परितोष वर्मा
जबलपुर (जय लोक)। वर्तमान में भी कांग्रेस कई प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रही है। देश, प्रदेश, जिले और स्थानीय स्तर पर बार-बार हार का सामना करने के बावजूद भी हार की समीक्षा करने का दिखावा होता है। हार को लेकर बैठकें होती हैं, चिंतन-मनन का दौर चलता है, लेकिन बाद में पूरी कांग्रेस पार्टी नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक ट्रेन की दो पटरी की तरह एक तेरी कांग्रेस…..एक मेरी कांग्रेस की तरह अलग-अलग दौडऩे लगते हैं। इस सबके बीच सब की कांग्रेस लापता हो चुकी है। कांग्रेस पार्टी अन्य राजनीतिक दलों की बजाय अंदरुनी भीतर घात और प्रतिस्पर्धा से ही सबसे अधिक द्वंद कर रही है। राहुल गांधी की स्वीकार्यता को लेकर बार-बार बातें चर्चाएं में आती हैं कुछ लोग प्रियंका गांधी को पार्टी का प्रमुख चेहरा बनाने की सिफारिश पहले भी कई बार कर चुके हैं। इसी प्रकार प्रदेश स्तर पर हुए बदलाव में जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है लेकिन उनकी सर्व स्वीकार्यता पर आज भी सवाल उठ रहे हैं। बहुत से प्रभावशाली नेता और विधायक उन्हें अध्यक्ष के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते और उनके निर्णय और मुहिम को बट्टा लगाते रहते हैं। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि जीतू पटवारी जब से अध्यक्ष बने हैं तब से अपने ही मालवा क्षेत्र में ही बहुत अधिक प्रभावी ढंग से अपनी कार्यप्रणाली की छाप नहीं छोड़ पाए हैं। प्रदेश के अन्य हिस्सों में अभी तक उनकी टीम नहीं बन पाई है। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर जो जितना प्रभावी नेता है वह अपने हिसाब से कांग्रेस को नियंत्रित करने और दिशा देने का प्रयास करता है। स्थानीय स्तर पर भी कुछ इसी प्रकार के समीकरण उभर कर सामने नजर आ रहे हैं। वर्तमान में नगर अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के मामले में भी विभिन्न राय बनी हुई हैं।
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से लेकर प्रदेश के बड़े नेताओं तक ने यह निर्णय लिया था कि युवाओं को आगे लाकर एक नई ऊर्जा के साथ नई टीम बनाकर कार्य किया जाएगा। लेकिन मेरी मुर्गी की डेढ़ टांग वाली मानसिकता के बहुत सारे ऐसे नेता हैं जो इन युवाओं को स्वीकार करने तैयार नहीं है। इसके दुष्प्रभाव भी पार्टी के कार्यक्रमों के दौरान बैठकों के दौरान सार्वजनिक रूप से नजर आते हैं और यह ऐसी बातें हैं जो किसी से छुपी नहीं है बस कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता इन्हें सार्वजनिक रूप से कहने में संकोच कर जाते हैं।
कांग्रेस वर्तमान में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका भी ठीक से अदा नहीं कर पा रहा है। इसकी मुख्य वजह यही है कि कुछ लोग यह तेरी कांग्रेस…. तो यह मेरी कांग्रेस के संघर्ष में ही उलझे हुए हैं। स्थानीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक अपने-अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में प्रभावशील नेता अपने अनुसार ही कांग्रेस की गतिविधियों को और उसके कार्यकर्ताओं को संचालित करने का प्रयास कर रहे है।
दुविधा में कार्यकर्ता
मेरी-तेरी कांग्रेस के झगड़े में कांग्रेस का निष्ठावान कार्यकर्ता भी भारी दुविधा में है। सबकी कांग्रेस लापता है और कार्यकर्ता मुंह दिखाई के लिए हर प्रभावी नेता के कायक्रम में इस प्रकार शामिल होना चाहता है जैसे वह इस प्रभावी नेता का सबसे सगा समर्थक है। हालांकि इस समर्थन के दौरान इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाता है कि उसकी भूमिका सीमित स्तर तक ही रहे ताकि अन्य प्रभावी नेता को इस बात का बुरा ना लगे। कार्यकर्ता भी यह समझ कर चलना चाहता है कि तेरी मेरी कांग्रेस के चक्कर में कहीं उसका नुकसान ना हो जाए और भविष्य के लिए जो सपने वह अपने राजनीतिक भविष्य में देख रहा है उस पर पलीता ना लग जाए।
कांग्रेस में एक जुटता ना आने के कारण किसी भी प्रकार का कोई भी प्रभावित आंदोलन और सार्वजनिक रूप से अधिक समय तक नहीं टिक पाता और ना ही उस प्रभावी ढंग से जनता के बीच में मुद्दे पहुंच पा रहे हैं जैसा एक विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस को करना चाहिए।
देश के बड़े-बड़े नेताओं ने चाहे वो कांग्रेस के हो या भारतीय जनता पार्टी के सबने इस बात को स्वीकार है कि एक स्वस्थ और मजबूत विपक्ष भारत देश की विकास की गाड़ी का एक मजबूत पहिया होता है। विपक्ष अगर कमजोर होगा तो सत्ता पक्ष गलतियां करने से परहेज नहीं करेगा। विपक्ष अगर मजबूत होगा तो सत्ता पक्ष की गलतियों की गुंजाइश बहुत कम हो जाएगी।
अब वर्तमान में जबलपुर और महाकौशल क्षेत्र की कांग्रेस की अंतर्दशा की वस्तु स्थिति का अवलोकन और आत्म मंथन करना कांग्रेस के हर वरिष्ठ नेताओं के लिए कांग्रेस को दोबारा सक्रिय और जीवित करने के लिए बेहद आवश्यक है।
जबलपुर की बात करें तो विधानसभा वार बटीं कांग्रेस आज भी एक नहीं हो पा रही है। विधानसभा क्षेत्र के प्रभावी नेताओं के कारण जो कांग्रेस के पार्षद जीत कर आए हैं वह भी मुंह दिखाई की रस्म में कांग्रेस के आंदोलन में शिरकत कर रहे हैं। यहां तक की एक दूसरे की बैठकों में जाना और एक दूसरे के आंदोलन के आवाहनों को दरकिनार करना सामान्य से प्रचलन हो चुका है।
राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को प्रदेश की स्थिति से अपने-अपने स्तर पर अवगत कराने का काम किया जा चुका है लेकिन फिर भी कोई ऐसी कांग्रेस की अंदरूनी गतिविधि नहीं नजर आ रही है जिससे इस परिपाटी को तोड़ा जा सके। ये मेरी कांग्रेस……यह तेरी कांग्रेस से बाहर निकाल कर सबकी कांग्रेस को मजबूत किया जा सके।