बरगी तहसील के मानेगांव, मंगेली, बढैय़ाखेड़ा, गुटिया में अवैध खनन माफिया हावी, प्रशासन का दखल ही नहीं, कोई झांकने, दबिश देने तक नहीं जाता
जबलपुर (जय लोक) ।जिले के दो विभाग आबकारी और माइनिंग (खनन) प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन के अधीन नहीं बल्कि माफिया के हाथों संचालित हो रहे हैं। अभी हाल ही में एक खबर प्रकाशित हुई कि 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के दिन जिला कलेक्टर के आदेश के बावजूद भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा शहर के भी विभिन्न क्षेत्रों में शराब की कालाबाजारी चरम पर थी। यह हाल लगभग पूरे शहर का था। अवैध उत्खनन के मामले में सर्वाधिक बदनाम बरगी तहसील के अंतर्गत आने वाले मानेगांव, बढैय़ाखेड़ा मंगेली, गुठिया जैसे गांव प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन के अधीन नहीं हैं और ना ही प्रशासनिक नियम कानून इनके ऊपर लागू होते हैं। यहां अवैध उत्खनन माफिया की मर्जी से होता है।
दिनदहाड़े भी और सूरज ढलते ही मशीनें अवैध खुदाई का अपना काम शुरू करती हैं और दर्जनों की संख्या में डंपर और हाईवे अवैध रूप से खनन का माल चोरी कर सप्लाई का काम करते हैं।
यह बात सभी को पता है और यह बात भी संभव नहीं कि प्रशासन के जिम्मेदार लोगों को ना पता हो, लेकिन कार्यवाही सिर्फ खानापूर्ति वाली होती है। रोज 100 से ज्यादा डंपर अवैध उत्खनन का माल लेकर गुजर जाते हैं और दो चार गाडिय़ों को पकडक़र कार्यवाही कर दी जाती है तो उससे क्या संदेश जाता है यह भी सर्वविदित है।
अवैध वाहन किनके हैं सबको है पता
अवैध उत्खनन करने की बात करें तो जबलपुर के हर ग्रामीण क्षेत्र में यहां तक कि पाटन, पनागर, बरेला भी इससे अछूते नहीं है। मानेगांव का क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित है। यहाँ वन विभाग और शासकीय भूमि मानो लावारिस पड़ी है। इसकी अवैध खुदाई का जिम्मा अवैध उत्खनन करने वाला माफिया संभाल रहा है। किस की जेसीबी, किस की टू ट्वेंटी, किस की पोकलेन मशीन, किस के डम्पर, किस का हाइवा चल रहा है यह पता सबको है, बस जिनको कार्यवाही करनी है वो गाँधी जी के तीन बंदर बने बैठे है। ना देखते है, ना सुनते है, ना ही कुछ बोलते है।
हजारों लीटर अवैध शराब दो नम्बर के रास्तों से खपाई जा रही
इसी प्रकार से आबकारी विभाग का भी रोल है। जानकारों का अनुमान है कि रोजाना हजारों लीटर कच्ची शराब, देशी, अंग्रेजी शराब दो नंबर के रास्तों से जबलपुर में खपाई जा रही है। शराब पकडऩे की इक्का दुक्का कार्रवाई होती है जिसमें कुछ मात्रा में विभिन्न प्रकार की शराबों को पकड़ कर बड़ी-बड़ी फोटो खिंचवाकर श्रेय लूटने का पूरा कार्य किया जाता है। आबकारी विभाग के अमले को यह श्रेय भी वही लोग दिलवाते हैं जो 10 रुपये का माल पकड़वाकर 500 रुपये का माल अवैध रूप से खपा रहे हैं। अवैध शराब का कारोबार करने वालों पर किसी न किसी अपने क्षेत्र के प्रभावी राजनीतिक हस्तक्षेप रखने वाले का हाथ होने के कारण कानून के हाथ अपने आस्तीन से बाहर नहीं आ पा रहे हैं।आबकारी विभाग का तो आलम यह है कि शहर की अधिकांश दुकानों में एमआरपी से ऊपर शराब बिक रही है लेकिन उसको रोक पाने का सामर्थ आबकारी विभाग में नजर नहीं आ रहा है। एमआरपी के ऊपर की राशि का आंकलन प्रतिदिन लाखों रूपयों में होता है और इसका हिसाब किताब सभी में बराबर से बंटता है। अगर ऐसा नहीं होता है तो फिर महिनों से कैसे एमआरपी से ऊपर शराब बेचने का क्रम जारी है। दर्जनों शिकायतों के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही है।
वरिष्ठ अधिकारी मारे छापा, खुल जायेगा सच
लाइसेंस लेकर खनन करने वाले लोगों को कहना है कि जिले के वरिष्ठ अधिकारी जिस दिन आकस्मिक रूप से मानेगांव, बढ़ैयाखेड़ा, मंगेली , पाटन और अवैध उत्खनन के लिए बदनाम क्षेत्र में जहां शासकीय संपदा लुट रही है वहां छापा मार देंगे तो हकीकत खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी। बशर्ते यह छापे आकस्मिक हों, क्योंकि खनन विभाग के भरोसे यह छापे डाले गए तो वो पूर्व नियोजित होंगे। ऐसे ही आबकारी विभाग की शह पर चल रही शराब तस्करी को पकडऩा है तो जिम्मेदार अधिकारी अपना ईमानदार व्यक्ति भेज कर शराब दुकानों से खरीदी करवा कर देख लें। एमआरपी से ऊपर बेची जा रही शराब का खेल और विभाग का संरक्षण स्पष्ट रूप से खुद ब खुद उजागर हो जाएगा।