केवल गाल बजाने से नहीं होती मदद, कदम बढ़ाने से होती है दुख से घिरे लोगों की मदद
परितोष वर्मा
जबलपुर (जयलोक)। संस्कारधानी के इतिहास में पाटन के टिमरी गाँव में दो पक्षों के बीच में खूनी टकराव का एक घटनाक्रम काले अध्याय के रूप में लिखा गया है। क्योंकि इसमें एक ही परिवार के चार लोगों की नृशंस हत्याएं हुई हैं। दो सगे भाइयों की भी मौत हुई है। माता-पिता बुजुर्ग हैं, बच्चे बहुत छोटे-छोटे हैं, विधवा हुई महिलाओं के सामने बच्चों की जिम्मेदारी और पूरा जीवन पहाड़ जैसा खड़ा है। नियति की मंशा थी दुखद हादसा घटित हुआ चार जीवन काल के ग्रास में समा गए। जघन्य हत्याकांड के जो आरोपित थे अपने कर्मों की सजा भोगने के लिए पुलिस की गिरफ्त में पहुंच चुके हैं। लेकिन नियति के अनुरूप जीवित लोगों का जीवन तो जैसे तैसे आगे चलता ही जाएगा। सद्भावना, सांत्वना, के ऊपर सर्वाधिक गिनती उस मदद की होती है जो सबसे पहले परिवार को मजबूत करने और आर्थिक संबल देने की दिशा में आगे बढ़ती है। सत्यापित भौतिक दुनिया में आर्थिक मदद का बहुत बड़ा महत्व है। यह सिर्फ मदद नहीं होती बल्कि हकीकत में दुख और परेशानी झेलने वाले परिवार के लिए बहुत बड़ा संबल का काम करती है।य ह संबल प्रदान करने का काम विधायक सुशील तिवारी इंदू ने सामाजिक सरोकार के तहत अपनी ओर से निजी तौर पर एक-एक लाख रुपये राशि की मदद देने की घोषणा कर किया है।
चर्चा हो रही है पाटन थाना अंतर्गत टिमरी गाँव में हुए हत्याकांड की। संघर्ष दो समाज के बीच में हुआ पूरी घटना को वही दृष्टिकोण मिला तो फिर चर्चा भी उसी की हो रही है। दुबे पाठक परिवार और साहू परिवार के बीच में संघर्ष हुआ संघर्ष के बाद समाज के और लोग भी एकत्रित हो गए। संघर्ष खूनी संघर्ष में बदल गया और चार लोगों की जान चली गई, जिनकी जान गई वह सब दुबे परिवार और पाठक परिवार के सदस्य थे। ब्राह्मण समाज ने इस बात का घोर विरोध दर्ज कराया। ब्राह्मण समाज के कर्ताधर्ता और बड़े नामधारी लोग भी मौके पर पहुँचे। सभी ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की बात की। प्रशासनिक मदद दिलवाने की बात की और जनप्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री राहत कोष से मृतक परिवार और घायलों को आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई।
हर घटना अपने आप में कोई ना कोई सबक हर स्तर पर देके जाती है यह सबक प्रशासन के लिए भी होता है समाज के लिए भी होता है।
सामाजिक सरोकार के हिसाब से विधायक सुशील तिवारी इंदु ने इस पूरे घटनाक्रम में मानवीय संवेदना की एक अलग ही मिसाल पेश की। उन्होंने आगे बढ़ते हुए हत्याकांड के पीडि़त परिवारों की आर्थिक मदद करने का पहला बड़ा कदम खुद ही उठाया। वह कदम यह था कि उन्होंने निजी स्तर पर मृतकों के परिजनों को एक-एक लाख रुपये की आर्थिक सहायता तत्काल उपलब्ध करवाई। यहां ना तो बात राशि की है और ना ही इसके उपयोग की। बात है तो वह सामाजिक सरोकार की।
इस हत्याकांड के बाद जिनके जीवन समाप्त हुए उन्हें सांत्वना देने जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और सामाजिक लोग गांव में एकत्रित हुए। सर्वप्रथम विधायक इंदु तिवारी ने सामाजिक सरोकार के प्रकल्प को आगे बढ़ाते हुए अलग विषय पर एक ही चिंता जाहिर कि वह थी कि मृतक के आश्रितों के जीवन यापन और उन्हें स्थापित करने की राह कैसे प्रशस्त हो। टिमरी गांव में जब सामाजिक लोगों के साथ और विशिष्ट लोग बैठे और उनके सामने समाज के लोगों ने आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई करने,उनके अतिक्रमण तोडऩे तथा उनके असामाजिक कृत्यों की बातें उठाई, तो सभी जिम्मेदारों ने अपने-अपने स्तर पर अपने विचार व्यक्त किये। विधायक इंदु तिवारी ने यह सवाल उठाया की मृतक के परिजनों को विशेष करके उनके आश्रितों को स्थापित करने और सुरक्षित जीवन और भविष्य देने का दायित्व भी हम सभी सामाजिक लोगों का है। इंदु तिवारी ने कहा कि हमारे सांसद आशीष दुबे, एवं अन्य सभी ब्राह्मण समाज के जनप्रतिनिधि यह प्रयास कर रहे हैं कि प्रशासन के स्तर पर मृतकों के परिजनों को हर संभव मदद मिल सके। लेकिन सामाजिक रूप से भी हमें इस दिशा में चिंतन मनन करना होगा और यह हम सब की जवाबदारी है। इंदु तिवारी ने यह भी कहा कि वह मानते हैं कि यह राशि बहुत अधिक नहीं है लेकिन यह एक सामाजिक सरोकार के तहत लिये गये निर्णय की एक छोटी सी शुरुआत है ताकि दुख से पीडि़त सामाजिक लोगों को वास्तविक संबल मिल सके।
विधानसभा क्षेत्र का मुद्दा नहीं सामाजिक सरोकार का
इस पूरे घटनाक्रम में महत्वपूर्ण बात यह भी है कि ना तो विधायक सुशील तिवारी इंदु के विधानसभा के अंर्तगत यह घटनाक्रम हुआ है और ना ही भविष्य में उनके इस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडऩे की संभावना है, नाही वे इच्छुक हैं। इसलिए सीधे तौर पर यह मामला और उनकी आर्थिक मदद का बढ़ाया गया कदम केवल सामाजिक सरोकारों से जोडक़र देखा जा रहा है। केवल ब्राह्मण समाज ही नहीं बल्कि हर समाज के लिए एक सकारात्मक संदेश इन्दु तिवारी दे रहे हैं कि अपने समाज के लोगों के हित में खड़ा होना चाहिए चाहे वह अर्थ बल के आधार पर या फिर सद्भावना संवेदनाओं के आधार पर हो।