भोपाल (जयलोक)। प्रदेश का ग्वालियर-चंबल अंचल ऐसा है, जहां से भाजपा के कई बड़े दिग्गज नेता आते हैं। इन नेताओं का संगठन से लेकर सरकार तक में जलवा न केवल रहता आया है, बल्कि अब भी बना हुआ है। इनमें प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा से लेकर विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर जैसे नाम शामिल हैं। ऐसे में दलबदल कार भाजपा में आकर केन्द्रीय मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी नाम भी इस सूची में शामिल हो चुका है, लेकिन मूल रुप से भाजपा के बड़े नेताओं और श्रीमंत के बीच पटरी नहीं बैठ पा रही है। इसकी वजह से इस अंचल में श्रीमंत को कई तरह की चुनौतियों का पार्टी में स्थानीय स्तर पर सामना करना पड़ रहा है, लेकिन जिस तरह से अब पार्टी में उनके सबसे बड़े विरोधी और पार्टी का बड़ा हिंदू चेहरा पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया का साथ उन्हें मिलना नजर आ रहा है, उससे अंचल की राजनीति में नए समीकरण तेजी से बनते हुए नजर आने लगे हैं। इसका असर पार्टी के संगठन चुनाव से लेकर सरकार तक पर पडऩा तय माना जा रहा है। दरअसल, श्रीमंत के विरोधी होनेे के बाद भी पवैया को प्रदेश की राजनीति में संगठन से लेकर सरकार तक में खास तबज्जो नहीं मिल रही है। ऐसे में वे खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उधर, स्थानीय स्तर पर संगठन में भी श्रीमंत समर्थकों के भी लगभग यही हाल बने हुए थे। ऐसे में नए बन रहे समीकरणों की वजह से न केवल दोनों नेताओं की स्थानीय राजनीति में पकड़ मजबूत होगी, बल्कि सरकार व संगठन में भी पकड़ मजबूत होना तय मानी जा रही है। इससे भाजपा के मौजूदा कई नेताओं का प्रभाव प्रभावित होना तय माना जा रहा है। दरअसल इस अंचल में श्रीमंत और विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के बीच बिलकुल भी पटरी नही बैठती है। अंचल में जिन नेताओं का सर्वाधिक संगठन सरकार में पकड़ मानी जाती है उनमें नरेन्द्र सिंह तोमर एक मात्र नेता हैं। अब नए समीकरण से सर्वाधिक असर उन पर ही पडऩा माना जा रहा है। पवैया का साथ मिलना श्रीमंत और तोमर के बीच जारी सियासी दांव-पेच के लिहाज से महत्वपूर्ण है। वह भी तब, जब भाजपा के संगठन चुनाव हो रहे हैं। जिलाध्यक्ष के लिए नरेंद्र सिंह समर्थक रामेश्वर भदौरिया और पूर्व संगठन मंत्री व प्रचारक शैलेंद्र बरुआ दौड़ में हैं। जयभान सिंह का साथ मिला तो ज्योतिरादित्य समर्थक शैलेंद्र बरुआ भदौरिया पर भारी पड़ सकते हैं। श्रीमंत के भाजपा में आने के पहले इस अंचल में संगठन से लेकर सरकार तक में नरेन्द्र सिंह तोमर का ही पूरा तरह से जलवा रहा है, फिर चाहे मामला मंत्रिमंडल का हो या फिर संगठन का । इसके अलावा उनकी मर्जी से ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में टिकट मिलते रहे हैं। श्रीमंत के भाजपा में आने के बाद उन्हें चुनौति मिलनी शुरु हो गई थी। यही वजह है कि दोनों नेताओं के बीच कभी पटरी नहीं बैठी है।
उपचुनाव परिणाम का असर
विजयपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में नरेंद्र सिंह समर्थक रामनिवास रावत की हार के बाद से ग्वालियर-चंबल अंचल की राजनीति में नए समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं। जयभान सिंह पवैया की पहचान हिंदूवादी नेता की रही है। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीबी माने जाते हैं। गुट विशेष के लिहाज से भी जयभान सिंह निर्विवाद रहे हैं। अंचल में जब नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य के बीच वर्चस्व की लड़ाई चली, तब भी जयभान सिंह तटस्थ रहे। यही वजह है कि उनकी ज्योतिरादित्य से नजदीकी की चर्चा जोरों पर है। माना जा रहा है कि राजनीतिक दुश्मनी के दोस्ती में बदलने की वजह केंद्रीय नेतृत्व से मिले संकेत हो सकते हैं।
पहले औपचारिकता का ही था रिश्ता- ग्वालियर-चंबल अंचल में जयभान सिंह की पहचान सिंधिया राजघराने के धुर विरोधी की रही है। दो चुनाव में तो जयभान सिंह और सिंधिया परिवार आमने-सामने रहे हैं। तब सैद्धांतिक मुद्दों पर तो जयभान सिंह आक्रामक रहे, लेकिन व्यक्तिगत आरोपों से वे बचते रहे हैं। कुछ अवसर छोड़ दें तो दोनों की मुलाकात भी न के बराबर ही हुई। राजमाता के निधन पर जयभान सिंह अंत्येष्टि में शामिल हुए थे, वहीं जयभान सिंह के पिता और चाचा के निधन पर ज्योतिरादित्य शोक जताने उनके गृह ग्राम चिनौर गए थे।
जिलाध्यक्ष की नियुक्ति से तय होगा वर्चस्व
ग्वालियर जिला अध्यक्ष किसका समर्थक बनता है। इससे अंचल की राजनीति में वर्चस्व तय होगा। ज्योतिरादित्य की पसंद शैलेंद्र बरुआ के नाम पर जयभान सिंह ने सहमति दे दी, तो लड़ाई आसान हो जाएगी। इधर रामेश्वर भदौरिया को सांसद भारत सिंह कुशवाह और पूर्व सांसद विवेक शेजवलकर का भी समर्थन है। वैसे भी पार्टी कार्यकर्ता अंदर से नहीं चाहते हैं कि पूर्व संभागीय संगठन मंत्रियों के हाथ में जिले की कमान आए। संभागीय संगठन मंत्रियों को शिवराज सरकार में निगम-मंडल में नियुक्त कर मंत्री पद का दर्जा दिया गया था। इसके पहले वे संगठन मंत्री रहते संगठन में भी बेहद प्रभावशाली रह चुके हैं। अब पूर्व संगठन मंत्री जिलाध्यक्ष के दौड़ में भी शामिल हो चुके हैं।