भोपाल (जयलोक)। मप्र में इन दिनों भाजपा संगठन चुनाव में व्यस्त है। पार्टी ने संगठन चुनाव के लिए गाइडलाइन बनाई है। लेकिन मंडल अध्यक्षों के चुनाव के बाद अब जिलाध्यक्षों के चुनाव में भी नेता समन्वय नहीं बना पा रहे हैं। आलम यह है कि अपने गृह जिले में अपनी पसंद का जिलाध्यक्ष बनवाने के लिए सांसद, मंत्री, विधायकों के साथ ही अन्य नेताओं में घमासान देखा जा रहा है। भाजपा के संगठनात्मक रूप से मप्र में 60 जिले हैं। इस तरह प्रदेश में 60 जिलाध्यक्ष बनाना है। पार्टी द्वारा जिला अध्यक्षों के चुनाव के लिए गाइडलाइन बनाई गई है। पार्टी की कोशिश है कि जिलाध्यक्ष की नियुक्तियों में सारे समीकरणों को साधने का प्रयास किया जाए। लेकिन जिलों में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए जिलों के बड़े नेताओं ने अपने खेमों से नाम छांटना शुरु कर दिए हैं। इससे जिले के वरिष्ठ नेताओं में खुलकर घमासान शुरू हो गया है।
कई मंत्रियों के गृह जिलों में घमासान- प्रदेश में संगठन चुनाव के तहत भाजपा जिलाध्यक्ष के निर्वाचन में समन्वय बनाना बेहद मुश्किल हो रहा है। अब तक जहां-जहां रायशुमारी हुई, वहां बड़े नेताओं, केंद्रीय और राज्य के मंत्रियों की पसंद व दबाव में आम सहमति नहीं बन पा रही है। भोपाल में मंत्री विश्वास सारंग, कृष्णा गौर और सांसद आलोक शर्मा अपने-अपने समर्थकों को जिलाध्यक्ष बनवाना चाहते हैं। इधर, सागर में इस मुद्दे पर मंत्री गोविंद सिंह राजपूत एक तरफ हैं तो पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह दूसरी तरफ हैं। नरसिंहपुर में भी मंत्री प्रहलाद पटेल और उदय प्रताप सिंह जिलाध्यक्ष के चयन पर आमने-सामने हैं। ग्वालियर ग्रामीण और नगर के अलावा गुना- शिवपुरी और अशोकनगर में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी पसंद का जिलाध्यक्ष चाहते हैं। इस बीच, पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिव प्रकाश ने साफ तौर पर ऐसे जिलाध्यक्षों को नहीं दोहराने के निर्देश दिए हैं, जिनका कार्यकाल चार-पांच साल का हो गया है। ऐसे कुछ जिलाध्यक्षों को दोबारा पद देने के लिए उनके राजनीतिक आका पार्टी पर दबाव बना रहे हैं। जिलाध्यक्ष के चुनाव में कई जिले ऐसे हैं, जहां नेताओं का टकराव दिक्कत खड़ी कर रहा है। टीकमगढ़ में एक तरफ केंद्रीय मंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार हैं, तो दूसरी ओर बाकी सभी नेता। डॉ. वीरेंद्र कुमार अपने संसदीय क्षेत्र के सभी जिलों में अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं तो पूर्व विधायक राकेश गिरी भी जिलाध्यक्ष बनने की दौड़ में हैं। मौजूदा अध्यक्ष अमित नुना भी वापसी के लिए लगे हुए हैं। बालाघाट में पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन बेटी मौसम को अध्यक्ष बनवाना चाहते हैं ,तो पूर्व मंत्री रामकिशोर कावरे खुद अध्यक्ष बनना चाहते हैं।
कांग्रेस से आए नेताओं पर रार- जिलाध्यक्षों की नियुक्ति को लेकर हर बड़ा नेता इसी कोशिश में लगा हुआ है कि उसकी पसंद का जिलाध्यक्ष हो। वहीं कुछ जिलों में कांग्रेस से आए नेताओं के नाम पर रार हो रही है। सिवनी जिले में विधायक मुनमुन राय कांग्रेस से आए हुए हैं, उनका मूल भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय नहीं बन पा रहा है। दूसरा गुट आलोक दुबे के साथ है। पूर्व विधायक नरेश दिवाकर, पूर्व सांसद नीता पटेरिया को इनका समर्थन है। जबलपुर में अजय विश्नोई, प्रभात साहू और मंत्री राकेश सिंह के बीच पटरी नहीं बैठ रही। छिंदवाड़ा में भी यही स्थिति है। सांसद बंटी साहू टीकाराम चंद्रवंशी या किसी महिला को जिलाध्यक्ष बनवाना चाहते हैं। दूसरा गुट पूर्व मंत्री चौधरी चंद्रभान सिंह का है, जो शंटी बेदी को अध्यक्ष बनवाना चाहता है। यही स्थिति विंध्य क्षेत्र में है। सतना में सांसद गणेश सिंह समर्थक सतीश कुमार शर्मा जिलाध्यक्ष हैं। संघ में प्रचारक रहे हैं। इनको दो साल ही हुए हैं , लेकिन मंत्री प्रतिभा बागरी और अन्य विधायक बदलाव चाहते हैं। रीवा जिले में डॉ. अजय सिंह पटेल जिलाध्यक्ष हैं, इन्हें प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा का समर्थन है , लेकिन उप मुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल और सांसद जनार्दन मिश्रा दोनों नए अध्यक्ष चाहते हैं। पन्ना जिले में बृजेंद्र मिश्रा को दो साल हुए हैं, रिपीट होने के प्रयास में हैं लेकिन संभावनाएं कम हैं। सीधी में विधायक रीति पाठक और सांसद के बीच सहमति नहीं बन रही है।