भोपाल (जयलोक)। माना जाता है कि प्रदेश का भाजपा संगठन और नेता सबसे अनुशासित होते हैं। लेकिन संगठन चुनाव में पार्टी के दिग्गज नेताओं ने ऐसी गुत्थी फंसाई है कि जिलाध्यक्षों का चुनाव अधर में अटक गया है। दरअसल, भाजपा के दिग्गज नेता पार्टी गाइड लाइन को दरकिनार कर अपनी पसंद के नेता को जिलाध्यक्ष बनाना चाहते हैं। ऐसे में जिलाध्यक्षों की सूची फाइनल नहीं हो पा रही है। वहीं जिलाध्यक्षों के कारण प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है। खासबात यह है कि पार्टी वीथ डिफरेंस में पठ्ठावाद हावी होता नजर आ रहा है। दिल्ली से लेकर भोपाल तक अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है। यह हालात कभी कांग्रेस में हुआ करते थे, जो अब भाजपा में दिखाई दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि यह स्थिति कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं के साइड इफेक्ट है। गौरतलब है कि 5 जनवरी तक जिलाध्यक्षों का चुनाव संपन्न हो जाना था। लेकिन जिला भाजपा अध्यक्षों की घोषणा को लेकर टकटकी लगाए भाजपा कार्यकर्ताओं का इंतजार लंबा होता जा रहा है। पार्टी में अपनों को जिलाध्यक्ष बनाने की लड़ाई इतनी तेज हो गई कि कई दौर की बैठकें होने के बाद भी इन पर निर्णय नहीं हो पा रहा है। भोपाल से लेकर दिल्ली तक जिला अध्यक्षों के चयन को लेकर कवायद जारी है। इस बीच पिछले कई दिनों से चल रही इस कवायद में भाजपा अपने मूल स्वरूप से अलग दिखाई दी। प्रदेश में संभवत: पहली बार हुआ कि पिछले पांच दिनों से जिला अध्यक्षों के चयन को लेकर चल रही कवायद पर अंतिम निर्णय की स्थिति नहीं बन सकी। जबकि पहले भाजपा में ऐसा नहीं होता था, भाजपा में रायशुमारी के बाद यह तय हो जाता था कि किस जिले का अध्यक्ष कौन बनेगा। नेताओं के बीच चल रही होड़ जानकारी के अनुसार पार्टी के दिग्गज नेता जिला संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहते हैं। बड़े नेता अपने समर्थक को जिला अध्यक्ष बनवाने के लिए जोर लगा रहे हैं। अपने ज्यादा समर्थकों को जिलों की कमान दिलाने के लिए नेताओं के बीच होड़ चल रही है। स्थिति यह है कि क्षेत्र के विधायकों- सांसदों में सामंजस्य नहीं हो रहा है। कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं की वर्किंग और पसंद भाजपा संगठन से मेल नहीं खा रही है। निवर्तमान जिला अध्यक्ष अपने स्थान पर अपने पे के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। सूत्रों की मानी जाए तो केंद्रीय संगठन का बहुत ज्यादा हस्तक्षेप जिला अध्यक्ष के चयन को लेकर नहीं हैं। चुनावी प्रक्रिया के बीच शिवप्रकाश और सरोज पाण्डेय को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इन्होंने दो जनवरी को बैठक कर जिला अध्यक्ष के चयन को लेकर केंद्रीय संगठन की ओर से औपचारिकता पूरी कर दी, लेकिन प्रदेश भाजपा के नेता ऐसे सक्रिय हुए कि जो घोषणा पांच जनवरी तक होना थी, वह 9 जनवरी की दोपहर तक नहीं हो सकी। केंद्रीय संगठन भी इस बार मप्र भाजपा के नेताओं के बीच जो चल रहा है उसे वॉच कर रहा है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए गोलबंदी भाजपा सूत्रों का कहना है कि जिलाध्यक्षों के नामों को लेकर मची खींचतान की मूल वजह है प्रदेश अध्यक्ष के लिए गोलबंदी। इससे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की रेस दिलचस्प होने जा रही है। क्योंकि जिला अध्यक्षों के लिए पहले से खींचतान मची है। ऐसे ही प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए समीकरण बैठाए जा रहे हैं। कई कद्दावर नेताओं के नाम रेस में हैं। इस पद का इतिहास बताता है कि 1980 के बाद से सात बार मालवा क्षेत्र के नेता अध्यक्ष बने। इनमें सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी, विक्रम वर्मा जैसे नेता शामिल हैं। चार बार ग्वालियर-चंबल के नेताओं को मौका मिला। नरेंद्र सिंह तोमर दो बार प्रदेश अध्यक्ष रहे। ऐसे ही महाकौशल से दो और मध्य क्षेत्र से एक बार शिवराज सिंह प्रदेश अध्यक्ष रहे। हालांकि बुंदेलखंड और विंध्य के नेताओं की किस्मत साथ नहीं दे रही है।