जबलपुर (जय लोक)
नगर निगम जबलपुर में पूर्व के राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद अब भाजपा की मेयर इन काउंसिल का विस्तार होना है। दूसरी ओर विपक्ष के रूप में कांग्रेस पार्षद दल का नेता प्रतिपक्ष का चयन भी होना है। इन दोनों ही फैसलों को बहुत ही आराम से लिए जाने के आसार नजर आ रहे हैं।
महापौर जगत बहादुर सिंह के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस की मेयर इन काउंसिल भंग हो गई थी एवं नेता प्रतिपक्ष के रूप में भाजपा के वरिष्ठ पार्षद कमलेश अग्रवाल का पद भी समाप्त हो गया था। महापौर सत्ता पक्ष के हो गए और कांग्रेस विपक्ष में आ गई। इस घटनाक्रम के बाद लगातार नेता प्रतिपक्ष के लिए कांग्रेस के दो पार्षदों की दावेदारी सामने आ रही है। इन्हीं दो पार्षदों में से एक का नेता प्रतिपक्ष पर चयन होने की बात भी कही जा रही है। लेकिन नेता प्रतिपक्ष चयन का पूरा मामला प्रदेश कांग्रेस कमेटी के निर्णय के आधार पर अटका हुआ है।
दूसरी ओर नगर निगम की सत्ता पक्ष में आ चुकी भाजपा अपने मेयर इन काउंसिल का एक विस्तार लोकसभा चुनाव से पहले कर चुकी है। प्रथम विस्तार में एमआईसी में पांच लोगों को स्थान मिला है। यह सभी पांच पार्षद पहली बार निर्वाचित होकर आए हैं। मेयर इन काउंसिल में 10 पार्षदों को स्थान प्राप्त हो सकता है। पाँच पद मेयर इन काउंसिल के अभी भी रिक्त हैं और इन्हीं के विस्तार के लिए भाजपा के पार्षदों के बीच में जोर आजमाइश हो रही है।
भाजपा संगठन को इस बात का निर्णय लेना है। इस बारे में कैबिनेट मंत्री राकेश सिंह, सांसद आशीष दुबे, एवं सभी क्षेत्रीय विधायकों की राय शुमारी और उनकी पसंद भी बहुत मायने रखती है।
भाजपा के तीन चार बार के पार्षदों को भी वरिष्ठता के आधार पर मेयर इन काउंसिल की सदस्यता देने की बात बार-बार जोर पकड़ रही है। यह इसलिए भी आवश्यक नजर आ रहा है क्योंकि अनुभव विकास का बहुत बड़ा आधार होता है। वहीं कुछ पार्षदों के नाम पर विधायकों की दबी जुबान की आपत्तियाँ भी राजनीतिक क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है। इन बातों को विधानसभा चुनाव के दौरान हुए मनभेद मतभेद और दावेदारी से जोडक़र देखा जा रहा है।
लेकिन भाजपा संगठन नगर विकास के लिए वरिष्ठ पार्षदों को मेयर इन काउंसिल में शामिल करने का निर्णय ले सकता है। वरिष्ठ पार्षदों के मेयर में काउंसिल में शामिल रहने से नगर निगम के अधिकारियों की गतिविधियों एवं आम जनता को मिलने वाली सुविधाओं के बीच में बेहतर समन्वय बनाया जा सकेगा। दूसरा सदन में सत्ता पक्ष के कार्यों को और लगने वाले आरोपी का दमदारी से जवाब दिया जा सकेगा।
मेयर इन काउंसिल के पूरे गठन को लेकर भाजपा के नगर अध्यक्ष प्रभात साहू का कहना है कि अभी इस बारे में कोई जानकारी नहीं प्राप्त हुई है संगठन जो निर्णय लेगा जो जानकारी सामने आएगी तभी आगे कुछ कहा जा सकेगा।
दूसरी ओर कांग्रेस के नगर अध्यक्ष सौरभ शर्मा का कहना है कि नेता प्रतिपक्ष के पद का चयन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अधिकार क्षेत्र का निर्णय है। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के समक्ष यह बात जरूर रखी है कि नगर निगम में कांग्रेस पार्षदों को मजबूती प्रदान करने के लिए नेता प्रतिपक्ष पद पर किसी का चयन जल्द ही हो जाना चाहिए। सौरभ शर्मा ने कहा कि यह बात भी ऊपर तक पहुंचाई गई है कि वर्तमान में कांग्रेस के पार्षदों की मंशा के अनुरूप उनका नेता चुना जाना अधिक उचित होगा। जल्द ही वह भोपाल प्रवास पर रहेंगे और प्रदेश संगठन के जिम्मेदार वरिष्ठ पदाधिकारियों के समक्ष इस विषय पर चर्चा करेंगे।
सूत्रों के अनुसार नेता प्रतिपक्ष के लिए कांग्रेस पार्षद अमरीश मिश्रा एवं पार्षद अयोध्या तिवारी के बीच में से ही कोई एक नाम चुना जाना है। दोनों ही पार्षद लगातार कांग्रेस के अन्य पार्षदों के संपर्क में है और अपने-अपने पक्ष में लॉबिंग कर अपनी स्थिति को मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं।
अमरीश मिश्रा पहले भी पार्षद रह चुके हैं। उन्हें नगर निगम की कार्यप्रणाली का अच्छा अनुभव है। वहीं पार्षद अयोध्या तिवारी प्रखर वक्ता के रूप में अपनी अलग पहचान रखते हैं। किसी भी प्रकरण के बारे में वह गंभीरता से लिखा पड़ी करके तथ्यों को निकालने में अच्छी महारत रखते हैं। दोनों ही कांग्रेस के पार्षद अपने-अपने स्तर पर दावेदारी कर रहे हैं लेकिन यह भी सार्वजनिक रूप से कहते हैं कि प्रदेश कांग्रेस कमेटी नेता प्रतिपक्ष के पद पर जिसका भी नाम का चयन करती है वह पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ उनके साथ मिलकर काम करेंगे और जनता के हितों की बातों को मजबूती से उठाएंगे।
वही मेयर इन काउंसिल के गठन के लिए भाजपा के क्षेत्रीय विधायकों के दरबार में उनके द्वारा बनाए गए पार्षदों की हाजिरी लगाने का क्रम जारी है। मेयर इन काउंसिल के पांच सदस्यों का चयन होना है।
प्रभार में हो सकता है बदलाव
सूत्रों के अनुसार वर्तमान मेयर इन काउंसिल के सदस्यों को जो विभागों के पदभार दिए गए हुए हैं एमआईसी के विस्तार के बाद बदले भी जा सकते है। क्योंकि एमआईसी के प्रथम चरण में किए गए विस्तार की सर्वाधिक उपयोगिता नगर निगम बजट को नियमानुसार पारित कर सदन की ओर अग्रेषित करने की थी। इसलिए बहुत से निर्णय आनन फानन में लिए गए थे। अब तीन साल नगर निगम की सत्ता को मजबूती से चलाने के लिये इसका मजबूत सदस्यों के साथ गठित होना जरूरी माना जा रहा है।