को समय रहते समाचार पत्रों और मीडिया के विभिन्न माध्यमों से इसकी जानकारी दी गई थी।
ब्लैकआउट कब करना है इसकी मुख्य सूचना देने का जरिया सायरन बजाना बताया गया था। जानकारों का कहना है कि 1971 के समय जब देश में बांग्लादेश मुक्ति अभियान के समय युद्ध जैसे हालात निर्मित हुए थे उस वक्त भी इस अभ्यास को कराया गया था। उस वक्त आयुध निर्माणियों तथा टेलीग्राफ फैक्ट्री सहित अन्य स्थानों पर ऐसे सायरन लगे थे जिनके बजाने पर लगभग शहर के हर कोने में उसकी आवाज जाती थी। जिसके माध्यम से लोगों को आपातकाल की स्थिति की सूचना समय रहते मिल जाती थी और लोग सतर्क हो जाते थे।
सायरन का आधार इस बार भी रखा गया शुरू से यह कहा गया था कि पहले सायरन बजाने पर लोगों को अपने घरों की ओर विशेष करके बाहर से देखने वाली सभी लाइटों को बंद करना है ताकि किसी भी प्रकार के हवाई हमले में सही लोकेशन की जानकारी ना मिल सके।
इस बार के ब्लैकआउट अभ्यास के दौरान भी सायरन का ही आधार था। लेकिन शहर के अधिकांश हिस्सों में सायरन सुनाई नहीं दिया। आम नागरिकों में इस बात की जिज्ञासा बनी हुई थी और सभी एक दूसरे से पूछते नजर आए कि उन्होंने सायरन बजने की आवाज सुनी क्या?
यह पूर्व नियोजित ब्लैकआउट और मॉक ड्रिल थी इसलिए सभी को पता
था कि उन्हें किस समय बिजली बंद करना है और कितने अंतराल के बाद चालू करना है। इसका आधार भी यही बताया गया था कि जब पहले सायरन एक निश्चित ध्वनि के साथ बजेगा उस समय सभी को ब्लैकआउट करना है और जब एक सी ध्वनि का सायरन दोबारा बजेगा तो उसे सामान्य स्थिति का संकेत माना जाएगा और सभी को वापस बिजली प्रारंभ कर लेना है।
पहले टेलीग्राम फैक्ट्री में बजते थे सायरन
पहले शहर के मध्य में स्थित टेलीकॉम फैक्ट्री जो कि रानीताल में स्थित है उसमें भी सायरन लगा हुआ था। उसे सायरन का उपयोग कर्मचारियों की ड्यूटी लगने और छूटने के समय अवधि को बताने के लिए प्रतिदिन किया जाता था लेकिन उसकी आवाज कई किलोमीटर दूर तक सुनाई देती थी। वर्तमान में यह फैक्ट्री बंद पड़ी हुई है। जानकारों का कहना है कि पूरे शहर को सचेत करने के लिए इस बारे में योजना बनाकर तैयारी की जानी चाहिए कि शहर के किस-किस क्षेत्र में बड़े सायरन लगाए जा सकते हैं जिनका ऐसी आपातकाल स्थितियों में उपयोग कर आम जनमानस तक यह संदेश पहुंचाया जा सके।
पूर्व नियोजित ब्लैकआउट अभ्यास में तो पहले से तय था लेकिन वास्तविक स्थिति में जब कोई आपातकाल की स्थिति बनेगी तो तात्कालिक रूप से शहर की इतनी बड़ी आबादी को एक साथ कैसे सूचित किया जाएगा। सायरन बजाना और उसके माध्यम से खतरे की स्थिति का संकेत देना सबसे सरल और प्रभावी तरीका माना जाता रहा है।
इस पूरे अभ्यास के दौरान लोगों के दिमाग में यह बात तो बैठा दी गई है कि पहले सायरन बजाने पर उन्हें आपातकाल स्थिति के लिए तैयार रहना है और क्या-क्या कदम उठाने हैं एवं दूसरा सायरन बजाने पर स्थित समान होने का भी संकेत दिया जाएगा।
सायरन बजेगा तो क्या करना है केंद्र सरकार ने जारी किए हैं जागरूकता वीडियो
युद्ध जैसे हालातों में या आपातकाल की स्थिति निर्मित होने पर आम नागरिकों को बच्चों के प्रति बुजुर्गों के प्रति एवं भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में किस प्रकार से अपने बचाव के लिए कदम उठाना है इसकी जानकारी देने के लिए सरल भाषा में एनीमेशन के साथ वीडियो जारी किए गए हैं। इन वीडियो के माध्यम से हर उम्र के लोगों को बिना तनाव में आए या बिना अधिक घबराए किस प्रकार से आपातकाल स्थिति में खुद का बचाव करना है और दूसरों का बचाव करना है इस बारे में जानकारियाँ दी गई है।
