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जब ‘इंसानियत’ ही गिर रही हो तो ‘छज्जा’ गिरने पर बवाल क्यूं ?

डुमना एयरपोर्ट का छज्जा क्या गिर गया ऐसी चिल्लपों मच गई मानो धरती फट गई हो और उसमें हजारों लोग समा गए हों, अरे भाई छज्जा ही तो गिरा था कोई पूरा एयरपोर्ट तो धराशाई हो नहीं गया, और फिर ये सरकारी काम है इसमें थोड़ी बहुत ऊंच नीच तो चलती ही है क्योंकि जिस कंपनी ने इसका ठेका लिया था उसको और भी लोगों को भी खुश करना जरूरी था वरना फिर बिल कैसे पास होते, ठेका होता है निर्माण कार्य का लेकिन ठेका लेना पड़ता है सबको खुश करने का। दूसरी बात जब दिल्ली और राजकोट के एयरपोर्ट में छज्जे गिर रहे हैं तो ये तो जबलपुर है यहां अगर छज्जा गिर भी गया तो ऐसा कौन सा पहाड़ टूट गया, और अपना तो मानना ही है कि इसमें निर्माण करने वाली कंपनी का कोई दोष नहीं है दोषी है तो ‘ऊपर वाला’। अरे भाई इतना पानी बरसाने की जरूरत क्या थी कि वो गरीब छज्जा उस पानी को सहन ना  कर पाए, धीरे-धीरे पानी बरसाते तो पानी निकलता रहता एकदम से धुआंधार बारिश कर दोगे तो वह बेचारा छज्जा कहां तक चलेगा? लेकिन ये छज्जा टूटने से एक फायदा जरूर हो गया एयरपोर्ट वालों को। अभी तक लोग बाग अपने आप को वीआईपी समझते हुए अपनी कारें सीधे पोर्च के नीचे ले जाते थे लेकिन जब से छज्जा गिरा है तब से हर कार वाला अपनी कार दो किलोमीटर दूर खड़ी करके पैदल पैदल एयरपोर्ट पहुंच रहा है क्योंकि उसको डर है कि इधर पोर्च के नीचे कार खड़ी करी और ऊपर से छज्जा धड़ाम हुआ। वहां जो वालंटियर खड़े रहते हैं उनका काम बहुत आसान हो गया, वरना बेचारे कार वालों को इधर से उधर करने में परेशान हो जाते थे अपना तो मानना है कि वहां अब ‘ई-रिक्शा’ और ‘साइकिल रिक्शा’ शुरू हो जाने चाहिए जो कार से लेकर एयरपोर्ट तक यात्रियों को पहुंचा दें और वो भी छज्जे से कम से कम सौ मीटर दूर ही उनको छोड़ दें। सुना है छज्जे के गिरने की जांच करने के लिए मुंबई से भी टीम आई है, अपने यहां के नेता भी वहां पहुंच गए थे ये देखने के लिए कि आखिर छज्जा गिरा तो गिरा कैसे? अरे भाई एयरपोर्ट का छज्जा गिर भी गया तो उसमें इतनी अचरज करने की आवश्यकता क्या है जो चीज बनी है वह कभी ना कभी तो गिरेगी और वही हुआ वो छज्जा बना था तो गिर गया। जो निरीक्षण करने आए थे वे कह रहे हैं कि कंपनी पर कार्यवाही करेंगे और भविष्य में ऐसा कुछ ना हो इसके लिए भी कुछ ना कुछ करेंगे लेकिन हुजूर भविष्य किसने देखा है अगर इस छज्जे का भविष्य पहले से ही जान लेते तो फिर ये नौबत ही क्यों ना होती  अब जो गिर गया सो गिर गया अपना तो मानना है ‘बीती ताहि बिचार दे आगे की सुधि ले’ और फिर सबसे इंपॉर्टेंट तो ये है कि जब पूरे समाज में इंसानियत ही गिर रही हो तो फिर छज्जा अगर गिर भी गया तो कौन सा गुनाह हो गया।
अब चुकाओ इनकम टैक्स
अपने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पता नहीं क्या सूझा, लो घोषणा कर दी कि अब से सरकार के हर मंत्री का इनकम टैक्स जो अभी तक सरकार भरती आ रही थी वो उन्हें अपनी जेब से भरना होगा। मंत्री लोग भारी चिंता में है कि  अब उन्हें अपनी जेब से पैसा निकालना पड़ेगा वरना अभी तक तो सरकारी पैसे पर ऐश चल रहे थे। उधर जनता भारी खुश है डॉक्टर मोहन यादव के निर्णय से क्योंकि जो बेचारा चपरासी बीस पच्चीस हजार कमाने वाला भी इनकम टैक्स दे रहा है तो लाखों कमाने वाले मंत्री गण इनकम टैक्स क्यों नहीं दे रहे थे। लेकिन मंत्रियों को ये निर्णय रास नहीं आ रहा लेकिन चूंकि निर्णय मुख्यमंत्री का है तो आप  लाख ना नुकुर करते रहो पैसा तो चुकाना पड़ेगा। अभी तक कितना मजा था न इनकम टैक्स के वकील की जरूरत थी अपना रिटर्न भरने की, सब कुछ सरकार अपने आप कर देती थी ना इस बात की चिंता थी कि सरकारी इनकम टैक्स के स्लैब को बढ़ा रही है कि नहीं बढ़ा रही है। दस परसेंट लगे, बीस परसेंट लगे, या तीस परसेंट लगे अपने को क्या, सरकारी खजाने से तो जाने वाला है लेकिन अब मंत्रियों को भी सोचना पड़ेगा कि जो छूट है उसको कैसे एडजस्ट करें। मकान के लिए लोन लें, गाड़ी के लिए लोन लें, बीमा करवा लें, एनएससी ले लें, एस आई पी शुरू करवा दें यानी किस तरह से इनकम टैक्स में बचत हो सकती है यह सोचना पड़ेगा आगे से। मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव को इस निर्णय के लिए धन्यवाद कि उन्होंने ये काम तो बेहतरीन किया और फिर जो जानकारी सामने आई है उसमें एक मंत्री को छोडक़र सब करोड़पति हैं तो जब सब करोड़पति है तो अपनी जेब से इनकम टैक्स देने में क्या दिक्कत है भाई लोग आप भी आम जनता के बीच से ही आते हो तो जब जनता टैक्स चुका रही है तो आप भी चुकाएं।
पुलिस की शिकायत
एक आंकड़ा सामने आया है जिसमें बताया गया है कि सीएम हेल्पलाइन में सबसे ज्यादा शिकायतें पुलिस डिपार्टमेंट की हैं आंकड़ा कहता है कि हर दूसरे मिनट पर एक शिकायत पुलिस से संबंधित होती है जिसमें पुलिस थाने में अभद्रता, लेनदेन करके आरोपियों को बचाना, थाने में मारपीट जैसी शिकायतें हैं शिकायतों का क्या है जिसके मन की नहीं हुई उसने शिकायत कर दी और फिर पुलिस तो आजकल ‘गरीब की लुगाई सब की भौजाई’ बन गई है पुलिस पर आरोप लगाना तो सबसे आसान काम है। चलो मान लिया कि पुलिस गड़बड़ी करती है लेकिन क्या दूसरे सरकारी डिपार्टमेंट ‘दूध के धुले’ हैं आप किसी भी डिपाटज़्मेंट में चले जाओ वहां कौन सा लेनदेन नहीं हो रहा है आजकल लेनदेन करना तो जीवन का अंग बन गया है ‘भ्रष्टाचार को शिष्टाचार’ तो हम लोगों ने कब से मान लिया है। दूसरी बात अगर पुलिस किसी अपराधी को पकड़ेगी तो दो चार लपोड़े तो मारना पड़ेंगे ना, ऐसा तो है नहीं कि उसको सोफे पर बैठाकर चाय पिला कर पोहा खिलाकर फिर उससे पूछे कि ‘भाई साहब आपने चोरी की है क्या? आपने किसी को चाकू मारा है क्या?’ जाहिर है कि बिना लात खाए अपराधी कुछ बताने वाला तो है नहीं, आप इसकी भी शिकायत करेंगे कि पुलिस ने मारपीट कर दी, मारपीट ना करे तो क्या करे वैसे ही पुलिस पर तमाम तरह के आरोप हैं कि वो अपराधों को नहीं रोक पा रही है भाईसाहब अपराधों को रोकने के लिए हाथ पैर चलाने पड़ते हैं अपराधियों पर जीन कसने के लिए पिटाई भी करना पड़ती है अब यह भी ना करें पुलिस तो करें तो करें क्या? ये आप ही बतला दें तो ज्यादा मुफीद होगा।

सुपर हिट ऑफ़  द वीक
श्रीमानजी क्रिकेट मैच देख रहे थे उसी वक्त श्रीमती जी नई ड्रेस पहन कर आई और बोली
‘देखिए मैं कैसी लग रही हूं’
श्रीमान जी ने ताली बजाई और बोले ‘छक्का’
उसके बाद से श्रीमान जी अस्पताल में पड़े हैं।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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