30 करोड़ का धान घोटाला, 56 सरकारी 17 मिलर्स के खिलाफ 12 थानों में एफआईआर दर्ज
जबलपुर(जय लोक)। जिले में धान खरीदी को लेकर की गई घपलेबाजी पर कलेक्टर दीपक सक्सेना शुरू से सख्त रवैया अपनाये हुए हंै। प्रदेश शासन और मुख्यमंत्री की मंशा पर अब कलेक्टर इस पूरे मामले पर सख्त हैं और बारीकी से पूरे मामले कि जाँच की जा रही है। अभी तक 30 करोड़ रुपए का धान घोटाला पकड़ में आया है। सूत्रों का कहना है कि अगर परिवहन के बिल और लेखा जोखा की जाँच बारीकी से की जाएगी तो यह घोटाला 75 करोड़ रुपए तक या उससे अधिक पर पहुँच सकता है। धान की फर्जी खरीदी और अंतर जिला धान की मिलिंग की आड़ में किया गया यह घोटाला अब पकड़ में आ गया है । इसमें सरकार के कई बड़े छोटे अधिकारी कर्मचारी शामिल हंै। अब इनको भी चिन्हित करके एफआईआर दर्ज करने की कार्यवाही की जा रही है।
इस पूरे घोटाले को सुनियोजित ढंग से सहकारी समितियों, नागरिक आपूर्ति निगम के अधिकारी कर्मचारी और राइस मिल संचालकों के द्वारा अंजाम दिया जा रहा था। कलेक्टर ने इसकी जानकारी मिलने पर सूक्ष्मता से जांच कराई और 56 सरकारी अधिकारी और 17 मिलर्स को मिलकर 74 लोगों के खिलाफ 12 विभिन्न स्थानों में मामला दर्ज कराया गया है।
जिल प्रशासन को इस बात की शिकायत मिल रही थी कि सहकारी समितियों के द्वारा खरीदी गई धान को बाहर राइस मिलर संचालकों को देने की बजाय स्थानीय स्तर पर दलालों को बेचा जा रहा है। जानकारी मिलने पर कलेक्टर दीपक सक्सेना ने चार सदस्यों की एक समिति बनाई जिसमें नाथूराम गोंड अपर कलेक्टर, ऋषभ जैन संयुक्त कलेक्टर, शिवाली सिंह संयुक्त कलेक्टर और संजय खरे सहायक आपूर्ति अधिकारी शामिल थे।
2510 पेज की रिपोर्ट, कारों में दिखाई धान की ढुलाई
जाँच समिति के द्वारा 2510 पेज की विस्तृत जाँच रिपोर्ट कलेक्टर को 19 मार्च को पेश की गई। इस रिपोर्ट में पाया गया कि सहकारी समितियों के द्वारा जो धान बाहर के जिलों के राइस मिलर को बेचा जाना बताया गया था उस मार्ग पर पडऩे वाले टोल नाकों से परिवहन करने वाले वाहन गुजरे ही नहीं। ना तो राइस मिलर और ना ही सहकारी समितियों के लोग संबंधित वाहनों की जानकारी दे पाए। यह भी पाया गया कि जिन वाहनों से धान का परिवहन होना बताया गया उनमें आधा सैकड़ा से ज्यादा कारें शामिल थी। इसके अलावा कई ऐसे वाहन थे जो उस समय मध्य प्रदेश की बजाय देश के किसी अन्य हिस्से में परिवहन कर रहे थे। ऐसी फर्जी ट्रिप के आधार पर फर्जी रूप से धान भेजे जाने की मात्रा लगभग 13000 मीट्रिक टन यानी 30 करोड़ रुपए की पाई गई। कुल 307 ऐसे वाहन भी पाए गए जो या तो कार थे या फिर ऐसे जिनकी लोडिंग क्षमता बहुत कम थी। कुल 571 वाहनों का रिकॉर्ड ही प्राप्त नहीं हुआ।
टोल की पर्ची ने खोल दिया राज
जिले से मिलिंग के लिए धान का उठाव जबलपुर के गोदामों से उज्जैन, मंडला, ग्वालियर और मुरैना के लिए किया गया। जाँच टीम को सन्देश हुआ और जब उन्होंने टोल नाकों की जांच की तो सामने आया कि 97.44 प्रतिशत ट्रिप का टोलना के से गुजरने का रिकॉर्ड ही नहीं मिला। इससे पता चला कि धान को जबलपुर में ही बेच दिया गया। यह पूरा खेल सरकारी अधिकारियों और मिलर्स, समिति वालों ने मिलकर रचा है।
कई माध्यमों से पकड़ा है फर्जीवाड़ा-कलेक्टर
30 करोड़ की धान खरीदी के मामले में कलेक्टर दीपक सक्सेना का यह कहना है कि धान की करीब 16 करोड़ की फर्जी खरीदी रिकॉर्ड में दर्ज की गई है। कलेक्टर ने बताया कि धान खरीदी के लिए 11 लाख की अर्नेस्ट मनी भी जमा कराई जाती है बैंक गारंटी भी जमा होती है एफडी भी जमा कराई जाती है इन्हें भी बहुत से जांच के मामलों में जब्त किया गया है और इनके माध्यम से भी फर्जीवाड़े को पकड़ा गया है। कलेक्टर ने यह भी बताया कि धान खरीदी का मामला बहुत हद तक ऑनलाइन हो चुका है और पोर्टल की सहायता से भी जांच का काम कराया गया है। धान का परिवहन करने वाले वाहनों का आना-जाना भी टोल टैक्स के नाकों से जांचा गया है और इन वाहनों की आवाजाही से भी फर्जीवाड़ा पकड़ा गया है। कुछ वाहनों को तो उज्जैन चार बार आना जाना दर्शाया है जबकि उज्जैन का एक ही दिन में चार बार आना जाना संभव नहीं हो सकता है। इस तरह की और भी अनियमितताओं को जांच के दौरान पकड़ा गया है।
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