चैतन्य भट्ट
तमाम तरह के रोगों से बचाव के लिए योग के लिए मशहूर हुए बाबा रामदेव और उनके साथी आचार्य बालकृष्ण इन दिनों भारी अलसेट में हैं, दुनिया भर को किसी भी परेशानी से योग के माध्यम से निजात दिलाने वाले बाबा जी को समझ में नहीं आ रहा कि सुप्रीम कोर्ट के अवमानना से बचने के लिए वे और आचार्य बालकृष्ण कौन सा योग करें। ‘कपालभाति’ करें या ‘अनुलोम विलोम’ करें ‘पेट अंदर बाहर करें’ या फिर ‘सर के बल’ खड़े हो जाएं या फिर शरीर को ‘तीस साठ या सौ डिग्री’ में तोड़ मरोड़ लें। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों के सामने हाथ जोड़ लिए वकीलों ने भी उनकी तरफ से माफी माँग ली लेकिन चूंकि बाबा जी अपने आप को सबसे महान समझने लगे थे और उसी चक्कर में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए तमाम तरह के विज्ञापन अखबारों में दे रहे थे उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में उन्हें मना भी किया था लेकिन चूंकि इन दिनों उनका जलजला काफी ऊंचाई पर है इसलिए उनको लगा कि मुझे कौन रोक सकता है। लेकिन बाबा जी भूल गए कि सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम ही होता है एक बत्ती दी और बाबा जी अपने साथी बालकृष्ण जी के साथ कोर्ट के कमरे में हाजिर हो गए, हाथ जोडक़र माफी भी माँगी लेकिन कोर्ट ने साफ कह दिया कि आपकी यह माफी स्वीकार नहीं है क्योंकि आपने जानबूझकर न्यायालय के आदेशों की अवहेलना की है। दरअसल बाबा जी की दुकान पिछले कुछ सालों में बहुत तेजी से चली है ऐसा कौन सा रोग है जिसकी दवाई बाबा जी नहीं बना रहे, अपने को तो एक बात समझ में नहीं आती कि पहले जब बाबाजी सारी बीमारियों को योग से दूर करने का दावा करते थे और जब सारी बीमारियां योग से ठीक हो जाती हैं तो फिर इतनी दवाइयां बनाने और उन्हें बेचने की जरूरत क्या थी, लेकिन अब बाबा जी से कौन सवाल करें और इसी चक्कर में बाबा जी ने ऐसे-ऐसे विज्ञापन दे दिए जिससे एलोपैथी के डॉक्टर नाराज हो गए और सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए बाबा जी के खिलाफ और जब कोर्ट ने उन्हें ऐसे विज्ञापन देने से मना किया तो भी बाबा जी नहीं माने फिर क्या था सुप्रीम कोर्ट ने बाबाजी और उनके साथी बालकृष्ण जी को हाजिर होने का आदेश दे दिया, अब बाबाजी और उनके साथी भारी परेशान है कि अगली पेशी में पता नहीं उन्हें क्या-क्या सुनना पड़े, इसलिए बड़े बूढ़े कह गए हैं की सफलता को सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए अपने आप को इतना महान मत समझो। ठीक है बाबा जी ने योग को फिर से जिंदा कर दिया लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि बाबा जी भगवान हो गए। एलोपैथी अपनी जगह है, होम्योपैथी अपनी जगह, आयुर्वेद अपनी जगह सबकी अपनी-अपनी खासियत है लेकिन बाबा जी तो एलोपैथी को जड़ से उखाडऩे में जुट गए थे लेकिन अब स्थिति ये हो गई है कि उनकी ही जड़ हिलने लगी है। बाबा जी भगवान से एक ही प्रार्थना कर रहे हैं कि ईश्वर हमें किसी भी तरह से सुप्रीम कोर्ट के क्रोध से बचा लो आज के बाद हम किसी की कभी कोई बुराई नहीं करेंगे, देखते हैं भगवान भी बाबा जी पर मेहरबान होता है या नहीं। मजे की बात तो ये है कि बाबाजी दुनिया भर को शीर्षासन करवा रहे थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक ही झटके में उन्हें शीर्षासन करवा दिया और ये शीर्षासन उन्हें कब तक करना है ये अगली पेशी में ही पता लगेगा।
सास तो सास ही होती है
सास बहू का झगड़ा आज का नहीं बरसों पुराना है जब बहू सास बनती है तो उस के भीतर अपनी सास के तमाम गुण अपने आप आ जाते हैं जब तक बहू रहती है तब तक सास को पानी पी-पी कर कोसती है लेकिन जैसे ही खुद सास बनती है तो अचानक से उसकी सास की आत्मा उसमें घुस जाती है और वह भी बहू के हर काम में अपनी टांग अड़ाने लगती है। बहू ऐसा करो, बहू वैसा करो, बहू ये नहीं करो, बहू वो मत करो, कई बहुएं सास की इस टोका टाकी से परेशान भी हो जाती है लेकिन हाल ही में हाईकोर्ट ने साफ कह दिया है कि अगर कोई सास बहू के घरेलू कामों में आपत्ति जता रही है तो इसे उसकी कू्ररता नहीं कहा जा सकता। किसी बहू ने सास के खिलाफ कू्ररता का मामला दर्ज करवा दिया था इस पर हाईकोर्ट ने उसकी शिकायत को खारिज करते हुए साफ कर दिया कैसे इसे कू्ररता की श्रेणी में रखा जा सकता है और सही बात भी है अनुभव अनुभव होता है यदि सास अपने अनुभव से बहू से कुछ कह रही है बता रही है या कोई सुझाव दे रही है तो फिर उसे कू्ररता कैसे कहा जा सकता है। जो उसने अपनी सास के साथ भोगा था वही वो अपनी बहू के साथ कर रही है लेकिन आजकल की बहू को सास के उपदेश पसंद कहां आते हैं, वो जमाने चले गए जब बहू सास के इशारे पर ही काम करती थी अब हाल ये है कि सास अपने कमरे में बैठी रहती है और बहू अपने हिसाब से अपनी गृहस्थी चलाती है वैसे अपने हिसाब से अपना सोचना ये है कि अब जमाना बदल गया है सासों को भी सोचना चाहिए कि बहू को अपने हिसाब से काम करने दें, जब आपका वक्त था तब का समय कुछ और था अब धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है और इस बदलाव में अपने आप को एडजस्ट करना जरूरी है ये बात ठीक है कि सास भी कभी बहू होती है शायद इसलिए एकता कपूर ने ये सीरियल बनाया था ‘सास भी कभी बहू थी’।
किस-किस की फोटो बदलोगे
इस वक्त कांग्रेस भारी संकट में है, कौन सा कांग्रेसी नेता का कब ‘भगवा दुपट्टा’ ओढ़ ले भगवान भी नहीं जानता, इधर चुनाव अलग चल रहा है कांग्रेस का प्रत्याशी अपने होर्डिंग में तमाम कांग्रेसी नेताओं की फोटो लगा रहा है लेकिन उनमें से कौन सा नेता कब पार्टी बदल ले इसको लेकर वो भी भारी चिंतित है। अपने जबलपुर में ही देख लो कांग्रेस के प्रत्याशी दिनेश यादव ने चुनाव की घोषणा के बाद बड़े-बड़े फ्लेक्स बनवा लिए थे जिसमें तमाम नेताओं के फोटो थे जिसमें एक फोटो पाटन के पूर्व विधायक निलेश अवस्थी का भी था इस बीच भाई साहब ने बीजेपी का दामन थाम लिया अब कांग्रेसी प्रत्याशी करें तो करें क्या? पूरे फ्लेक्स तो बदल नहीं सकते तो किसी बुद्धिमान ने सलाह दे दी कि उनकी फोटो के ऊपर कांग्रेस का चुनाव चिन्ह पंजा लगा दो, सलाह बेहतरीन थी पैसे भी बच गए और पंजे की भी पब्लिसिटी हो गई लेकिन अब प्रत्याशी को इस बात का डर है कि अभी चुनाव में कम से कम आठ दस दिन बाकी हैं और जिस गति से भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस के नेताओं को दुपट्टा पहना रही है ना कहो मतदान तक आते-आते कई लोगों की फोटो के ऊपर पंजे का चुनाव चिन्ह लगाना पड़ जाए, अपनी सलाह तो यही है कि कांग्रेस के प्रत्याशी को सौ पचास बड़े-बड़े पंजे के फ्लेक्स बनवा के रखना चाहिए इधर जैसे ही कोई नेता भगवा दुपट्टा पहने तुरंत उसके चेहरे पर पंजा चिपका दो लेकिन इस बात का भी डर है कि कहीं ऐसा ना हो कि चुनाव की तारीख आते आते होर्डिंग के फ्लेक्स में सिर्फ प्रत्याशी भर का चेहरा दिखाई दे और बाकी हर चेहरे पर पंजा पंजा चिपका दिखाई दे।
सुपर हिट ऑफ द वीक
श्रीमती जी ने टैक्सी वाले से पूछा
‘स्टेशन जाने के कितने रुपए लोगे’
‘ढाई सौ’ टेक्सी वाले ने कहा
‘और अगर अपने पति को भी साथ ले चलूं तो’
‘उतने ही यानी ढाई सौ रुपए’ टेक्सी वाले ने उत्तर दिया
अब श्रीमती जी ने श्रीमान जी पर नजर डालते हुए कहा
‘मैं पहले से ही जानती थी कि तुम्हारी धेले भर की
कीमत नहीं है’