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क्योंकि हमारे लगाए पौधे पेड़ नहीं बन पाते…संदर्भ : मौजूदा पेड़ों को बचाने की जरूरत

टेलीकॉम फैक्ट्री ही क्यों किसी भी विकास के लिए दशकों पुराने पेड़ काटना पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा ही है?

@परितोष वर्मा,संपादक
जबलपुर (जयलोक)। किसी भी विकास कार्य के लिए, चाहे वह सडक़ का निर्माण हो, भवन का निर्माण या किसी भी प्रकार का कितना भी महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट या परियोजना ही क्यों ना हो अब हमें जबलपुर, प्रदेश और देश के किसी भी क्षेत्र से पेड़ों को नहीं काटना चाहिए।  यह संकल्प इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके बदले में किए जाने वाले हमारे प्रयास केवल खोखले साबित होते हैं। हमने दशकों में कई बार यह अनुभव किया है कि सरकारी आयोजनों में कागजों पर लगने वाले करोड़ों पौधे आगे चलकर सैकड़ों की संख्या में भी वृक्ष नहीं बन पाते हैं। फिर सरकारी कैलेंडर में हरियाली महोत्सव का समय आता है और दोबारा करोड़ों रुपए की होली खेली जाती है लेकिन फिर भी हमारे पौधे पेड़ नहीं बन पाते, यह बड़ी विडंबना है।
जबलपुर से भोपाल रोड पर, ग्राम तेवर, भेड़घाट से लेकर आगे कई किलोमीटर तक की सडक़ में पहले कई हिस्से में धूप नहीं आती है उसका कारण था कि यहाँ लगाए गए सैकड़ों साल पुराने पेड़ कृपा के रूप में अपनी छाँव और फल दोनों ही हम लोगों को प्रदान कर रहे थे। यह मुगल काल और गौंड काल के समय पर भी नजर आता था कि प्रकृति और पर्यावरण के प्रति उस वक्त के शासक और उनका शासन बहुत गंभीर था। प्रकृति के प्रति यह गम्भीरता दिखावटी नहीं थी तभी तो उस वक्त के लगाए गए पौधे पेड़ बने और सैकड़ों हजारों साल तक हमको छाँव और फल के साथ साथ प्राण वायु भी देते रहे। लेकिन हमने उनके साथ क्या किया। फोर लेन सडक़ बनाने के लिए सैकड़ों और हजारों साल पुरानी इन जीवन देने वाली जीवित इकाइयों का कत्ले आम कर दिया। जबकि यह फोर लेन सडक़ उन जीवन देने वाले सैकड़ों हजारों साल पुराने पेड़ों को बचाकर भी निकाली जा सकती थी। यह पेड़ एक कतार में लगे थे। इन्हें काटने के बजाये आजु बाजू खेत या निजी भूमि अधिग्रहित करके भी सडक़ निकाली जा सकती थी। शासन ने इन पेड़ों के बदले में 10 गुना ज्यादा पेड़ लगाने का निर्देश कंपनीयों को दिया था। आज वहां जा कर देख लें जो पेड़ लगे थे उनका 5 प्रतिशत भी नजर नहीं आता है। यह धोखा हमने सिर्फ  प्रकृति को नहीं बल्कि अपने आप को भी दिया है।
आज भी हम उसी स्थिति में प्रकृति को सिर्फ  धोखा दे रहे है। पेड़ काटने के लिए हमारे तंत्र के पास बड़ी बड़ी मशीन और बड़े बड़े औजार हैं लेकिन एक पौधे को पेड़ बनाने की जिम्मेदारी लेने और देने के लिए कोई तैयार नहीं है। निर्माण के नाम पर अब किसी भी प्रकार का पेड़, कही का पेड़ नहीं काटना चाहिए।
टेलीकॉम फैक्ट्री ही क्यों किसी भी विकास के लिए दशकों पुराने पेड़ काटना पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा ही है? इसलिए शासन प्रशासन सभी को अपनी हर योजना परियोजना में पेड़ को काटे बिना ही कार्य की परिकल्पना करनी होगी। हम आज अगर एक पौधा लगा भी लें तो उससे बड़े होने में और हमारा रक्षक बनाने में बीसों साल लग जायेंगे लेकिन जो पेड़ हमारे पूर्वज रक्षक के रूप में हमारे साथ मौजूद हैं उनकी किसी भी प्रकार के निर्माण के नाम पर हत्या अब बंद हो जानी चाहिए। ये पेड़ हमारी पैतृक धरोहर है इनको बचाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए और हमें यह मान लेना चाहिए कि हममें वो इच्छा शक्ति नहीं है जिसके कारण हमारे लगाए पौधे पेड़ नहीं बन पाते…।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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