संदर्भ : अपनी संस्कृति अपना नव वर्ष
परितोष वर्मा
जबलपुर (जयलोक)। 31 दिसंबर और 1 जनवरी यह कैलेंडर में नव वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। पश्चिमी देशों में तारीख से नववर्ष का आना और जाना तय होता है। भारत देश के हिंदू धर्म में चैत्र वर्ष प्रतिपदा के धार्मिक महत्व और पंचांग मुहूर्त के आधार पर नव वर्ष देव आराधना के साथ आरंभ होता है। कुछ वर्षों से चैत्र वर्ष प्रतिपदा पर नव वर्ष मिलन और शुभकामनाओं देने का सिलसिला तेज होता नजर आया है जो बहुत ही सकारात्मक पहलू है। लेकिन आज भी सबसे बड़ी विडंबना यह है कि 31 दिसंबर की रात और 1 जनवरी के स्वागत में पूरे भारत देश में जो उत्साह नजर आता है उसका आधा भी हम चैत्र वर्ष प्रतिपदा पर ना देख पाते हैं ना महसूस कर पाते हैं।
भौतिक रूप से हिंदू और हिंदुत्व पर खतरा हो ना हो लेकिन धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के बदलते नजर आ रहे स्वरूप से जरूर हिंदुत्व ख़तरे में नजऱ आ रहा है।
हिंदुत्व उद्घोष में सनातन धर्म की परंपराओं और आस्थाओं का समावेश है। सनातन को मानने वाले हर व्यक्ति को हिंदू धार्मिक मान्यता का अनुयाई माना जाता है। यह परंपरा यह आस्था खतरे में नजर आ रही है। यह खतरा आने वाली पीढ़ी की विचारधारा सोच को प्रभावित भी करेगा।
आज की पीढ़ी 31 दिसंबर और 1 जनवरी को अपना नया साल मानती है। चैत्र वर्ष प्रतिपदा पर जब हिंदुओं का नव वर्ष प्रारंभ होता है उसे केवल एक त्यौहार के रूप में समझा जाता है। यह उत्साह उमंग और जोश जो 31 दिसंबर की रात एवं 1 जनवरी को नजर आता है वह उमंग वही जोश हमें चैत्र वर्ष प्रतिपदा पर क्यों नजर नहीं आता।
अंग्रेजों के समय से गुलाम भारत ने 31 दिसंबर और 1 जनवरी को साल बीतने और नए साल के आगाज का माध्यम बना लिया। आजादी आई तो बड़े व्यापारी और पूंजीवादियों ने इसे कमाई के जरिए के रूप में विकसित किया जिसका क्रम आज तक जारी है।
युवाओं में नव वर्ष का उत्साह इसलिए है क्योंकि इसमें शराब, कबाब हुल्लड़बाजी, फूहड़ता, अश्लीलता, नग्नपन, सबकी खुली छूट है। यह पैसा कमाना और व्यापार जमाने का बड़ा माध्यम बन गया है। शायद ही आपने कभी सुना हो की 31 जनवरी की रात में कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रम वाद्य गायन या प्रतिभाओं को उभरने वाले कार्यक्रम हो रहे हैं।
चैत्र वर्ष प्रतिपदा पर यह हुल्लड़बाजी, फूहड़ता, अश्लीलता, नग्नपन करने का अवसर नहीं मिलेगा। और जिस उद्योग रूपी आयोजन में युवाओं की सहभागिता ना हो वह पनप ही नहीं सकता ना वह विचारधारा ना वह परंपरा। यह चिंतनीय है, जो भी लोग या संगठन हिंदू और हिंदुत्व सनातन रक्षा की बात उठाते हैं उनको इस बात पर भी विचार करना होगा कि आखिऱ कैसे भारत देश में युवाओं को चैत्र वर्ष प्रतिपदा का महत्व समझाया जाए और वह जिस उत्साह से कैलेंडर बदलने वाले नव वर्ष का स्वागत करते हैं उससे अधिक ऊर्जा के साथ में अपने हिंदू धर्म के अनुसार नव वर्ष का स्वागत करें।