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नेताओं में रार, कैसे होंगे समन्वय से चुनाव

मंडल अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया शुरू
भोपाल (जयलोक)। मप्र भाजपा संगठन के चुनाव की प्रक्रिया के तहत रविवार से मंडल अध्यक्षों के चुनाव शुरू हो गए हैं। 15 दिसंबर तक मंडल अध्यक्षों के चुनाव होंगे। पार्टी ने इसके लिए जो फॉर्मूला बनाया है उसके अनुसार आपसी समन्वय से मंडल अध्यक्ष चुना जाना है। लेकिन विडंबना यह है कि अधिकांश जिलों में विधायकों और जिलाध्यक्षों में पटरी ही नहीं बैठ रही है। ऐसे मेें समन्वय से चुनाव कैसे हो पाएंगे। इस कारण एक हजार से अधिक मंडलों के चुनाव पार्टी के लिए खासी चिंता का विषय बने हुए हैं। बेहद छोटे स्तर के इन चुनावों को समन्वय के साथ कराना संगठन के लिए बड़ी चुनौती है। वर्तमान में ऐसे मंडल और जिला अध्यक्ष जिनका अपने क्षेत्र में काम अच्छा है और सांसद, विधायक के साथ भी सही तालमेल बना रहा है, ऐसे मंडल अध्यक्षों को पार्टी फिर मौका दे सकती है। गौरतलब है कि संगठन चुनाव को पारदर्शी और समन्वित तरीके से संपन्न कराने के लिए पार्टी ने विस्तृत रणनीति बनाई है। पार्टी ने चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और केंद्रीय व प्रदेश नेतृत्व के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए एक चार सदस्यीय प्रतिनिधि मंडल भी भेजा है। यह प्रतिनिधि मंडल सभी जिलों का दौरा कर रहा है और चुनाव प्रक्रिया को सुचारु रूप से संचालित करने में सहयोग करेगा। मंडल और जिला अध्यक्षों के चुनाव में विवादों से बचने के लिए वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति में उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा। सर्वसम्मति से चुनाव प्रक्रिया को संपन्न कराया जाएगा। जिला अध्यक्षों के चुनाव भी इसी प्रक्रिया का पालन करेंगे। भाजपा का यह कदम संगठन में पारदर्शिता और समन्वय स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। पार्टी ने मंडल और जिला अध्यक्ष के लिए उम्र का क्राइटेरिया तय किया है जिसमें मंडल अध्यक्ष के लिए 45 वर्ष की उम्र और जिला अध्यक्ष के लिए अधिकतम 60 वर्ष की उम्र तय की है। लेकिन जिन कार्यकर्ताओं का संगठन में काम अच्छा है और उन्होंने पिछले चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के लिए कड़ी मेहनत की है, ऐसे कार्यकर्ताओं को पार्टी नजरअंदाज नहीं करेगी।
विधायक और संगठन नेताओं के बीच पटरी नहीं
प्रदेश में एक तरफ रविवार से मंडल अध्यक्षों के चुनाव शुरू हुए हैं, वहीं दूसरी तरफ पार्टी की चिंता है कि नेताओं के बीच पटरी नहीं बैठ पाने के कारण चुनाव समन्वय के साथ कैसे हो पाएंगे। अधिकांश जिलों में विधायक और संगठन नेताओं के बीच पटरी नहीं बैठ रही है। कई जिलों में जिलाध्यक्ष की विधायकों से नहीं पट रही है। यही वजह है कि क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल संभागों के दौरे कर समन्वय बनाने का काम कर रहे हैं। भाजपा में संगठन चुनाव की प्रक्रिया एक महीने पहले प्रारंभ हो चुकी है। इसके पहले चरण में 64 हजार से अधिक बूथों में से अस्सी फीसदी से अधिक के चुनाव हो चुके हैं। पार्टी भले ही इन्हें समन्वय से कराने का दावा कर रही है पर इन चुनावों को लेकर कई जगह विधायक, जिलाध्यक्ष और जिला चुनाव प्रभारी में पटरी नहीं बैठ पाई है।
पद छोटा, महत्व बड़ा
मंडल चुनाव भले ही छोटे हों पर विधायक के लिए यही चुनाव सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। विधानसभा चुनाव में मंडल अध्यक्षों की सक्रियता सबसे ज्यादा महत्व रखती है। यही वजह है कि विधायक अपने विधानसभा क्षेत्र के अंतरगत आने वाले मंडलों में अपने समर्थक कार्यकर्ताओं को ही मंडल अध्यक्ष बनवाने के लिए पूरी ताकत लगा देते हैं। इनमें कई उनके रिश्तेदार भी शामिल होते हैं, पर इस बार संगठन ने इस पर नकेल कस दी है। विधायक सांसद के रिश्तेदारों को अध्यक्ष बनाने पर रोक लगा दी गई है। हालांकि संगठन यह जानता है कि विधानसभा चुनाव में यदि जीतना है तो विधायक की राय को भी पर्याप्त तरजीह देना पड़ेगी। यही वजह है कि क्षेत्रीय संगठन महामंत्री संभागीय बैठकों में विधायकों को बुलाकर उनकी भी राय ले रहे हैं।
समन्वय बनाने संगठन सक्रिय
गौरतलब है कि भोपाल संभाग के विधायकों और संगठन पदाधिकारियों की बैठक में भोजपुर विधायक सुरेन्द्र पटवा और जिलाध्यक्ष राकेश भारती के बीच संगठन पदाधिकारियों के सामने ही तनातनी हो गई थी। ऐसी स्थिति किसी और जिले में न बने इसके लिए संगठन अभी से ध्यान दे रहा है। तय यह किया गया है कि जिस मंडल के अध्यक्ष का निर्वाचन होगा, उसमें विधायक की राय भी महत्व रखेगी। मंडल स्तर के चुनाव को लेकर पार्टी के आला नेताओं ने पहले ही निर्देश दे दिए हैं कि यह चुनाव आपसी समन्वय और सामंजस्य से कराए जाए।

Jai Lok
Author: Jai Lok

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