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अजीब फरमान, पी सकते हो, रख भी सकते हो, लेकिन खरीद नहीं सकते

त्वरित टिप्पणी-चैतन्य भट्ट, संदर्भ:- शराबबंदी

जबलपुर (जयलोक)। बेहद चुटीली और अर्थपूर्ण कहावतों के लिए मशहूर हमारे बुंदेलखंड की एक कहावत है : मन मन भावें मूड़ हिलावें। कोई बात पसंद तो है मगर किसी दबाव में उसके लिए न कहा जा रहा है। धार्मिक स्थलों पर तथाकथित पूर्ण शराबबंदी के विषय पर एक के बाद एक उड़ी खबरों के बाद अखबारों में आज छपी आधिकारिक खबर इसकी ताज़ा मिसाल है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने घोषणा की है कि प्रदेश में धर्मस्थलों के लिए प्रख्यात सत्रह शहरों में शराब बिक्री पूर्णत: प्रतिबंधित रहेगी। मगर शराब पीने और रखने पर कोई पाबंदी नहीं होगी। अब इन शहरों का आदमी शराब रख सकेगा और पी भी सकेगा मगर खरीद नहीं सकेगा। गोया बेचना तो प्रतिबंधित रहेगा मगर खरीदना नहीं। बिना खरीदे पीने और रखने के इस विशेषाधिकार का प्रयोग किस तरह किया जा सकेगा, शोध का विषय बन गया है। प्रश्न यह भी उठ रहे हैं कि क्या इन सत्रह को छोडक़र शेष शहर धर्मस्थल विहीन हैं? उस देश में जहां सिंदूर लगा एक मील का पत्थर भी धार्मिक आस्था का केंद्र बन जाता है, यह सोचना फिजूल है।
बिना खरीदे पीने और रखने का एक स्वाभाविक उपाय तो यह है कि आदमी आस पड़ोस के ऐसे शहरों की यात्रा करेगा जहां बिक्री प्रतिबंधित नहीं है। वहां जाकर छक कर पिएगा भी और भविष्य के लिए माल दबाकर वापस अपने शहर वापस आ जाएगा। क्या सरकार इस तरीके से प्रदेश में अंतरनगरीय पर्यटन को बढ़ावा देना चाहती है? इस पर आधिकारिक घोषणा आना बाकी है। बहरहाल अगर यही प्रयोजन है तो सरकार को शराब के ऐसे अंतरनगरीय आवागमन के समय बेचारे मयकशों को आबकारी विभाग और उससे भी बढक़र शराब माफिया के गुंडों से बचाने के लिए नए मार्गदर्शक सिद्धांत जारी करने की जरूरत होगी। देखिए कब जारी होते हैं।
शराबबंदी प्रदेश की राजनीति का मनपसंद विषय है। सत्ता और विरोध पक्ष में तो बहसें चलती ही रहती हैं, सत्ता पक्ष के अंदर भी कम नौटंकियां नहीं होतीं। पूर्ण शराबबंदी की प्रखर समर्थक एक पूर्व मुख्यमंत्री जब तब ताल ठोंकती नजऱ आ जाती हैं। शराब दूकानों पर गोबर फेंककर पथराव की तर्ज पर गुबराव के माध्यम से उन्होंने साबित भी किया है कि उनका विरोध सिर्फ  मौखिक नहीं है। उनके दिलजले विरोधी इसे उनके राजनीति में खबरों में बने रहने की रणनीति का हिस्सा कहते हैं। प्रश्न उठाते हैं कि उन्होंने अपने स्वयं के मुख्यमंत्री काल में इस पर कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की। मूल समस्या यह है कि जीएसटी कर प्रणाली के अस्तित्व में आने के बाद प्रदेश सरकारें पूर्णत: केंद्रीय कोटे से मिलने वाले राजस्व हिस्से पर निभज़्र होकर रह गई हैं। ग्यारंटीड सक्सेस वाली मुफ्त रेवड़ी योजनाओं के लिए धन की दरकार निरंतर बढ़ती जा रही है। अतिरिक्त राजस्व के लिए इन सरकारों के पास पेट्रोलियम, आबकारी और भू राजस्व जैसे गिने चुने विकल्प ही मौजूद हैं। पेट्रोलियम पदार्थों पर कराधान की अपनी सीमाएं हैं। भू राजस्व में वृद्धि की राह में सरकार का अपना भू राजस्व अमला बड़ी रुकावट है। ले देकर शराब बिक्री ही इकलौता महत्वपूर्ण माध्यम शेष रह जाता है। शराब का धंधा सरकारी राजस्व का एक बड़ा जरिया है। सरकार के अपने आंकड़े बताते हैं कि शराब बिक्री से इस वर्ष लगभग 14 हजार करोड़ का राजस्व अपेक्षित है जो पिछले वर्ष से 12 प्रतिशत से अधिक है। इस राजस्व को और बढ़ाने के लिए एकीकृत शराब दूकान, लाटरी के माध्यम से आबंटन, न्यूनतम कीमत में वृद्धि जैसी नई नई नीतियां बनाई जाती हैं। शराब की बिक्री से प्राप्त राजस्व में कोई भी वृद्धि खपत में वृद्धि के बिना संभव नहीं है। जाहिर है, शराबबंदी की कितनी भी बातें की जाएं,? शराब से मिलने वाले राजस्व पर निर्भरता मजबूरी है। शराब अघोषित राजनीतिक कमाई का भी कितना बड़ा जरिया है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है।
दो नंबरी शराब के धंधे से प्रदेश के राजस्व को नुक्सान पहुंचाकर अरबपति बने आबकारी अधिकारी और इस विभाग से जुड़े नेता किसी परिचय के मोहताज नहीं है। धार्मिक स्थलों पर लागू की जा रही इस तथाकथित शराबबंदी से अवैध शराब के धंधे को एक नई चमक मिलने की संभावना है। शराब माफिया और आबकारी विभाग में भृष्टाचार के नए रास्ते खुलेंगे। अंग्रेजी शराब का आदी संपन्न तबका भले ही अतिरिक्त खर्च के साथ अपना शौक पूरा करने में सफल हो जाए, निम्न तबके के सुराप्रेमी अवैध शराब खरीदने पर मजबूर होंगे। सरकार ने इसे लेकर भी कोई नीति बनाई है या फिर इसके लिए अवैध जहरीली शराब से मौतों के किसी हादसे का इंतजार किया जाएगा?
समझ से परे है कि आखिरकार शराब को लेकर इस दोहरे चाल चरित्र वाले सरकारी रवैए की जरूरत ही क्या है ? इतिहास गवाह है कि ऐसे सारे कदम तात्कालिक तालियां भले ही बटोर लें, दीर्घकालिक रूप से व्यर्थ ही साबित होते हैं। ताजा कदम अव्यावहारिक ही नहीं हास्यास्पद भी है। इससे एक ही बात प्रमाणित होती है, मुख्यमंत्री मोहन यादव बड़े ही विनोदी स्वभाव के व्यक्ति हैं।

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Jai Lok
Author: Jai Lok

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