जबलपुर (जय लोक)। विदेशी शिक्षकों को जबलपुर में पहली बार बुलवाकर अपनी शाला के बच्चों को उच्च शिक्षा देने की अभिनव पहल करने वाले शिक्षाविद, प्रेरक अनुराग सोनी तीन देशों की शिक्षा पद्धति का अध्ययन कर वहाँ की यूनिवर्सिटी विजिट पूरी वापस आये हैं।
विगत दिवस यूनिवर्सिटी ऑफ हेलसिंकी फिनलैंड एवं यूनिवर्सिटी ऑफ टैलिंन एस्टोनिया की यूनिवर्सिटी में शिक्षकों एवं छात्र छात्राओं की लीडरशिप स्किल एजुकेशनल ड्राइव भारत और फिनलैंड को साँझा किया एवं प्रोफेसर शिक्षकों, डीन और विद्यार्थियों से मिलकर भारत वापस लौटे डॉ. अनुराग सोनी ने बताया कि विदेशों की शिक्षा और भारतीय शिक्षा में काफी अंतर है। यहाँ बहुत सारे विद्यार्थियों पर एक शिक्षक है। जबकि विदेशों में 20 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होता है। इसके बावजूद भी भारतीय शिक्षक अच्छी शिक्षा दे पाता है। भारत में लोग सात दिन भी काम करने तैयार रहते हैं जबकि विदेशों में आठ घंटे रोजाना एवं केवल पाँच दिन चार बजे तक लोग काम करते हैं। भारत के लोग आज विश्व के कई देशों में जॉब कर रहे हैं, नौकरी कर रहे हैं क्योंकि वे मेहनत करना जानते हैं। विदेशी शिक्षकों पर भारतीय शिक्षक ज़्यादा प्रभावशाली साबित होंगे। फिनलैंड एजुकेशन सिस्टम के बारे में डॉक्टर अनुराग सोनी ने बताया कि प्रत्येक विद्यार्थी को फ्री एजुकेशन प्राप्त होती है। यहाँ पर बच्चों को 16 साल तक कोई परीक्षा नहीं देनी होती है।
सात साल के बाद बच्चे स्कूल जाते हैं, केवल उच्च शिक्षित शिक्षक ही पढ़ाते हैं,बच्चों को बचपन से टीम वर्क पर ध्यान दिया जाना सिखाया जाता है। शिक्षकों को डॉक्टर और वकीलों से ज़्यादा श्रेष्ठ माना जाता है। स्कूलों और विद्यार्थियों के बीच में किसी भी प्रकार की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती और रिजल्ट बोर्ड पर नहीं लिखा जाता। हॉबीज और इंटरेस्ट के हिसाब से बच्चों को पढ़ाया जाता है। कंपल्सरी एजुकेशन केवल नौ साल के लिए होता है। प्रोफेसर इन चीफ फवलर सेकिया ने डॉक्टर अनुराग सोनी की तारीफ की एवं उन्हें दोबारा आने के लिए आमंत्रित किया और साथ ही साथ उन्होंने अन्य भारतीय शिक्षकों को भी यूनिवर्सिटी में आमंत्रित किया । डॉक्टर अनुराग सोनी ने भी फिनलैंड के शिक्षकों को ब्रिटिश फोर्ड फाउंडेशन स्कूल आने का न्यौता दिया । पूर्व में भी लगभग 50 विदेशी शिक्षिक ब्रिटिश फोर्ड फाउंडेशन में पढ़ा चुके हैं ।