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जय लोक क्या और क्यों ?
दैनिक जय लोक जबलपुर के पत्रकार और लेखक तथा मित्र संघ के माध्यम से साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक अभियानों के संचालक श्री अजित वर्मा द्वारा साकार हुआ स्वपन हैं, जिसके स्वपन शिल्पियों में उनके मित्र/बंधु श्री सच्च्दिानंद शेकटकर जी अग्रगण्य हैं । अब श्री अजित वर्मा के सुयोग्य पुत्र श्री परितोष वर्मा उसका संचालन/सम्पादन अपने पिता श्री अजित वर्मा और चाचा श्री सच्चिदानंद शेकटकर के मार्गदर्शन में उत्साह के साथ कर रहे हैं ।

श्री परितोष वर्मा सन् २००३ में बतौर प्रशिक्षु जय लोक से जुड़े और ……… से वे स्थानीय संपादक के रूप में पूर्णतः निष्ठापूर्वक अपने दायित्वों का पालन कर रहे हैं। दैनिक जय लोक सम्प्रति एक सांध्य दैनिक है । प्रतिदिन भोर की पहली किरण के साथ एक स्वपन जागता है और सूर्य की अंतिम किरण के साथ समाचार पत्र के नये अंक के रूप में समर्पित होकर जनसमुदाय में आलोक बिखेर जाता है। समाचार, विचार, घटनाक्रम के विश्लेषण, घटनाओं के सम्भावित परिणामों का दिग्दर्शन कराना ही इस दैनन्दिन स्वपन का अभीष्ट है ।

सुपरिचित स्वैच्छिक कार्यकर्ता के रूप में ज्ञात श्री जयंत वर्मा और सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राजकुमार सुमित्र ने संपादक के रूप में अपना योगदान दिया । अब नगर निगम जबलपुर के जनसंपर्क अधिकारी/उपनिगमायुक्त के पद से सेवानिवृत्त हुए वरिष्ठ और अनुभवी पत्रकार श्री सच्चिदानंद शेकटकर दैनिक जय लोक के संपादक हैं जबकि डॉ. राजकुमार सुमित्र सलाहकार संपादक हैं। कुछ अवधि के लिये देश के सुपरिचित लेखक और पत्रकार श्री शारदा पाठक भी दैनिक जय लोक के मानसेवी सलाहकार रहे । जय लोक के संस्थापक प्रधान संपादक स्थानीय से लेकर अंतरराष्ट्रीय विषयों तक अपने तथ्य और तर्कपूर्ण लेखन के लिये चर्चित रहते हैं।

देश, दुनिया और समाज के बहुआयामी सरोकारों के प्रति उनका चिंतन पाठकों को विचारात्तेजक चिंतन के लिये प्रेरित करता है। सामाजिक, राजनैतिक,

सांस्कृतिक, आर्थिक कूटनीतिक सभी आयामों पर उनका प्रखर चिंतन और लेखन उनकी विशिष्ट पहचान है । उनकी पत्रकारिता का केन्द्र सदैव देश और मानवीय हितों के प्रति जनजागरण की भावना है और यही दैनिक जय लोक के प्रकाशन का उद्देश्य भी है। यही पत्रकारिता और समाचार माध्यमों का उद्देश्य होना चाहिये ।

बिना बडी पूँजी के, बिना समाचार पत्र के लिये आवश्यक संसाधनों के खालिस पत्रकारिता और उसे प्रसारित करने के लिये दैनिक समाचार पत्र के प्रकाशन की जिजीविषा का दुस्साहसपूर्ण उपक्रम है जय लोक। २४ जनवरी १९९३ को प्रकाशन का लोकार्पण हजारों लोगों की उपस्थिति में हुआ, जिसमें गुरुतुल्य संपादकों, श्रेष्ठ साहित्याकारों ,चिंतकों, लेखकों, समाज के विविध वर्गों के लोगों की उपस्थिति ने स्तरीय और निष्पक्ष पत्रकारिता के प्रति अपना स्नेह जताया । मंच पर सभी राजनैतिक विचारधाराओं के प्रवक्ताओं की मंच पर उपस्थिति के बीच चिंतक राजनेता के रूप में सुपरिचित तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री श्री अर्जुन सिंह ने इसका लोकार्पण किया । तब से बिना रुके दैनिक जय लोक की यात्रा जारी है । श्री अजित वर्मा की जीवन सगंनी श्रीमती राजश्री वर्मा अन्य सभी अभियानों की तरह दैनिक जय लोक के मिशन की जीवन शक्ति हैं। ८ अप्रैल २००७ को उनके निधन से हुई रिक्ति के बावजूद उनसे प्राप्त प्रेरणा से यह मिशन अनवरत जारी है।

दैनिक जय लोक एक नितान्त ईमानदार मृदुभाषी और लोकप्रिय तथा संघर्षशील नायक स्व. सुंदरलाल वर्मा और माताश्री विदुषी और धार्मिक प्रवृत्ति की श्रीमती प्रफुल्लमुखी वर्मा को समर्पित रहा है और शाश्वत, सनातन मान्यताओं, आस्थाओं, आचार, विचार, व्यवहार और संस्कारों की प्रवाहमान धारा में अवगाहन स्वयं होते हुये पाठकों को भी इसकी प्रेरणा देता है । चेतना के उन्नायक श्रीमदाद्य शंकाराचार्य द्वारा प्रणीत शाड्.कर परंपरा की चिंतनधारा को अद्वैत भाव के साथ समाज में जाग्रत करने को जय लोक प्रमुखता देता है। इस परंपरा के आदरणीय और मान्य/वर्तमान उत्तराधिकारी ज्योतिष् एवम् द्वारका शारदापीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वतीजी महाराज का मार्गदर्शन दैनिक जय लोक का पथ प्रदर्शित करता है । देश और देश पार की परिस्थितियों का दिग्दर्शन सनातन संस्कृति को परिपुष्ट करते रहना जय लोक का अभीष्ट है । जय लोक देश-देवता के चरणों मे सदैव समर्पित रहता हैं।

दैनिक जय लोक अब ई-पेपर के रूप में आनलाईन हो रहा है । इसके परामर्शदाता सुपरिचित साहित्यकार श्री विजय तिवारी ’किसलय’ हैं। जय लोक परिवार से जुड़ना जय लोक की पहुँच वैश्विक बनाने का माध्यम बनेगा।

कृपया जय लोक में प्रकाशित टिप्पणियाँ, आलेख, समाचार विश्लेषण आदि पर कोई प्रतिक्रिया देना चाहें तो उनका सदैव स्वागत है ।

(जय लोक परिवार)

पिता जी

(श्री गुरवे नम: )

” त्वदीयम् वस्तुगोविन्दम् लुभ्यमेव समर्पियत् “श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज जगद् गुरू शंकराचार्य,ज्योतिषपीठ बदरिकाश्रम (हिमालय) एवम् द्वारका शारदापीठ (गुजरात)

 

(स्व. श्री सुंदर लाल वर्मा) श्रीमती प्रफुल्ला देवी वर्मा) (श्रीमती राजश्री वर्मा)
(पिता जी) (माता जी) (पत्नी)

 

डॉ. राजकुमार सुमित्रा श्री अजित वर्मा श्री सच्चिदानंद शेकटकर श्री परितोष वर्मा श्री विजय तिवारी किसलय
(सलाहकार संपादक) (संस्थापक, प्रधान संपादक) (संपादक) (स्थानीय संपादक) (वेबसाइट परामर्शदाता)