संदर्भ : काशीनाथ का अचानक अलविदा हो जाना
जब गाँधी जयंती पर काशीनाथ शर्मा और रवीन्द्र दुबे, गंगा चरण मिश्रा ने पदयात्रा निकाली थी।
जबलपुर ही नहीं प्रदेश की पत्रकारिता में अपनी पहचान बन चुके वरिष्ठ पत्रकार काशीनाथ शर्मा के अस्वस्थ होने और उनके एक निजी अस्पताल में भर्ती होने की जानकारी मुझे पूना में वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र दुबे ने दी। उनका उपचार चल ही रहा था कि उन्हें नागपुर ले जाने की सलाह दी गई और वे बरगी तक ही पहुँचे थे कि वे बच नहीं सके, कल निधन हो गया। उनका निधन पत्रकारिता जगत की एक बड़ी क्षति माना जाएगा। काशीनाथ शर्मा अच्छे छात्र के साथ ही एक दबंग छात्र नेता भी रहे हैं, शरद यादव जैसे छात्रनेता के साथ काशीनाथ और रवीन्द्र दुबे भी उनके सहयोगियों में प्रमुख रहे हैं। जबलपुर के छात्र आंदोलन में काशीनाथ और रवीन्द्र दुबे की सक्रिय भूमिका रहा करती थी। मालवीय चौक पर छात्र नेताओं का जमघट इन्हीं दो छात्र नेताओं के आसपास होता था। बाद में ये दोनों छात्र नेता पत्रकारिता जगत में आ गए। इन दोनों छात्र नेताओं को वरिष्ठ पत्रकार अजित वर्मा जी ने ही उनकी धारा को मोडक़र पत्रकारिता के क्षेत्र में लाने का काम किया। अजित वर्मा जी काशीनाथ शर्मा को दैनिक नव भास्कर से और रविंद्र दुबे को दैनिक जयलोक से पत्रकारिता जगत में लेकर आए थे। काशीनाथ और छात्र नेता भगवान यादव के भी अभिन्न साथ ही रहे हैं। भगवान यादव विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे। काशीनाथ छात्र आंदोलन को लेकर समाचार बनाकर खुद ही अखबारों के दफ्तर में पहुंच जाया करते थे। जबलपुर से जब दैनिक नव भास्कर का प्रकाशन हुआ तब उसके स्थानीय संपादक अजित वर्मा जी बने। नव भास्कर का कार्यालय शहीद स्मारक में खुला था। एक दिन काशीनाथ किसी समाचार को लेकर नव भास्कर पहुंचे और अजित वर्मा जी से उन्होंने भेंट की। अजित वर्मा जी ने काशीनाथ से कहा कि तुम्हें अब नव भास्कर में संपादकीय विभाग में मेरे साथ काम करना शुरू करना है। आश्चर्यचकित काशीनाथ अजीत वर्मा जी के प्रस्ताव से सहमत हुए और उन्होंने नवभास्कर में पत्रकारिता की दिशा में काम करना शुरू कर दिया। एक दिन जब तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रुस्तम सिंह नव भास्कर कार्यालय पहुंचे और वे अजित वर्मा जी से मिले तभी उनकी नजर वहां बैठे काशी नाथ पर पड़ी। तब रुस्तम सिंह ने अजित वर्मा जी से पूछा कि ये काशीनाथजी शर्मा यहां कैसे बैठे हैं। तब अजित वर्मा जी ने उन्हें बताया कि यह मेरे सहयोगी हैं और अब यह पत्रकारिता कर रहे हैं। रुस्तम सिंह अपनी कुर्सी से उठे और अजित वर्मा जी से बोले वर्मा जी आपने पुलिस विभाग की बहुत बड़ी मदद कर दी है जो आपने काशीनाथ शर्मा को छात्र नेता से पत्रकारिता के काम में लगा दिया है। अब हमें इनसे राहत रहेगी। रुस्तम सिंह की बातों से यह सब झलकता रहा की काशीनाथ शर्मा छात्र राजनीति के लिए पुलिस प्रशासन के लिए कितना परेशानियों का सबक बने हुए थे। नवभास्कर बंद होने के बाद काशीनाथ शर्मा ने अपनी पत्रकारिता का सफर जारी रखा और वह अन्य दूसरे समाचार पत्रों में काम करने लगे। जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का बोल वाला शुरू हुआ तब काशीनाथ शर्मा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के काम में लग गए। काशीनाथ की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ऐसी पकड़ बनी की उन्हें प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक चैनल ने काम करने के लिए बुला लिया। तब कुछ ही समय बाद काशीनाथ भोपाल के मीडिया जगत में अपनी पहचान बनाने में कामयाब भी हो गए बड़े-बड़े नेताओं को हाथ पकडक़र रोक लिया करते थे कई बार तो बड़े नेताओं को सीधे नाम लेकर पुकारते थे।काशीनाथ शर्मा बड़े अध्ययनशील पत्रकार रहे हैं। उन्हें पढऩे का बेहद शौक रहा है इस शौक के चलते ही वे राजनीतिक, आर्थिक सामाजिक और बहुत सारे क्षेत्रों की जानकारियों से लैस रहते रहे हैं। चैनलों की बहस में उनका अध्ययन साफ नजर आता था। काशीनाथ प्रखर लेखक और प्रखर वक्ता दोनों ही रहे हैं। काशीनाथ अपने जीवन के आखिरी वर्षों में अचानक गांधीवाद की ओर तेजी से मुड़ गए। उन्होंने व्हाट्सएप पर एक मैं गांधी नाम से गु्रप बनाया जिसमें गांधी जी से संबंधित देश के जाने-माने लोगों के लेख और गांधी जी से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां और दुर्लभ चित्र भी काशीनाथ साझा करने लगे। मैं गांधी गु्रप में काशीनाथ अन्य किसी और दूसरी सामग्री को पोस्ट करना पसंद नहीं करते थे और जो भी गांधीजी से अलग और कोई जानकारियां मैं गांधी गु्रप में पोस्ट करता था तो काशीनाथ उससे अलग कर दिया करते थे और बार-बार लोगों को यह सचेत करते रहे हैं कि इस गु्रप में सिर्फ गांधी से संबंधित ही जानकारियां मंजूर होंगी। गांधी के प्रति उनका प्रबल आग्रह उस समय सामने आया जब अभी कुछ वर्ष पूर्व ही काशीनाथ ने अपने दो साथी रविंद्र दुबे और गंगा चरण मिश्रा के साथ पदयात्रा निकाली और यह पदयात्रा तिलवारा स्थित गांधी स्मारक पहुंची जहां पर की इस यात्रा का समापन हुआ और एक वैचारिक बहस भी उन्होंने आयोजित की थी। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही काशीनाथ, रविंद्र दुबे और पंकज शाह ने मिलकर अपना एक न्यूज़ चैनल त्रिकाल भी शुरू किया वे इस चैनल के माध्यम से भी हुए नवीनतम जानकारियां और खबरें देते रहे। आज सुबह मैंने रविंद्र दुबे से पुणे से विस्तार से काशीनाथ शर्मा की बीमारी को लेकर चर्चा की तब रविंद्र दुबे ने बताया की काशीनाथ अपने स्वास्थ्य को लेकर जितना गंभीर होना चाहिए था वे नहीं रहे और वह लगातार उन्हें स्वास्थ्य को लेकर सचेत भी करते रहते थे। रविंद्र दुबे का यह मानना है कि उन्होंने अपने स्वास्थ्य को लेकर सतर्कता नहीं बरती और वे अपनी बीमारी को छुपाते रहे। वे बीच बीच में मुंबई और दूसरे शहरों में जाकर उपचार करा आते थे लेकिन अपने मित्रों को कुछ बताते नहीं थे। काशीनाथ शर्मा के अचानक चले जाने पर किसी को भी भरोसा करना संभव नहीं हो रहा है। जयलोक परिवार की ओर से पंडित काशीनाथ शर्मा को विनम्र श्रद्धांजलि।