जबलपुर (जयलोक)
पिछले डेढ़ दशक से जबलपुर में निजी अस्पतालों की बाढ़ आ गई है, जिसके कारण प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ गई है कि लोग अधमरे लोगों और लाशों तक का सौदा करने लगे हैं। लाशों का सौदा ऐसे होता है कि यह समझ आ जाने के बावजूद भी की मरीज के रूप में आया इंसान नहीं बच पाएगा फिर भी उसे भर्ती कर वेंटिलेटर पर 2 से 3 दिन जबरदस्ती रखकर सिर्फ बिलिंग की जाती है। इसके अलावा जो लोग सडक़ दुर्घटना में या फिर गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं और रेफर होकर एंबुलेंस में रवाना होते हैं उनका सौदा यही एंबुलेंस चालक तथाकथित अस्पतालों से कर लेते हंै। मरीज जितना गंभीर होगा कमीशन उतना ही मोटा एम्बुलेंस चालकों को मिलेगा।
सिहोरा में हुए भीषण सडक़ दुर्घटना में मारे गए 7 लोग और 11 लोगों के घायल होने के बाद इनमें से जब कुछ लोगों को स्थानीय सरकारी अस्पताल से नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल अस्पताल में रेफर किया गया तो उन्हें एंबुलेंस चालक ने इन मरीज को निजी अस्पताल में भर्ती करवाने का सौदा कर लिया। किस प्रकार से पूरा माफिया नेटवर्क काम कर रहा है इसका अंदाजा इसी बात से हो जाता है कि बिना एंबुलेंस और मरीजों के मेडिकल पहुंचे उनके नाम से ओपीडी की पर्ची कटवा दी गई। ताकि यह दर्शाया जा सके कि पहले मरीज को मेडिकल लाया गया था और फिर उनके परिजनों की मांग पर या मरीजों के कहने पर उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया।
लेकिन जब मरीज 4 से 5 घंटे तक लापता हो गए और इस बात की भनक कलेक्टर दीपक सक्सेना तक पहुंची तो उन्होंने तत्काल पुलिस अधीक्षक आदित्य प्रताप सिंह से चर्चा कर पूरे प्रशासनिक और पुलिस तंत्र को सक्रिय कर दिया। बाद में इस बात की जानकारी मिली कि आरोपियों को सेठ मोहन लाल हरगोविंद दास अस्पताल में भर्ती करवाया गया है जबकि उन्हें 108 के एम्बुलेंस चालक को मेडिकल लेकर जाना था।
कलेक्टर के निर्देश पर प्रशासनिक अमला सक्रिय हुआ
इस कांड के बाद कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा आयोजित एक बैठक में दिए गए निर्देश पर पूरा प्रशासनिक अमला हरकत में आ गया है और अब इस बात की चर्चा सर्वप्रथम हो रही है कि आखिर यह एंबुलेंस माफिया किसने खड़ा किया, क्यों मानव जीवन से जुड़ी ऐसी सेवा को कमीशन खोरी के जरिए तस्करी और सौदेबाजी का दर्जा प्राप्त हो गया है। कलेक्टर की इस बैठक में अपर कलेक्टर मिश्रा सिंह सभी एसडीएम स्वास्थ्य विभाग से सीएमएचओ डॉक्टर संजय मिश्रा स्टेट को-ऑर्डिनेटर 108 एंबुलेंस सेवा नितिन वाजपेई सहित अन्य संबंधित अधिकारी उपस्थित थे।
एंबुलेंस माफिया को खड़ा करने के पीछे जबलपुर के कुछ ऐसे अस्पताल जो अच्छी गुणवत्ता के साथ मरीजों का इलाज करने में सक्षम नहीं थे उन्होंने इस एंबुलेंस माफिया को तैयार किया ऐसे अस्पतालों के प्रबंधन ने व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के कारण इस घिनौने खेल की शुरुआत की।
आगे चलकर इसका असर यह हुआ कि कुछ बड़े नामधारी अस्पतालों को भी अपनी दुकान चलाने के लिए यही तरीका अपनाना पड़ा और फिर देखते ही देखते उन्होंने ऐसे पूरे एंबुलेंस माफिया का संचालन शुरू कर दिया।
पूरे संभाग में फैला है एंबुलेंस माफिया का नेटवर्क
संभाग का सबसे महत्वपूर्ण जिला जबलपुर वर्तमान में चिकित्सा के मामले में भी संभाग के अन्य जिलों से बेहतर स्थिति में है। संभाग के अन्य छोटे जिलों से जो भी मरीज गंभीर बीमारियों का इलाज कराने या फिर दुर्घटना में घायल होने या फिर किसी अन्य स्थिति का शिकार होने के बाद बेहतर इलाज के लिए ज्यादातर जबलपुर ही आते हैं। इन मरीजों को अपने अस्पताल रूपी दुकान में लाने तक के लिए अस्पताल प्रबंधन की ओर से एंबुलेंस वालों को मोटा कमीशन दिया जाता है।
5000 से 40 हजार तक का कमीशन
सूत्रों ने बताया कि कुछ अस्पताल प्रबंधन तो ऐसे व्यावसायिक तरीके से एंबुलेंस माफिया का हिस्सा बने हुए हैं जैसे वह किसी बड़े कारपोरेट सेक्टर में काम कर रहे हों। मरीज की स्थिति के अनुरूप 5000 से लेकर 40000 तक का कमीशन दिए जाने के प्रावधान बनाकर अस्पतालोंं द्वारा रखे गए हैं।
आयुष्मान योजना का होना चाहिए हर अस्पताल का ऑडिट
सरकार द्वारा गरीब और जरूरतमंद लोगों के अच्छे इलाज के उद्देश्य से शुरू की गई आयुष्मान योजना भी कुछ निजी अस्पतालों के लिए लूट का बड़ा महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। इस योजना के अंतर्गत लाभ दिलवाने के नाम पर दूर दराज से आने वाले मरीजों को भी एंबुलेंस वाले बड़े अस्पतालों में लाकर जानबूझकर छोड़ देते हैं। मामूली सी बीमारियों को भी गंभीर बीमारियों का डर दिखाकर तीन से चार दिन केवल जांच में निकाल दिए जाते हैं और जो जरूरी नहीं है वह भी बेसिक ट्रीटमेंट दवाइयों के साथ देकर बिल बना लिया जाता है। आयुष्मान योजना का ईमानदारी से ऑडिट होना आवश्यक माना जा रहा है ताकि करोड़ों रुपए का फर्जीवाड़ा रुक और सही जरूरतमंद लोगों को इलाज के रूप में इसका लाभ मिले।